×

मध्य प्रदेश में मातृ और शिशु मृत्यु दर में कमी नहीं आई ....

Location: Bhopal                                                 👤Posted By: DD                                                                         Views: 29057

Bhopal: 31 अक्टूबर 2017। महिलाओं और बच्चो के लिए मध्य प्रदेश में करोड़ो रूपये खर्च किये जा रहे है बावजूद इसके न मातृ मृत्यु दर में कमी आई है ना शिशु मृत्यु दर में। शिशु मृत्यु दर में जहां मध्य पहले स्थान पर हैं वहीं मातृ मृत्यु दर भी मध्य प्रदेश में ज्यादा है।यही वजह है कि अब प्रदेश सरकार प्रदेश के 16 सबसे ज्यादा मातृ शिशु मृत्यु दर वाले जिलों में संविदा पर डॉक्टरों की नियुक्ति करने जा रही है। लेकिन 5 महीने हो जाने के बावजूद कोई डॉक्टर जिलों में जाने को तैयार नहीं।



मध्य प्रदेश सरकार और उसकर जन प्रतिनिधि भले ही मध्य प्रदेश में तरक्की का दावा ओर वादा करते हों, लेकिन जमीनी हक़ीक़त कुछ ओर ही कहते नजर आती है।जहां प्रदेश कुपोषण के मामले में नम्बर 1 है तो वहीं बलात्कार के मामले में भी पहले स्थान पर है और रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक शिशु मृत्यु दर में भी मध्य प्रदेश पहले स्थान पर है। लगातार 11 सालो से मध्य प्रदेश में यही हालत बने हुए है।



- प्रति हजार बच्चो पर शिशु मृत्यु दर 51 है, इसमें बालिका शिशु मृत्यु दर 53 है तो बालक शिशु मृत्युदर 51 है। राष्ट्रीय मानक 27 है।

- सबसे ज्यादा खराब हालत ग्रामीण अंचलों में है जहां प्रति हजार बच्चो में 57 बच्चो की मौत।

- शहरी छेत्रों में भी हालत बेहतर नही है यहाँ भी प्रति हजार बच्चो में 35 बच्चो की मौत जन्म के समय हो जाती है।

- मातृ मृत्यु दर का औसत जहां एक लाख प्रसव पर 109 मानक है, वो प्रदेश में 221 है।

- पिछले पांच साल में मध्य प्रदेश में 4826 प्रसूताओं की मौत हुई तो 96 हजार 159 शिशुओं ने जान गंवाई।



यही वजह हैं सरकार अब प्रदेश के 16 जिलों में मातृ शिशु मृत्यु दर कम करने के लिए संविदा पर डॉक्टरों की नियुक्ति करने जा रही है।इसके लिए सरकार 5 महीनो में दो बार डॉक्टरों के आवेदन मांग चुकी हैंलेकिन कोई जाने को तैयार नही है।सरकार मानती है कि मृत्यु दर को कम करने के लिये ठोस कदम उठा रही है।



दरअसल सीधी छिंदवाड़ा मंडल रायसेन विदिशा बालाघाट बैतूल छतरपुर गुना झाबुआ नीमच सागर उमरिया सिंगरौली डिंडोरी जैसे जिलों में मातृ शिशु डर सबसे ज्यादा है यही वजह है कि सरकार इन छेत्रों में डॉक्टरों की विशेष नियुक्ति चाह रही है।लेकिन सरकार की नीतियों के चलते डॉक्टर्स इन जिलों में जाने को तैयार नही।



प्रदेश में डॉक्टरों की कमी।



- 1336 विशेषज्ञ डॉक्टरों के पद लेकिन काम सिर्फ 289 कर रहें हैं।

- सामान्य ड्यूटी चिकित्सा अधिकारी के 1854 पद लेकिन 904 कार्य कर रहे हैं।



- रेडियोग्राफर के 160 ,लैब टेक्नीशियन के 226 ओर नर्सिंग के 1161 खाली है।



आंकड़े साफ बताते है कि प्रदेश में डॉक्टरों की भारी कमी है लेकिन पर्याप्त मात्रा में डॉक्टर्स ने होने के चलते अधिकतर मौते होती है।वह करोड़ो खर्च हो जाने के बावजूद सरकार इन मौतों पर काबू पाने में सक्षम नहीं।



प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग का बजट



2011-12---- दो हजार 639 करोड़।



2015-16--- चार हजार 643 करोड़।



2016-17-- पांच हजार 643 करोड़।



इनमें नेशनल हेल्थ मिशन का बजट शामिल नही है।



जाहिर है इतने बजट के बावजूद मातृ शिशु मृत्यु होने की वजह विपक्ष सरकार की नाकामी मानता है।

- जिस प्रदेश में लाडली लक्ष्मी और कन्यादान जैसे योजनाएं चलाकर मुख्यमंन्त्री शिवराज जगत मामा बन चुके हो।उस प्रदेश में अगर सरकारी लापरवाही से लाड़लियों ओर लाडलों की मौत होगीतो सरकार पर कलंक लगना लाजमी होगा।



- डॉ. नवीन जोशी

Related News

Latest News

Global News