New Delhi: अंतरराष्ट्रीय मीडिया में हाल में फ़ेसबुक के एक ऐसे प्रोग्राम के अचानक बंद किए जाने की ख़बर सुर्खियां बनीं, जो आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस पर शोध से संबंधित था.
ख़बरों में कहा गया कि ये शोध कार्यक्रम इसलिए बंद करना पड़ा क्योंकि प्रोग्राम के तहत डिज़ाइन किए गए चैटबॉट्स ने अंग्रेज़ी के बजाय एक अलग ही भाषा ईज़ाद कर ली, जिसे इंसान नहीं समझ सकते.
वैज्ञानिक स्टीफ़न हॉकिंग से लेकर कारोबारी एलन मस्क और माइक्रोसॉफ्ट के मालिक बिल गेट्स तक ये कह चुके हैं कि आने वाले वक़्त में इंसानों को सुपर-स्मार्ट मशीनों से चुनौती मिल सकती है.
इसीलिए एलन मस्क जैसे वैज्ञानिक 'ओपन एआई' जैसे प्रोजेक्ट में पैसे लगा रहे हैं. जिससे मानवता के लिए मददगार अक़्लमंद मशीनें तैयार की जाएंगी.
आइए पहले समझते हैं कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (एआई) है क्या?
फैक्ट्रियों में बहुत सी मशीनें ऐसी होती हैं जो एक ही काम को बार-बार करती रहती हैं. लेकिन उन मशीनों को स्मार्ट नहीं कहा जा सकता.
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस वो है जो इंसानों के निर्देश को समझे, चेहरे पहचाने, ख़ुद से गाड़ियां चलाए, या फिर किसी गेम में जीतने के लिए खेले.
अब ये आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस हमारी कई तरह से मदद करती है. जैसे ऐपल का सीरी या माइक्रोसॉफ्ट का कोर्टाना. ये दोनों हमारे निर्देश पर कई तरह के काम करते हैं. बहुत से होटलों में रोबोट, मेहमानों की मेज़बानी करते हैं.
आज ऑटोमैटिक कारें बनाई जा रही हैं. इसी तरह बहुत से कंप्यूटर प्रोग्राम हैं, जो कई फ़ैसले करने में हमारी मदद करते हैं.
जैसे गूगल की आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस कंपनी डीपमाइंड, ब्रिटिश नेशनल हेल्थ सर्विस के साथ मिलकर कई प्रोजेक्ट पर काम कर रही है.
आजकल मशीनें इंसान की सर्जरी तक कर रही हैं. वो इंसान के शरीर में तमाम बीमारियों का पता लगाती हैं.
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की मदद से आज बहुत से तजुर्बे किए जा रहे हैं. नई दवाएं तैयार की जा रही हैं. नए केमिकल तलाशे जा रहे हैं. जिस काम को करने में इंसान को ज़्यादा वक़्त लगता है, वो इन मशीनी दिमाग़ों की मदद से चुटकियों में निपटाया जा रहा है.
इसी तरह बहुत से पेचीदा सिस्टम को चलाने में भी इन आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की मदद ली जा रही है. जैसे पूरी दुनिया में जहाज़ों की आवाजाही का सिस्टम कंप्यूटर की मदद से चलाया जा रहा है.
कौन जहाज़ कब, किस रास्ते से गुज़रेगा, कहां सामान पहुंचाएगा, ये सब मशीनें तय करके निर्देश देती हैं. यानी एयर ट्रैफिक कंट्रोल के लिए इस आर्टिफ़िशियल अक़्ल का इस्तेमाल किया जा रहा है.
इसी तरह खनन उद्योग से लेकर अंतरिक्ष तक में इस मशीनी दिमाग़ का इस्तेमाल, इंसान की मदद के लिए किया जा रहा है.
शेयर बाज़ार से लेकर बीमा कंपनियां तक, मशीनी दिमाग़ की मदद ले रही हैं.
अब जब हमारी ज़िंदगी मशीनों की आदी होती जा रही है, तो किसी स्मार्ट रोबोट के बाग़ी होने से ज़्यादा ख़तरा, मशीनों पर बढ़ती हमारी निर्भरता है.
मशीनों में आंकड़े भरकर उनसे नतीजे निकालने को कहा जाता है. मगर कई बार आंकड़ों का हेर-फेर इन मशीनों को ग़लत नतीजे निकालने की तरफ़ धकेल सकता है. ऐसे में हम स्मार्ट मशीनों की ग़लतियों के शिकार बन सकते हैं.
आज की तारीख़ में मशीनें बीमारियों का पता लगाने से लेकर इंसानों के अपराधी बनने की आदत तक का पता लगा रही हैं.
ऐसे में हमें मशीनों से हमेशा सही जवाब की उम्मीद नहीं लगानी चाहिए. उनके दिए जवाबों की दोबारा से पड़ताल करना ज़रूरी है.
- बीबीसी
क्या है आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस?
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New Delhi
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