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दीवाली उपहार है हिंदुत्व की परिभाषा की पुनर्स्थापना

Location: नई दिल्ली                                                 👤Posted By: Digital Desk                                                                         Views: 17926

नई दिल्ली: हिन्दुस्थानियों के एक बड़े व महान पर्व दीवाली के एन पूर्व पिछले सप्ताह एक

हलचल कारी घटना हुई, जिसनें हिन्दुओं की दीवाली पूर्व ही दीवाली मनवा दी

हुआ यह कि देश के उच्चतम न्यायालय ने यह जांच प्रारम्भ की कि हिंदुत्व भारतीय जीवन शैली का हिस्सा है या फिर धर्म है. तीस्ता सीतलवाड़ द्वारा दायर याचिका की सुनवाई में न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि "हिंदुत्व क्या है और इसका अर्थ क्या है?"



वह इस मामले में नहीं पड़ेगी. सात न्यायाधीशों की पीठ जिसकी अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर कर रहे है, ने स्पष्ट कहा कि वह जनप्रतिनिधित्व क़ानून की धारा 123(3) पर सुनवाई कर रहें हैं और वे किसी पुराने मामले में तय किसी शब्द की पुनर्व्याख्या का कार्य नहीं करेंगे. प्रकारांतर से न्यायालय ने "हिंदुत्व कोई धर्म नहीं एक जीवन शैली है" के न्यायालीन निर्णय को उसकी हिंदुत्व की व्याख्या को पुनर्स्थापित कर दिया है. इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस ने कई बड़े सवाल उठाए. क्या कोई एक समुदाय का व्यक्ति अपने समुदाय के लोगों से अपने धर्म के आधार पर वोट मांग सकता है? क्या यह भ्रष्ट आचरण की श्रेणी में आता है? क्या एक समुदाय का व्यक्ति दूसरे समुदाय के प्रत्याशी के लिए अपने समुदाय के लोगों से वोट मांग सकता है ? क्या किसी धर्म गुरू के किसी दूसरे

के लिए धर्म के नाम पर वोट मांगना भ्रष्ट आचरण होगा और प्रत्याशी का चुनाव रद्द किया जाए? भारत में चुनाव के दौरान धर्म, जाति समुदाय इत्यादि के आधार पर वोट मांगने या फिर धर्म गुरुओं द्वारा चुनाव में किसी को समर्थन देकर धर्म के नाम पर वोट डालने संबंधी तौर तरीके कितने सही और कितने गलत हैं? इसके तमाम बिन्दुओं को सुप्रीम कोर्ट ने बारीकी से मथा. मुख्य न्यायमूर्ति ने केंद्र सरकार को मामले में पार्टी बनाने संबंधी मांग को खारिज करते हुए कहा कि यह एक चुनाव याचिका का मामला है, जो कि सीधे चुनाव आयोग से जुड़ा है. इसमें केंद्र सरकार को पक्षकार नहीं बनाया जा सकता. वस्तुतः 1995 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चुनाव में 'हिंदुत्व' के नाम पर वोट मांगने से किसी प्रत्याशी को कोई लाभ नहीं होता है.' उस समय सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुत्व को 'वे ऑफ लाइफ' यानी जीवन



जीने का एक तरीका और विचार या मात्र एक जीवन शैली बताया था. न्यायालय ने कहा था कि हिन्दुत्व समस्त भारतीयों की जीवन शैली का हिस्सा है और इसे हिंदू धर्म और आस्था तक सीमित नहीं रखा जा सकता. कोर्ट ने कहा था कि हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगना भ्रष्ट आचरण नहीं है एवं रिप्रजेंटेशन ऑफ पिपुल एक्ट की धारा-123 के तहत यह भ्रष्टाचार नहीं है.

याचिकाकर्ता के वकील ने रिप्रजेंटेशन ऑफ पिपुल एक्ट की धारा-123 व इसके

अनुभाग तीन पर कहा कि वर्ण, धर्म, जाति, भाषा और समुदाय के आधार पर अगर कोई व्यक्ति वोट मांगता है तो इसे चुनाव में भ्रष्ट आचरण की संज्ञा दी जाती है.



ऐसा मामला पाए जाने पर दोषी व्यक्ति का पूरा चुनाव रद्द कर दिया जाता है.

दरअसल हुआ यह था कि 1992 के महाराष्ट्र राज्य विधानसभा के चुनाव में वहां के शिवसेना नेता मनोहर जोशी ने बयान दिया था कि महाराष्ट्र को वे पहला हिंदू राज्य बनाएंगे. सारा विवाद इसी पर केन्द्रित था और 1995 में बाम्बे हाईकोर्ट ने उक्त चुनाव को रद्द कर दिया था एवं फिर यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और बाद में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जेएस वर्मा की बेंच ने फैसला दिया था कि हिंदुत्व एक जीवन शैली है, इसे हिंदू धर्म के साथ नहीं जोड़ा जा सकता और बाम्बे हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया था. इस रमेश यशवंत प्रभु मामले में निर्णय देते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि "सामान्यतः हिंदुत्व एक जीवन शैली है और इसे मजहबी कट्टरवादिता के समकक्ष नहीं माना जा सकता है." अतः स्पष्ट हुआ कि इस निर्णय से कोर्ट ने जनप्रतिनिधि कानून के सेक्शन 123 के तहत हिंदुत्व के धर्म के तौर पर इस्तेमाल को भ्रष्ट क्रियाकलाप मानने से इनकार कर दिया था.



वस्तुतः यदि हम हिंदुत्व का गहन नहीं अपितु उथला अध्ययन मात्र भी कर लें

तो ऐसा स्पष्ट प्रतीत हो जाता है कि यह कोई धर्म नहीं है. लोकप्रिय भाजपा नेता कलराज मिश्र ने अपनी पुस्तक "हिंदुत्व एक जीवन शैली" में लिखा है कि ? "सर्वे भवन्तु सुखिनः का सूत्र अपनाते हुए तथा आत्मनः प्रति कुलानि परेषाम न स्भाचरेत मात्र की जीवन शैली हिंदुत्व है." अर्थात जो स्वयं को रुचिकर न लगे वह दुसरो पर नहीं थोपना चाहिये. हिन्दू धर्म में यह मानक स्थापित किया गया है कि जब भी व्यक्ति कोई कार्य प्रारम्भ करता है उसके अंतःकरण से आवाज आती है कि यह कार्य करो या यह न करो. जब कोई व्यक्ति अपने इस अंतःकरण से विपरीत कार्य या आचरण करता है तो वह हिन्दू जीवन शैली से विपरीत आचरण है. हिन्दू जीवन शैली के प्रथम सूत्र "सत्य" का मूल रूप परमात्मा को माना गया है. दुसरा सूत्र अहिंसा है. मन, वचन, वाणी, कर्म से किसी भी प्राणी को किसी भी कष्ट पहुंचाना अहिंसा कहलाता है.

विविधता में एकता व एकता की अभिव्यक्ति हिंदुत्व अर्थात भारतीयता की एक

रूढ़िगत शैली रही है. हिन्दू जीवन शैली समस्त अन्य शैलियों के विपरीत जीवन को रूप में देखती है. समस्त विषयों को लेकर इस जीवन शैली के दृष्टिकोण समग्रता समेटे हुए हैं. हिंदुत्व की इस जीवन शैली को यदि समग्र रूप से जिया जाए तो जीवन में गतिरोध, प्रतिरोध या द्वन्द के लिए कोई स्थान बचता ही नहीं है. एक ब्रिटिश लेखिका केरी ब्राऊन ने अपनी पुस्तक "एसेंशियल टीचिंग्स आफ हिंदूइज्म" में लिखा है - हिन्दू

शब्द का प्रथम प्रयोग मध्ययुगीन मुस्लिम हमलावरों ने सिन्धु नदी पार के निवासियों के लिए किया था. किन्तु अब हम जिस हिन्दू संस्कृति को जानते हैं और जिसे भारतीय जन सनातन धर्म का नाम देते हैं, वह हजारो वर्ष पुरानी है. आज यह जीवन शैली सिद्धांत रूप में धर्म से कहीं बहुत अधिक ऊपर है, जिसे पश्चिमी लोग भी समझते हैं.



इसमें कोई भी व्यक्ति किसी भी ईश्वर में विश्वास कर सकता है या नहीं भी कर सकता है, फिर भी वह हिन्दू कहलाता है. निश्चित ही यह एक जीवन शैली है.



अब जबकि न्यायालय का हिंदुत्व शब्द को पुनर्व्याख्या करने से इंकार का

निर्णय आया है तब सम्पूर्ण भारत देश निश्चित ही राहत की सांस लेगा क्योंकि पिछले निर्णय के बीस वर्षों में गंगा में बहुत सा पानी बहा और इस निर्णय को लेकर कई प्रश्न उठाये जाने लगे थे. यह निर्णय न केवल सटीक है अपितु उससे भी अधिक समयोचित भी है. अब जब हिंदुत्व की नई परिभाषाओं की आवश्यकता समाप्त हो गई है तब आवश्यक है कि इस देश का प्रत्येक नागरिक एक हिंदुस्थानी के रूप में हिंदुत्व की जीवन शैली को अपनाए व देश को पुनः विश्वगुरु के आसन पर आसीन करने के मार्ग को प्रशस्त करे, क्योंकि प्राचीन समय में इस जीवन शैली के कारण ही हम सोने की चिड़िया भी थे और विश्व के सिरमौर भी थे.







- Praveen Gugnani

guni.pra@gmail.com

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