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पानी ने बनाया एक शहर 'बंधक'

Location: Mumabi                                                 👤Posted By: Deepak Sharma                                                                         Views: 19487

Mumabi: क्या पानी किसी शहर को बंधक बना सकता है? क्या पानी को लेकर दंगा होने के डर की वजह से किसी शहर में धारा 144 लगाई जा सकती है? क्या किसी शहर के लोग तमाम कामकाज छोड़ कर दिन रात 24 धंटे सिर्फ पानी के बारे में सोच सकते है? आज के वक्त में जब देश के छोटे से छोटे दूर दराज इलाके में भी मिनरल वॉटर की बोतल मिलती हो तो हज़ारो लोग पीने के पानी के लिए तरस सकते हैं।

अगर आप इसे कल्पना या सपना समझ रहे हैं तो फिर पानी की कुछ छीटें अपने चेहरे पर डाल लीजिए क्योकि चांद पर दुनिया बसाने की तैयारी करने वाले भारत के एक शहर को पानी ने बंधक बना लिया है। महाराष्ट्र के लातूर शहर में पानी ने त्राहिमाम मचा रखा है। शहर में पिछले दो महीने से सरकारी नल सूखे पड़े हैं। लोग पानी के लिए पूरी तरह से या तो बोरवेल या फिर टैंकर पर निर्भर हैं लेकिन हालात ये है कि लातूर के 50 फीसदी बोरवेल बेकार हो चुके हैं और जो बाकी है उनका जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है। शहर में पानी की एक एक बूंद को लेकर लड़ाई है। दोपहर के दो बजे हो या फिर रात के दो..हर जगह जहां पानी मिलने की उम्मीद है लोग बर्तन लेकर लंबी-लंबी लाइनों में खड़े नज़र आते हैं। पानी ने शहर के करोड़पति और मजदूरी करने वाले तबके को एक बराबर ला खड़ा किया है। दोनों पानी के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। आलम ये है कि पानी की चोरी के डर से लोग टंकियों में ताले लगाने को मजबूर हैं। पानी ने शहर की अर्थ व्यवस्था को चौपट होने की कगार पर ला खड़ा किया है।

तेल और दाल के मामले में लातूर का पूरे देश में नाम है लेकिन पानी की लगातार होती कमी नें तेल फैक्ट्रियों पर ताले लगा दिए। लातूर की तुअर यानि अरहर की दाल पूरे देश में मशहूर है लेकिन पानी ने इस दाल का स्वाद भी खराब कर दिया है। अगर अगले दो महीने बारिश नही हुई तो दाल की कीमतें एक बार फिर बढ़ सकती हैं। साल 2000 से 2010 तक लातूर शहर ने बहुत तेजी से तरक्की की। दस साल में शहर में उघोग घंघे औऱ खासकर रियल स्टेट मार्केट ने खूब तरक्की की लेकिन पिछले डेढ़ साल से आलम ये है कि लातूर में कंस्ट्रक्शन का काम पूरी तरह से बंद है। पांच साल पहले लातूर में मकान की कीमत दिल्ली एनसीआर में मकान खरीदने जितनी पहुंच गई थी लेकिन आज अधूरे और खाली पड़े मकानों के खरीददार नहीं हैं। लातूर में क़रीब 150 छोटे और बड़े अस्पताल हैं जहां पानी की भारी किल्लत है। पानी की कमी होने की वजह से लातूर के अस्पतालों में इलाज के लिए जाने वाले मरीज़ों की संख्या में 50 फीसदी की कमी आई है।

पिछले महीने लातूर के सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पतालों में पानी की कमी की वजह से डॉक्टर्स को 12 सर्जरी टालनी पड़ीं। लातूर सरकारी मेडिकल कॉलेज के हालत सबसे ज्यादा खराब हैं। अस्पताल को रोजाना 2 लाख लीटर पानी की जरूरत है लेकिन सिर्फ 40-50 हजार लीटर पानी ही मिल पा रहा है। ऐसे में अस्पताल सिर्फ सर्जरी और इमरजेंसी को छोड़कर मरीजों तक को पीने का पानी मुहैया नही करा पा रहा है। लातूर में बोरवेल और टैंकर से जो पानी मिल भी रहा है वो पीने लायक नही है लेकिन लोग मजबूरी में पी रहे है और डायरिया और पथरी जैसी बिमारियों के शिकार बन रहे हैं। वैसे अस्पताल में ऐसे मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है जिनके हाथ या पैर पानी भरने की लड़ाई में टूट गए...सूखे से निपटने के लिए महाराष्ट्र ने केंद्र सरकार से 4000 करोड़ रुपये की मदद मांगी जिसमें 3578.43 करोड़ रुपये फसल के लिए और 314.56 करोड़ पानी के लिए मांगे गए। लातूर शहर की सड़कों पर दिनभर आपको पानी के टैंकर दौड़ते नज़र आएंगे। छोटे-छोटे बच्चे हो या बुजुर्ग पानी के लिए पांच-छह किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर हैं।

लेकिन सवाल उठता है कि आखिर ऐसे हालात आए क्यों। क्या इसके लिए पूरी तरह से प्रकृति ज़िम्मेदार है? या फिर पानी की कीमत न समझने वाला इंसान....सच तो ये है कि इसके लिए इंसान ही जिम्मेदार है। पिछले दस साल में लातूर के विकास को लेकर कई काम किए गए, फ्लाईओवर बनाए गए, उघोग धंधो को बढ़ावा देने लिए जमीन दी गई, रियल स्टेट मार्केट को कंक्रीट के जंगल खड़े करने की छूट भी दी गई है लेकिन इस सब के बीच सरकार या सिस्टम ने ये नही सोचा कि विकास की फसल को सींचने के लिए पानी कहां से लाएंगे। लातूर के हालात कोई नए नहीं हैं लेकिन पिछले दस साल से शहर में पानी को बचाने के लिए कोई बड़ी योजना न तो जमीन पर दिखी और न ही कागजों में...। शहर के लोगों ने भी कम कीमत वाले अनमोल पानी की अहमियत को तब समझा जब पानी सिर के ऊपर से निकल गया। अब हालात ये है कि पानी की एक एक बूंद को बचाने का संधर्ष जारी है लेकिन अगर आप ये सोच रहे हैं कि ये हालात तो लातूर के हैं मुझसे क्या...तो साहब ये हालात आपके सामने भी कल खड़े हो सकते हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत किसी भी दूसरे देश की तुलना में 761 बिलियन क्यूबिक पानी का इस्तेमाल हर साल घरेलू, कृषि और औद्योगिक उपयोग के लिए करता है लेकिन खतरे की बात ये है कि इसमें अब आधा पानी दूषित हो गया है। 2016 में संसदीय कमेटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण, पश्चिम और केंद्रीय भारत के नौ राज्यों में ग्रांउड वॉटर लेवल खतरे के निशान को पार कर गायब होने की कगार पर है। मतलब इन राज्यों में 90 फीसदी ग्रांउड वॉटर का इस्तेमाल किया जा चुका है। एक और रिपोर्ट के मुताबिक 6 राज्यों के 1,071 ब्लॉक, मंडल और तालुका में 100 फीसदी ग्रांउड वॉटर का इस्तेमाल किया जा चुका है। पूरी धरती में ग्रांउड वॉटर को लेकर सबसे ज्यादा खराब स्थिति भारत की है लेकिन इतना बड़ा खतरा इस देश में न तो नेता और न ही जनता के लिए कोई मुद्दा है। पानी नही बचा तो क्या होगा इसका लातूर एक जीता जागता उदाहरण है लेकिन क्या इस उदाहरण से हम सबक लेंगे वरना ऐसा न हो कि आज तो सिर्फ एक शहर है कल पूरे देश को पानी बंधक न बना ले। लातूर सिखाता है कि अपने धर और आसपास बर्बाद हो रहे पानी को बचाइये वरना पानी सिर के ऊपर से निकल गया तो फिर सिर्फ गला नही पूरा जीवन सूख जाएगा...।

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