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राज्य विधानसभा में सवाल पूछने से पहले सौ बार सोचे विधायक

Location: Bhopal                                                 👤Posted By: Admin                                                                         Views: 1496

Bhopal: पहले गुपचुप लाये कानून, अब पीछे हट रहा सत्ता पक्ष



22 मार्च 2018। मध्य प्रदेश विधानसभा का 2018 का बजट सत्र अब इस सत्र में पेश किए गए काले कानून के चलते प्रदेश के संसदीय इतिहास में याद रखा जाएगा। इस काले कानून के तहत सदन में संवाल पूछने के नियम में विधानसभा ने संसोधन कर दिया। विधानसभा में इस काले कानून को लेकर हंगामा हुआ ओर विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव भी पेश कर दिया। इसे लेकर सरकार बैकफुट पर आई और अब विधानसभा अध्यक्ष कहते है इन संसोधनों में बदलाव किया जाएगा।



..राजस्थान की भाजपा सरकार के सरकारी कर्मचारी जज मजिस्ट्रेट के खिलाफ बिना सरकारी मंजूरी के जांच न करने के काले कानून के बाद अब मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार भी एक काल कानून बनाने के चलते विवादों में आ गई है।इस कानून के तहत विधायको के संवाल पूछने के नियमों में कई बदलाव किए गए हैं।लेकिन बिना विपक्ष की सहमति के सरकार ने इन नियमों में संसोधन कर दिया और इसका नोटिफिकेशन भी जारी हो गया।दरअसल 15 मार्च को विधानसभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन संबंधी नियमावली में संसोधन किया गया।किसी भी नियमावली में संसोधन करना छोटी बात है लेकिन प्रदेश के संसदीय इतिहास में पहली बार सदन में बिना किसी बहस के ये संसोधन लागू कर दिए। जाहिर है इन संसोधनों को सवालों के घेरे में आना था और आये भी।



नियमो में चार महत्वपूर्ण बदलाव।



-सत्ता पक्ष को पहली बार सदन में विश्वास प्रस्ताव लाने की सुविद्या दी गई। ओर सदन में इस विश्वास प्रस्ताव पर पहले चर्चा होगी। यानी अगर सरकार विश्वास प्रस्ताव पर जीत गई तो विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव का कोई मतलब नही रहेगा।



- विधानसभा सदस्य राज्यपाल मुख्यमंन्त्री समेत किसी भी अतिविशिष्ट व्यक्तियों ओर संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों की सुरक्षा संबंधी मसलन खर्च ओर कितने व्यक्ति तैनात जैसे संवाल नही पूछ सकते।



- विधानसभा की समितियों के गोपनीय प्रतिवेदन जिनपर कार्यवाही चल रही है जब तक पटल पर नही रखे जाते संवाल नाही पूछ सकते, जानकारी नही ली जा सकती।



- प्रदेश में विघटनकारी अलगाववादी संगठनों की गतिविधयों के संबंध में संवाल नाहीबपूछे जा सकते। सरकार के मुताबिक ऐसे प्रश्नों के जवाब से प्रदेश हित पर फर्क पड़ सकता है।



जाहिर है सवालों की सेंसरशिप से हंगामा मचना था हुआ भी, विधानसभा अध्यक्ष ने आनन फानन में अगले 7 दिन चलने वाली विधानसभा अनिश्चितकाल के लिए स्थगित भी कर दी। लेकिन सरकार के बैकफुट पर आते है अब विधानसभा अध्यक्ष इन संशोधित नियमों में बदलाव की बात कर रहे हैं।



..दरअसल इन संसोधनों के लिए 8 मार्च को वरिष्ठ विधायक बाबूलाल गौर ने सदन में नियम समिति का प्रतिवेदन विधानसभा में रखा था जिसके लिए 15 मार्च तक विधायको से सुझाव मांगे गए थे लेकिन इन 7 दिनों में कांग्रेसियों ने कोइबसुझाव नही दिए जिसके चलते विधानसभा ने नियम समिति द्वारा दिये तय किये नियमो को लागू किये जाने का गजट में नोटिफिकेशन कर दिया। इन संसोधनों के मुताबिक नियमावली 231 के तहत क्रम संख्या 22 में कोई भी विधायक ऐसे किसी भी मसले पर सवाल नही पूछ सकता जिसकीं जांच किसी भी समिति में चल रही हो और प्रतिवेदन पटल पर नही रखा गया हो। यानी किसी भी गंभीर मुद्दे पर सवाल नही पूछम जा सकता अगर उसकी जांच कारवाही समिति के सामने विचारधीन है। ऐसे ही क्रमांक 25 के मुताबिक किसी भी साम्प्रदायिक दंगे संवेदनशील घटनाओं की जानकारी नही मांगी जा सकती इसकी आड़ में विधायक किसी भी ऐसे मुद्दे पर सवाल नाही पूछ सकता। जाहिर है स्वस्थ्य लोकतंत्र में विधायकों को ऐसे सवाल पूछने से रोकने की बात काला कानून ही समझी जाएगी। बहरहाल कांग्रेस के दाबाव में अब सरकार बैकफुट में हैं।

विधानसभा में संवाल करने का हक हर एक विधायक को है यही जनता के प्रति उसकी जिम्मेदारी ओर जवाबदेही भी है।इसे रोका नही जा सकता। विपक्ष के पास यही एक जॉस्टर होता है जिससे वो सरकार की योजनाओं नीतियों घोषणाओं काले कारनामो पर सवाल उठा सकता है।ऐसे में अगर इन सवालों पर ही अंकुश लगा दिए जाएगा तो फिर न विधानसभा की जरूरत है ना विधायक की। ऐसे में इन सवालों पर अंकुश लगाना लोकतंत्र पर अंकुश लगाना है।



- डॉ. नवीन जोशी

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