
Bhopal: 9 जुलाई 2025। मध्य प्रदेश सरकार ने कर्मचारियों की पदोन्नति के लिए नए नियम बनाए हैं, लेकिन ये नियम हाई कोर्ट में चुनौती का सामना कर रहे हैं। सरकार ने कैविएट दायर की थी, लेकिन कोर्ट में मजबूत जवाब नहीं दे पाई। अब 15 जुलाई को अगली सुनवाई है, जिसमें सरकार को अपना पक्ष रखना होगा। इस मामले को लेकर कर्मचारी दो धड़े में बंट गए हैं।
मध्य प्रदेश के कर्मचारियों को पदोन्नति देने के नियम बनाकर लागू करने के साथ ही राज्य सरकार ने हाई कोर्ट में कैविएट दायर की थी ताकि कोर्ट में किसी भी तरह का मामला आने पर सरकार का पक्ष अवश्य सुना जाए।
बावजूद इसके सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से मजबूत जवाब नहीं आया। यही वजह है कि अब पदोन्नति का मामला एकबार फिर उलझता नजर आ रहा है। मंगलवार को सामान्य प्रशासन विभाग में दिनभर अधिकारी बैठकें करते रहे, लेकिन किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाए।
उल्लेखनीय है कि सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा मध्य प्रदेश लोक सेवा पदोन्नति नियम- 2025 मप्र राजपत्र में 19 जून 2025 को अधिसूचित किया था। नए नियम से लगभग चार लाख कर्मचारियों की पदोन्नति का रास्ता साफ हुआ था, लेकिन सामान्य, ओबीसी और अल्पसंख्यक वर्ग एवं आरक्षित वर्ग को पदोन्नति देने का फार्मूला ठीक न होने से मामला कानूनी दांवपेच में उलझ गया।
नियम से पहले तुलनात्मक चार्ट भी नहीं बनाया जा सका, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि किस वर्ग का कितना प्रतिनिधित्व है। नियमों में इतनी विसंगतियां की गईं कि सरकार कोर्ट में यह भी स्पष्ट नहीं बता पा रही है कि वर्ष 2002 के पुराने नियम और 2025 में बने नए नियम में क्या फर्क है।
अब 15 जुलाई को हाई कोर्ट में अगली सुनवाई है, तब तक सरकार को अपना पक्ष रखने का समय दिया गया है, लेकिन इस पूरे मामले को लेकर कर्मचारी फिर दो धड़े में बट गए हैं और सरकार को लेकर मुखर हो गए हैं।
कर्मचारी संगठनों का कहना है कि नए नियम में अनुसूचित जनजाति वर्ग को 20 प्रतिशत, अनुसूचित जाति वर्ग को 16 प्रतिशत आरक्षण दिया है। इसे लेकर किसी का कोई विरोध नहीं है लेकिन शेष 64 प्रतिशत जो पद अनारक्षित यानी सामान्य श्रेणी के हैं उन पर आरक्षित वर्ग को आरक्षित वर्ग को पदोन्नति का अवसर देने पर आपत्ति है।