
भावनात्मक पुनर्लेखन
संयुक्त राज्य अमेरिका की क्रिस्टीन भारत के व्यस्त जनपथ इलाके में फुटपाथ पर एक मोची के पास बैठी थीं, उनके जूते टूटे हुए थे. जब उन्हें मरम्मत का इंतजार करना पड़ा, तो उन्होंने जमीन पर मोची के बगल में बैठने का निर्णय लिया—बिना किसी हिचकिचाहट, बिना किसी भेदभाव के, न कोई जाति, न कोई हैसियत, न नस्ल का फर्क।
वह बस उसके पास बैठ गईं, जैसे उनके बीच कोई दीवार ही न हो।
मोची, जो रोज हजारों लोगों के जूते ठीक करता है, अचानक खुद को सम्मानित महसूस करने लगा, क्योंकि पहली बार कोई ग्राहक उसके साथ बैठा था—समानता के भाव से, आदर के साथ।
मोची ने क्रिस्टीन से पैसे लेने से इनकार कर दिया।
उसने कहा, "कोई भी मेरे साथ जमीन पर बैठता नहीं, आज मुझे असली सम्मान मिला है।"
क्रिस्टीन की आंखों में आभार था, मोची की आंखों में गर्व।
यह एक ऐसी घटना थी जिसने इंसानियत, समानता और अद्भुत दयालुता का गहरा अहसास कराया।
कभी-कभी सबसे असाधारण प्रेम वहीं मिलता है, जहाँ हम बिल्कुल उम्मीद नहीं करते—फुटपाथ की उस धूल भरी जगह पर, दो अनजान दिलों के बीच, एक क्षण के लिए दुनिया बेहद खूबसूरत महसूस होती है।