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ब्रह्मपुत्र पर इतिहास रचा गया ! चीन जरूर व्यथित रहा होगा !!

Location: Bhopal                                                 👤Posted By: prativad                                                                         Views: 3966

Bhopal: के. विक्रम राव Twitter ID: @Kvikramrao

सीमांत ग्राम किबिथु (अरुणाचल) से करीब 800 किलोमीटर दूर राजधानी गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र नदी के पलाशबारी और सुआलकुची तटों को जोड़नेवाले पुल का जब नरेंद्र मोदी शिलान्यास कल (14 अप्रैल 2023) कर रहे थे तो तिब्बत घाटी कि ऊंचाई पर से कम्युनिस्ट चीन जरूर उद्विग्न रहा होगा। यह साढ़े आठ किलोमीटर लंबाई वाला पुल सामरिक दृष्टि से भी, यातायात के अलावा, बड़ा महत्वपूर्ण है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण हाल ही में इसका सर्वे कर चुकी थी। चालीस हजार करोड़ रुपए की लागत का अनुमान है। पुल के निर्माण से गुवाहाटी से 27 किमी दूर स्थित पलाशबाड़ी लगभग 35 किमी दूर स्थित असम के रेशम उत्पादन के केंद्र सुआलकुची के बीच की दूरी कम हो जाएगी। पुल के बनने से उत्तरी तट पर स्थित नलबाड़ी, बारपेटा और बक्सा जिलों से गुवाहाटी जाने में लगने वाले समय में कमी आएगी।
गत सदी में गुवाहाटी के लिए रेलमार्ग तक नहीं था। इस पर केवल पाण्डु स्टेशन तक ही था। फिर नाव से ब्रह्मपुत्र पार कर राजधानी पहुंचते थे। बलिहारी हो 1962 के चीनी हमले का कि दूर दिल्ली में सुरक्षित विराजमान राजनेताओं को पूर्वोत्तर की फिक्र जगी। हालांकि भारत के प्राचीन इतिहास में वर्णित उत्तर भारत के हिमालयी नदियों की भांति ब्रह्मपुत्र भी उसी उद्गम स्थल से है। यह एकमात्र पुल्लिंगवाला जलधारा है। परमपिता ब्रह्मा का पुत्र माना जाता है। यह तिब्बत, भारत तथा बांग्लादेश से होकर बहता है। ब्रह्मपुत्र का उद्गम हिमालय के उत्तर में तिब्बत के पुरंग जिले में स्थित मानसरोवर झील के निकट है, जहाँ इसे यरलुङ त्सङ्पो कहा जाता है। तिब्बत में बहते हुए यह नदी भारत के अरुणांचल प्रदेश राज्य में प्रवेश करती है। असम घाटी में बहते हुए इसे ब्रह्मपुत्र और फिर बांग्लादेश में प्रवेश करने पर इसे जमुना कहा जाता है। ब्रह्मपुत्र का नाम अरुणाचल में डिहं कहते हैं सुवनश्री, तिस्ता, तोर्सा, लोहित, बराक आदि ब्रह्मपुत्र की उपनदियां हैं। पद्मा (गंगा) से संगम के बाद इनकी संयुक्त धारा को मेघना कहा जाता है, जो कि बाघों के लिए मशहूर सुंदरबन डेल्टा का निर्माण करते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर मिल जाती है।
पूर्वोत्तर के विकास की दृष्टि से राष्ट्रीय जनतांत्रिक मोदी सरकार की 2017 में शुरू हुई "पूर्व की ओर" वाली राष्ट्रीय नीति को इस बिहु (असम नववर्ष : 14 अप्रैल 2023) में नया आयाम मिला। बड़ा विलक्षण और अद्भुत भी। विश्व में विख्यात गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में इस उत्सव का नाम अब दर्ज हो गया है। कारण? इस बार यहां दुनिया का विशालतम सामूहिक नृत्य पेश किया गया। गुवाहाटी के सरूसजय (इंदिरा गांधी) स्टेडियम में 11,000 नृत्यांगनाओं ने रंग-बिरंगी परिधान पहनकर पारंपरिक बिहु (नववर्ष) नृत्य किया जिसे नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री हेमंत विश्व शर्मा ने सराहा। रिकॉर्ड में उल्लिखित किया गया है कि : "सबसे बड़ा बिहू नृत्य और सबसे बड़ा ढोल ड्रम पहनावा" प्रस्तुत किया गया। बिहु शब्द दिमासा लोगों की भाषा से लिया गया है जो कृषि समुदाय है। उनके सर्वोच्च देवता ब्राई शिबराई या पिता शिबराई हैं। मौसम की पहली फसल अपनी शांति और समृद्धि की कामना करते हुए ब्राई शिबराई के नाम पर अर्पित किया जाता हैं। तो 'बि' मतलब 'पुछना' और 'शु' मतलब पृथ्वी में 'शांति और समृद्धि' हैं। अत: शब्द बिशु धीरे-धीरे भाषाई शब्दों को समायोजित करने के लिये बिहु बना दिया गया।
भारतीय जन-जीवन और किसान के पशु-प्रेम खासकर गाय के प्रति प्रेम को यह पर्व जाहिर करता है। ये पशु किसान जितनी ही मेहनत करते हैं। इसलिए इस त्योहार पर पशु को पूजा होती है। इस दिन बैलों और गायों को हल्दी लगाकर नहलाया जाता है। उन्हें लौकी और बैंगन खिलाए जाते हैं। उन्हें नई और रंगीन रस्सियां दी जाती है। बिहू के दौरान ही युवक-युवतियां अपने मनपसंद जीवन साथी को चुनते हैं और अपनी जिंदगी की शुरुआत करते हैं। असम में बैसाख माह में सबसे ज्यादा विवाह होते हैं। बिहू के समय में गांवों में तरह-तरह के दूसरे कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है। इसके साथ-साथ खेती में पहली बार हल भी जोता जाता है। विश्व रिकॉर्ड में दर्ज होने का सीधा परिणाम यह होगा कि चीन कोई भी सशस्त्र हरकत करने के पूर्व सोचेगा। असम अब 1962 वाला नहीं रहा। जब चीन ने इसकी सीमा को रौंदते हुये चालीस हजार वर्ग भूमि कब्जिया ली थी।


K Vikram Rao
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