
— डॉ. मोहन यादव
व्यक्ति, समाज और राष्ट्र निर्माण का ध्येय लेकर चले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने आज अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण कर लिए हैं। संसार के सबसे विशाल और अनूठे संगठन की यह यात्रा त्याग, तपस्या, निःस्वार्थ सेवा और अनुशासन का प्रतीक है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की यह यात्राकई चुनौतियों और विषम परिस्थितियों में सेवा, समर्पण और संकल्प के ध्येय पथ पर आगे बढ़ी है। यह आद्य सरसंघचालक परमपूज्य डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी का संकल्प और प्रत्येक स्वयंसेवक का समर्पण है कि आज पूरे विश्व में संघ का ध्वज लहरा रहा है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना देश की असाधारण परिस्थितियों में हुई। भारत और भारत के स्वत्व के लिये जितना संकट अंग्रेजी राज से था उससे कहीं अधिक भारत विरोधी वे शक्तियां सक्रिय थीं जो भारत के पूर्ण रूपांतरण का कुचक्र रच रहीं थीं। इसे मालाबार, चटगांव, करांची और ढ़ाका की हिंसा से समझा जा सकता है। हिन्दुओं के सामूहिक नरसंहार, स्त्रियों के अपहरण पर भी देश में चुप्पी रही। एक ओर समाज, संस्कृति और राष्ट्र के दमन का कुचक्र चल रहा था दूसरी ओर भारतीय समाज अनेक आंतरिक विसंगतियों में उलझ गया था। जहां समाज विखंडन और अस्पृश्यता जैसा लोक व्यवहार प्रभावी था वहीं भारतीय समाज में आत्मगौरव कहीं खो रहा था। दासत्व की जंजीरों को ही अपनी नियति समझ लेने वाला विचार भी प्रभावी होने लगा था।
बालपन से ही राष्ट्र और सांस्कृतिक गौरव के प्रति समर्पित विशिष्ट प्रतिभा के धनी डॉक्टर जी के मन को यह सभी घटनाएं उद्वेलित कर रही थीं। डॉ. हेडगेवार जी स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी सेनानी थे। वे असहयोग आंदोलन में जेल यात्रा भी गये थे। भारत को दासत्व से मुक्ति संघर्ष में सहभागिता के साथ उन्होंने भारत में सांस्कृतिक और राष्ट्रभाव जागरण अभियान चलाने का भी संकल्प लिया। उन्होंने अनुभव किया कि जब तक प्रत्येक भारतीय के हृदय में स्वत्व का भाव जागृत नहीं होगा तब तक भारत पुनः अपने गौरव को प्राप्त नहीं कर सकता। डॉक्टर जी ने तत्कालीन सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति समर्पित विभूतियों से चर्चा की और संघ की स्थापना केलिये विजयादशमी की तिथि का चयन किया।
वर्ष 1925 में विजयादशमी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अस्तित्व में आया। इस तिथि के निर्धारण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना का ध्येय स्पष्ट है। विजयादशमी की तिथि और यह उत्सव स्वार्थरहित संघर्ष, सत्य की स्थापना, धर्म की रक्षा और मानवीय मूल्यों के पुनर्जागरण का संदेश देती है। यही संदेश राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पूरी शताब्दी यात्रा में निहित है।
संघ की इस शताब्दी यात्रा की दो बड़ी विशेषताएं रहीं। एक तो संघ की ध्येय निष्ठा, संसार में केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक मात्र ऐसा संगठन है जो अपने ध्येय पर अडिग है और निरंतर विस्तार पा रहा है। दूसरी विशेषता संघ पर होने वाले आक्रमणों की है। संघ पर वैचारिक, राजनैतिक हमलों के साथ स्वयंसेवकों पर प्राण घातक हमले हुए। लेकिन संघ की ध्येय यात्रा पर कोई बाधा नहीं डाल पाया। स्वतंत्रता के बाद तीन बार तो संघ पर प्रतिबंध लगे। गांधी जी की हत्या में झूठा फंसाकर स्वयं सेवकों को प्रताड़ित किया गया।आपातकाल में प्रतिबंध और प्रताड़ना भी संघ के स्वयंसेवकों ने झेली। वर्ष 1992 में अयोध्या घटना के बाद भी संघ पर प्रतिबंध लगा। कश्मीर, केरल, पश्चिम बंगाल आदि प्रांतों में आज भी संघ प्रचारकों पर हमले हो रहे हैं। लेकिन संघ कभी रुका नहीं, थका नहीं और न कोई स्वयंसेवक विचलित हुआ।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इस शताब्दी यात्रा में मध्यप्रदेश की गौरव नगरी उज्जैन का भी अपना योगदान है। मध्यप्रदेश में संघ कार्य का विस्तार दो दिशाओं से हुआ। एक नागपुर से महाकौशल की ओर तथा दूसरा नागपुर से मालवा की ओर। मालवा क्षेत्र की गौरव नगरी उज्जैन वह स्थान है जहां संघ कार्य 1930 से 1940 के दशक में ही अंकुरित हो गया था। भोपाल से लेकर नीमच तक और इंदौर से लेकर मध्यभारत तक के विस्तार में उज्जैन की भूमिका महत्वपूर्ण रही। इसे वर्ष 1936 में डॉक्टर जी के आह्वान पर हैदराबाद आंदोलन में उज्जैन के स्वयंसेवकों की सहभागिता और बाद में जूनागढ़, दादरा नगर हवेली और गोवा मुक्ति आंदोलन में उज्जैन नगर की सहभागिता इतिहास के पन्नों में है। दादरा नगर हवेली और गोवा मुक्ति आंदोलन में उज्जैन के स्वयंसेवकों का बलिदान भी हुआ। यह हम सभी के लिए गौरव की बात है कि संघ के स्वयं सेवकों ने स्वाधीनता आंदोलन, विभाजन की पीड़ा में शराणार्थियों की सेवा, आंतरिक अशांति और प्रत्येक युद्ध में राष्ट्र रक्षा के लिए पूर्ण समर्पण के साथ कार्य किया है। कई बार मैं सोचकर गर्व अनुभव करता हूं कि मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माध्यम से एक ऐसी संकल्प यात्रा का सहभागी बना जो भारत राष्ट्र के परम वैभव का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रही है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इस शताब्दी यात्रा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें प्रचारकों के रूप में असंख्य विभूतियां आगे आईं, लेकिन किसी ने भी न अपने नाम की चिंता की न अस्तित्व और न ही जीवन की। वे सब राष्ट्र निर्माण कार्य की नींव में समा गये। संघ ने अपनी इस शताब्दी वर्ष यात्रा में समाज और राष्ट्रजीवन के आयाम को स्पर्श किया है। इस कार्य में शाखा से लेकर द्वार तक और फिर खेत पर जाकर भी संपर्क किया है। इसीलिए संघ कार्य आज इतना व्यापक हो पाया है। संघ कार्य केवल संगठनात्मक विस्तार नहीं है, यह साधना है- व्यक्तित्व निर्माण, समाज निर्माण और राष्ट्र निर्माण की। इसीलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी शताब्दी समारोह को उत्सव के रूप में नहीं मना रहा। यह आयोजन राष्ट्र के परम वैभव और विश्व में भारत की सांस्कृतिक पुनर्प्रतिष्ठा के लिएसंकल्प दिवस के रूप में है।
भारतीय समाज में सकारात्मक परिवर्तन को गति देने और समाज में अनुशासन तथा देशभक्ति के भाव को बढ़ाने के उद्देश्य से माननीय सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने समाज में पंच परिवर्तन का आह्वान किया है। इस पंच परिवर्तन में पांच आयाम स्व का बोध अर्थात स्वदेशी, नागरिक कर्तव्य, पर्यावरण, सामाजिक समरसता और कुटुम्ब प्रबोधन शामिल हैं। इसमें स्व के बोध से नागरिक अपने कर्तव्यों के प्रति सजग होंगे। नागरिक कर्तव्य बोध अर्थात कानून के पालन से राष्ट्र समृद्ध व उन्नत होगा। सामाजिक समरसता व सद्भाव से ऊंच-नीच जाति भेद समाप्त होंगे। पर्यावरण से सृष्टि का संरक्षण होगा तथा कुटुम्ब प्रबोधन से परिवार समृद्ध होंगे और बच्चों में संस्कार बढ़ेंगे। पंच परिवर्तन को समाज में लागू करने के लिए हम सभी भारतीय नागरिकों को मिलकर प्रयास करने होंगे।
इसी संदेश की झलक प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के संबोधन में है। श्री मोदी जी ने संघ की शताब्दी यात्रा पर विशेष डाक टिकट और स्मृति सिक्के जारी किए हैं। 100 रुपये के सिक्के पर एक ओर राष्ट्रीय चिह्न है और दूसरी ओर सिंह के साथ वरद् मुद्रा में भारत माता की भव्य छवि और समर्पण भाव से उसे नमन करते स्वयंसेवक दिखाई देते हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 100 वर्ष से बिना थके, बिना रुके, राष्ट्र सेवा के कार्य में लगा हुआ है। यह समर्पित यात्रा हमें राष्ट्र कार्य के लिए प्रेरित करती है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के शताब्दी वर्ष के अवसर पर भारत ने अमृतकाल के युग में प्रवेश कर लिया है। माननीय सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने समाज निर्माण के जो सूत्र दिये हैं इससे प्रेरित होकर निर्माण के विविध आयाम विकसित होने की संभावना है। इसे आत्मसात कर हम अपने प्रदेश और अपने राष्ट्र को विश्व पटल पर स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
आज विजयादशमी की शुभकामनाओं के साथ मैं प्रदेश की साढ़े आठ करोड़ जनता से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की राष्ट्र चेतना से राष्ट्रनिर्माण में सहभागी बनने की अपेक्षा करता हूँ।
(लेखक, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं)