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गम दे गया मानवता के यार का जाना !!

Location: Delhi                                                 👤Posted By: DD                                                                         Views: 3831

Delhi:
के. विक्रम राव
जब मिखाइल गोरबाचोव ने अपनी भारत यात्रा (नवम्बर 1986) पर ( यह उनकी एशिया का पहला सफर था।) आये थे तो उन्होंने राजीव गांधी के साथ नयी दिल्ली घोषणा पत्र रचा था। उसमें एक विशेष उल्लेख था: 'सोवियत संघ और भारत का प्रयास है कि ऐसा विश्व बने जहां न हिंसा हो, न आणविक शस्त्र। "गोरबाचोव की जिंदगी का फलसफा यही था। शांति हो, मानव का विकास हो, उनका यौवन बीता जब चंगेज खां के आधुनिक अवतार जोसेफ स्टालिन का राज था। तभी से इस कम्युनिस्ट तरूण ने ग्लासनोस्त (मुक्त अभिव्यक्ति) तथा पेरस्ट्रोइका (पुनर्निर्माण) का मकसद निर्धारित कर लिया था। नरराक्षस स्टालिन के आतंकी साढे तीन दशकों बाद गोरबाचोव को क्रेमलिन की सत्ता के गलियारे में अवतार एक युगांतकारी तथा युगांतरकारी घटना रही। पहला काम गोरबाचोव का था कि सोवियत संघ के कृत्रिम, दानवीय गठन को स्वाभाविक तथा इंसानी आकार दिया जाये। रूस तब खौफ से मुक्त हुआ। आमजन के सदियों पुराने डर का अंत हो गया। तानाशाह लियोनिड ब्रेज्नेव ने (24 दिसंबर 1979) अपनी लाल सेना को काबुल कब्जाने रवाना किया था, (15 फरवरी 1989 को) अफगानिस्तान को गोरबाचोव ने आजाद कर दिया था। हालांकि फिर अमेरीकियों ने हथियाया और वे मारकर भगाये गये। लेकिन अपनी आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में भारतीयजन गोरबाचोव को खास तौर पर याद करेंगेे, श्रद्धांजलि देंगे। कारण? उन्होंने अपने पड़ोसी राष्ट्रों को सोवियत गुलामी से स्वतंत्र किया। बर्लिन (पूर्वी जर्मनी), पोलैण्ड, बलगेरिया, रोमानिया, हंगरी, मंगोलिया और चेकोस्लोवाकिया को स्वाधीन गणराज्य बनवाया। स्टालिन से ब्रेज्नेव तक ने इन राष्ट्रों की आजादी लाल सेना के मार्फत छीनी थी। गोरबाचोव ने आणविक शस्त्र निर्माण की होड़ खत्म की थी। आर्थिक विकास में राशि निवेश कराया था। वे स्वाधीनता के मसीहा थे। कम्युनिष्ट चीन से आशंकित रहे भारत के आत्मीय रहे। रोनल्ड रीगन वाला अमेरिका पहली बार रूस का सुहृद बना।
मास्को के पुराने स्टालिनवादी गिरोह गोरबाचोव को राष्ट्रशत्रु मानते थे। वे मानव अधिकारों तथा मतदान द्वारा निर्वाचन के हमेशा पक्षधर रहे। यह वाकया है अगस्त 1991 का। तब में एक पत्रकार सम्मेलन में प्योंगयोंग (उत्तरी कोरिया) मैं गया था। अकस्मात खबर आयी कि रूसी फौज ने गोरबाचोव का तख्ता पलट दिया। मास्को के लाल चौक को रूसी टैंकों ने घेर लिया। तब स्टालिनवादी, क्रूर तानाशाह उत्तर कोरिया का किंम जोंग इल (डियर लीडर) ने खुशी का जलसा मनाया था। मैं दुखी था। मगर कम्युनिस्ट पत्रकार हर्ष से झूम रहे थे। तभी खबर पलटी। बोेरिस येल्सिन ने दांव उलट दिया। गोरबाचोव बच गये। साजिश कुचल दी गयी। उस रात मैंने अपने दूधभरे ग्लास को टकराया, पर शराबी कम्युनिस्ट साथी जाम नहीं उठा रहे थे। निराश थे। विषाद में।
गोरबाचोव को अपनी पत्नी राइसा मैक्सिमोना से बड़ा प्यार था। भावुक हो जाते थे। वे कैंसर ग्रस्त थी। मर गयीं। जब 1990 में गोरबाचोव को नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया तो उन्होंने पुरस्कार की समस्त राशि (करीब दस करोड़ रूपये) कैंसरग्रस्त बच्चों को दान में दे दी। मास्को के लाल चौक पर 1987 में उन्होंने एक चौराहे को इंदिरा गांधी का नाम दिया। राजीव गांधी तब वहां थे। इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार के वे विजेता रहे।
इस्लामिस्टों के गोरबाचोव बड़े मनपंसद रहें। सोवियत संघ में व्लादिमीर लेनिन और जोसेफ स्टालिन ने एशियाई इस्लामी राष्ट्रों को कम्युनिस्ट उपनिवेश बना डाला था। तब गोरबाचोव ने इस सोवियत साम्राज्यवाद का उन्मूलन किया। इन राज्यों में: उजबेकिस्तान, अजरबैजान, तुर्कमेनिस्तान, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान आदि थे। इन मुस्लिम राज्यों में स्टालिन के समय मस्जिदें ढा दी गयीं थी। उनमें संगीतालय खोल दिया गया था। अजान ही नहीं, नमाज पर भी पाबंदी लगा दी थी। सुअर का गोश्त खुलेआम बेचा जाता था। इस्लाम को गैरकानूनी करार दिया गया था। जैसा आज कम्युनिस्ट चीन ने मुस्लिम क्षेत्र उइगर में कर डाला है। गोरबाचोव ने इन मुसलमान प्रदेशों को पूरी स्वायतता दी। मास्को के राज से मुक्त कर दिया।
यूक्रेन पर रूसी हमले से गोरबाचोव चिंतित थे। वे आधे यूक्रेनी थे। ननिहाल की तरफ से। मगर जिद्दी पुतिन ने सुनी नहीं। उन्हें इसका क्लेश रहा। इस संदर्भ में राजीव की अभिव्यक्ति बड़ी उचित थी। जब 1989 में वे दोनों दोबारा मिल थे तो राजीव बोले: ??हम जब दोस्तों से मिलते हैं, तो दिल लहराता है, फड़फड़ाता है।?? आम भारतीय की भी ऐसी ही यही भावना थी।
मगर भारतीय कम्युनिस्ट इस पर पीड़ित रहते थे। गोरबाचोव ने विश्व की कम्युनिस्ट पार्टियों को वित्तीय मदद देना बंद कर दिया था। सोवियत वजीफों पर पलने वाले यह कम्युनिस्ट उन्हें आततायी मानते थे। अपनी दिल्ली यात्रा पर गोरबाचोव ने भारत की दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों (माकपा तथा भाकपा) के नेताओं से भेंट करने से इंकार कर दिया। हालांकि नेहरू से अटल तक के दौर में परंपरागत तरीके से रूसी नेता दिल्ली से इन भारतीय कम्युनिस्ट भ्राताओं से मिलते थे।
आज (31 अगस्त 2022) गोरबाचोव के दिवंगत होने से आम इंसान को लग रहा है कि एक महामानुष गुजर गया। चमन को वीरान कर गया। दास्तां कहते-कहते वह सो गया। हम सुनते रह गये। आज अपहरा्न वाराणसी से फोन आया था। वरिष्ठ पत्रकार दयानन्द का। वे काशी पत्रकार संघ के प्रधान सचिव रहे। पत्रकारिता के विद्यापीठ में प्रोफेसर हैं। जनसंचार में डाक्टरेट की। रूंधे कंठ से मास्को से प्राप्त बुरी खबर सुनायी। मैं फाकलैण्ड पर ब्रिटिश उपनिवेशवादी कब्जा पर लिख रहा था। विषय बदल दिया। गोरबाचोव को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।

K Vikram Rao
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E-mail: k.vikramrao@gmail.com

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