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![]() Title : इतिहास पुरूष राजा मानसिंह तोमर Format : HARDCOVER Binding : Hardcover Publisher : Aayaam, Bhopal, MP, India Publication Date : 2009 Pages : 114 Weight : 250 gms Price INR 400.00 Usually ships in 2-3 weeks for ordering email:prativad@gmail.com or contact direct at |
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इतिहास पुरूष राजा मानसिंह तोमर समकालीन इतिहास और सामाजिक परिदृश्य को अभिव्यक्त करती किताब इतिहास पुरूषों पर लेखन हमेशा एक जोखिम भरा काम रहा है। एक ओर तो आपको उस इतिहास पुरूष के व्यक्त्वि के प्रस्तुतीकरण के लिए समकालीन घटनाओं और तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य को संजोना होता है वहीं दूसरी ओर समकालीन ऐतिहासिक तथ्य समूची प्रामाण्किता के साथ यथावत रहे इस ऐतियात पर भी ध्यान देना होता है। इतिहास पुरूष राजा मानसिंह तोमर पर केन्द्रित पुस्तक लिखते समय आर एम पी सिंह ने इन दोनों ही शर्तों का बेहतर निर्वाह किया है इस बात की पुष्टि पुस्तक पढ़ने के साथ ही हो जाती है। पुस्तक में प्राक्कथन और लेखनीय वक्तव्य से भी पहले दिल्ली के विकास में तोमरों एवम् चौहानों के योगदान की चर्चा की गई है जो इस इतिहास पुरूष के समकालीन भारतीय इतिहास में महत्व को प्रतिपादित करती है। लेखकीय वक्तव्य में कहा गया है कि इतिहास तो महापुरूषों को पैदा करता ही है मगर स्वयम् महापुरूष भी इतिहास को बनाते हैं और बकौल लेखक मानसिंह तोमर गोपांकाल के ऐसे ही पुरूषों में से थे जिन्होंने इतिहास का निर्माण किया है। राजा मानसिंह के व्यक्तित्व और कृतित्व और कृतित्व पर लेखन ऐसे परिप्रेक्ष्य में भी सहज नहीं था कि उनका संपूर्ण जीवनवृत्त बहुआयामीय था। राजा मानसिंह एक योद्वा, एक कुशल शासक, साम्राज्य निर्माता, साहित्य एवं संगीत अनुरागी, कला मर्मज्ञ और कविहृदय थे। उनके इस बहुआयामीय व्यक्ति के प्रत्येक आयाम को आर एम पी सिंह जी ने अपनी इस पुस्तक में बड़ी कुशलता से संजोया है। किसी भी इतिहास पुरूष के बारे में लिखते समय सबसे जरूरी ऐहतियात तो यह होता है कि उस इतिहास पुरूष की छवि को अक्षुण रखा जाये जो विशिष्टता है, और पहचान भी। इस सन्दर्भ में लेखक ने ''नपवर के युद्व'' वालअध्याय में एकदम सटीक टिप्पणी की है कि - ''राजा मानसिंह ने आत्मरक्षा, जनता की रक्षा और राज्य की रक्षा के लिए तलवार उठाई थी। इतिहास में एक भी उदाहरण नहीं है कि राजा मानसिंह ने किसी का राज्य हड़पने या अपने राज्यके विस्तार के लिए किसी पर आक्रमण किया हो। वे योद्वा थे आक्रामक नहीं।'' इससे यह भी स्पष्ट होता ही है कि वे एक न्यायप्रिय और धीरोदात्त प्रशासक थे और उनकी वह छवि इस पुस्तक में प्रमुखता से उभरकर आइ पुस्तक के एक अध्याय में ''मान मन्दिर '' और ''गूजरी महल'' की अप्रतिम स्थापत्य कला के माध्यम से राजा मानसिंह तोमर को एक महान निर्माता के रूप में प्रस्तुत किया गया है तो उनके संगीत एवम् साहित्यानुराग की चर्चा एक पृअध्याय में की गई है। किसी भी शासक का संगीत एवम् साहित्यानुरागी होना एक सहज गुण है मगर राजा मानसिंह सच्चे अर्थों में संगीत एवम् साहित्यानुरागी थे और इस बात को लेखक ने उनकी संगीत ग्रंथों की रचना तथा ध्रुपद शैली के प्रणयन से प्रमाणित किया है। आज अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर रागनियों के चित्रण की ''रागमाला'' की जो परम्परा है उसका उद्भव भी राजा मानसिंह तोमर के शासनकाल में ग्वालियर में ही हुआ था। स्वयम् राजा मानसिंतोमर ने इसका उल्लेख ''मान कुतुहल'' में किया है राजा मानसिंह तोमर के जीवनवृत्त का कोई हिस्सा न छूटे इस बात की सावधानी लेखक ने सप्रयास वापरी है। ''मृगनयनी'' शीर्षक वाले अध्याय में जहॉ लेखक ने मानसिंह के प्रणय-प्रसंगों की चर्चा की है वहीं एक अध्यामें समकालीन साहित्य और साहित्यकारों की चर्चा भी की है। उनके कार्यकाल में भक्त कवि सूरदास, संगीत सम्राट स्वामी हरिदास, तानसेन और बैजूबावरा की उपस्थिति उनकी साहित्य और संगीत के प्रति अनुराग को ही पुष्ट करती है। राजा मानसिंह तोमर जिस तोमर राजवंश के गौरव थे उसी राजवंश से जुड़ी रानी पद्मिनि की कहानी, कोहेनूर हीरे की कहानी, हल्दीघाटी युद्व तथा-कथा, पानीपत का युद्व और अन्य तोमर वंशीय राजाओं का विवरण भी इस पुस्तक को सारगर्भित और पठनीय बनाता है। समकालीन सामाजिक जीवन, तोमर शासकों की धार्मिक सहिष्णुता और जैन धर्म का प्रभाव भी पुस्तक के महत्वपूर्ण अध्याय है। यह पुस्तक राजा मानसिंह तोमर के बहुआयामीय व्यक्तित्व और तोमर वंश के शासनकाल की उपलब्धियों को तो दर्शाती ही है यह पुस्तक समकालीन इतिहास और सामाजिक परिदृश्य को भी अभिव्यक्त करती है। पुस्तक की भाषा सरल, सतत प्रवाहय और प्रभावी है। पुस्तक संयोजन और मुद्रण भी श्रेष्ठ है। ''फोटो दीर्घा'' से पुस्तक और भी उपयोगी बन गई है पुस्तक समीक्षक : राजा दुबे | |||||||
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