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समीक्षा: "सितारे ज़मीन पर" – आमिर खान ने फिर छू लिया दिल, दी एक प्रेरणादायक प्रस्तुति

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Place: मुंबई                                                👤By: prativad                                                                Views: 349

20 जून 2025। रिलीज़ के बाद, आमिर खान की नई फिल्म "सितारे ज़मीन पर" ने साबित कर दिया है कि एक अच्छी कहानी, सशक्त अभिनय और सच्ची संवेदना मिलकर दर्शकों को बांध सकते हैं — चाहे फिल्म की अवधि 2.5 घंटे से भी अधिक क्यों न हो।

हालांकि "लाल सिंह चड्ढा" की असफलता के बाद आमिर की वापसी पर संदेह किया जा सकता था, लेकिन "सितारे ज़मीन पर" में उन्होंने न केवल वापसी की है, बल्कि अपने प्रशंसकों को एक मजबूत संदेश भी दिया है — हर व्यक्ति की काबिलियत को उसकी अक्षमता से नहीं, बल्कि उसके जज़्बे से मापा जाना चाहिए।

कहानी की झलक
फिल्म की कहानी आमिर खान द्वारा निभाए गए 'गुलशन' की है — एक अहंकारी बास्केटबॉल कोच, जिसे शराब पीकर गाड़ी चलाने के मामले में सज़ा स्वरूप एक विशेष ज़रूरतों वाली टीम को प्रशिक्षित करने का काम सौंपा जाता है। शुरुआत में वह अपमानजनक भाषा और असंवेदनशीलता से भरा हुआ है, लेकिन समय के साथ खिलाड़ियों से उसका जुड़ाव उसे एक बेहतर इंसान बना देता है।

फिल्म loosely 2018 की स्पेनिश फिल्म “Campeones” से प्रेरित है, लेकिन इसे भारतीय संवेदनाओं और मूल्यों के साथ बख़ूबी ढाला गया है। यह “तारे ज़मीन पर” का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी कहा जा सकता है, लेकिन जहाँ पिछली फिल्म सहानुभूति जगाने का प्रयास करती थी, वहीं यह फिल्म सम्मान और आत्मनिर्भरता को सामने रखती है।

प्रभावशाली पटकथा और संवाद
दिव्य निधि शर्मा की लेखनी में हास्य और भावना का संतुलन देखने को मिलता है। फिल्म दर्शकों को भावुक किए बिना गहरी बात कह जाती है। संवादों में चुटीला व्यंग्य है, तो कहीं-कहीं दिल को छू जाने वाली गंभीरता भी।

अभिनय: सितारे बने सह-कलाकार
जहां आमिर खान की अभिनय शैली कुछ जगहों पर दोहरावपूर्ण लग सकती है, वहीं असली जादू उन कलाकारों में है जो विशेष ज़रूरतों वाले पात्रों की भूमिका निभा रहे हैं — अरुष दत्ता, गोपी कृष्णन वर्मा, वेदांत शर्मा, नमन मिश्रा, ऋषभ जैन जैसे कलाकारों ने फिल्म में जान फूंक दी है। इनकी सहज कॉमिक टाइमिंग और आपसी बॉन्डिंग दर्शकों को गहराई से छूती है।

डॉली अहलूवालिया, ब्रिजेंद्र काला और गुरपाल सिंह जैसे अनुभवी कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाओं में गंभीरता और गरिमा का समावेश किया है।

निर्देशन और संदेश
निर्देशक आर.एस. प्रसन्ना ने फिल्म को संवेदनशील तरीके से पेश किया है। कहानी भले ही एक कोच और उसकी टीम के इर्द-गिर्द घूमती है, लेकिन इसका असली उद्देश्य समाज की सोच को बदलना है — यह बताना कि 'विशेष ज़रूरत' का मतलब 'कमज़ोर' नहीं होता।

फिल्म का सबसे भावुक पल वह है जब गुलशन अपने बच्चे को लेकर असमंजस में है, और तभी एक खिलाड़ी की बात उसे झकझोर देती है — “हमारे जैसे बच्चे किसी को नहीं चाहिए, पर हमारे जैसे बच्चों को बाप आपके जैसा मिलना चाहिए।”

अंतिम निष्कर्ष
"सितारे ज़मीन पर" केवल एक फिल्म नहीं, एक दृष्टिकोण है — एक ऐसा दृष्टिकोण जो हमें इंसानियत, समानता और आत्म-सम्मान की नई परिभाषा सिखाता है। आमिर खान ने एक बार फिर अपनी फिल्मों के माध्यम से दिल जीत लिया है।

रेटिंग: ⭐⭐⭐⭐☆ (4/5)
देखने योग्य: अवश्य — खासकर उन सभी के लिए जो दिल से सोचते हैं।


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