बिहार का राजनैतिक परिदृश्य बड़ा विचित्र-सा हो गया है। भले ही महागठबंधन के सारे दल सब कुछ सही होने का दावा कर रहे हों परन्तु सत्य तो यह है कि कोई कभी भी किसी को धोखा दे सकता है। राजद और जे०डी०यू० में वाक-युद्ध जारी है। लालू प्रसाद यादव की मज़बूरी है कि वे डिप्टी सी०एम० से इस्तीफा दिलवाकर अपने गुनाह को स्वीकार नहीं कर सकते और फिर डिप्टी सी०एम० के बर्खास्त होने की स्थिति में राजनैतिक फायदा भी मिल सकता है।
शायद जो लालू ने जो डर पिछड़ों में पैदा कर अपनी राजनैतिक पकड़ बनाई थी, उसको उभारकर फिर से अपनी और मजबूत पकड़ बनाना मकसद हो सकता है। नीतीश की गले की हड्डी बन गया है राजद। लेकिन मेरे विचार में जिस शुचिता की बात जे०डी०यू० कर रहा है तो क्या उसे गठबंधन करने के पहले राजद का इतिहास नहीं पता था? नीतीश का भाग्य अभी अपने पूरे उत्कर्ष पर है इसलिए उनको विकल्प भी मिल जाते हैं। और मेरे विचार में नीतीश का कोई पॉलिटिकल स्टैंड भी नहीं रहा है। जब मन जिसका समर्थन। शायद नीतीश किसी से भी वैर मोल लेना नहीं चाहते। और बात यह भी है कि नीतीश खेमे के बहुत सारे नेता तो पहले लालू के ही शागिर्द रहे हैं। श्याम रजक का बयान कि लालू यह सब बुजुर्गियत में बोल रहे हैं,यह श्याम रजक की उस मानसिकता को दिखाता है कि जब जैसा तब तैसा। रजक को आखिर इस मुकाम पर पहुँचाया कौन है? खैर, फिर भी लालू ने अगर गलती की है तो इसका समर्थन नहीं किया जा सकता। कांग्रेस की स्थिति तो साँप-छुछुंदर की हो गई है। आखिर किसके समर्थन में बोले और उसे नीतीश के मजबूत पकड़ का आभास भी है।
और वह यह भी जानती है कि नीतीश कभी भी किसी के साथ हाथ मिला सकते हैं। उनके लिए राजनैतिक शुचिता सिर्फ आर्थिकता में ही दिखती है अपने राजनैतिक धर्म में नहीं दिखता। एक दूसरी बात यह भी है कि पिछले चुनाव में लालू को नीतीश ने ही आक्सीजन देकर जीवन दे दिया और फिर लालू ने पिछड़ों की गोलबंदी कर अपनी शक्ति भी दिखला दी थी। आज भी लालू बिहार में पिछड़ों की राजनीति के केंद्रबिंदु हैं , इसमें कोई दो राय नहीं। लालू परिवार का समय इस समय ठीक नहीं चल रहा है इसलिए कभी अपने रहे भी आक्रामक हो गए हैं ।नीतीश खेमे और सुशील मोदी की यह माँग कि लालू इतनी संपत्ति का ब्यौरा दें,कहीं से भी गलत नहीं है ।लेकिन इस माँग के समर्थन की मजबूती तब बढ़ जाती जब ये लोग अपने दल के नेताओं से भी यह पूछते कि उनके पास इतना पैसा कहाँ से आ गया ? शायद लालू का मोदी का खुल्लम-खुला विरोध भी लालू के लिए भारी पड़ गया। लेकिन कुछ भी हो अगर लालू परिवार ने गलती की है तो उसे जायज नहीं ठहराया जा सकता। लालू ने शायद यह भूल भी कि उन्होंने सर्वजन राजनीति को न चुनकर सिर्फ पिछड़ी जाति की राजनीति की।पिछड़े वर्ग की राजनीति करते तो आज परिदृश्य कुछ दूसरा होता। और पिछड़ी जाति की राजनीति करते-करते खुद आर्थिक अगड़ा बन गए। हो सकता है पैसे ईमानदारी से कमाये गए होंगे जैसा लालू का दावा है लेकिन पिछड़ों के नेता को चाहिए कि वे पिछड़ों के लिए काम करें या तो वे धन पिछड़ों में बाँट दे या फिर खुद को पिछड़ा और पिछड़ों का नेता कहना बंद करें।
- रमेश कुमार मिश्र
नीतीश की गले की हड्डी राजद
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Patna 👤By: DD Views: 21572
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