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हॉलीवुड ने जगाई आशा ! भारत में भी बढ़े देसी भाषा !!

Location: Bhopal                                                 👤Posted By: prativad                                                                         Views: 2713

Bhopal: के. विक्रम राव Twitter ID: Kvikram Rao
बॉलीवुड की बड़ी जीजी हॉलीवुड में आस्कर पुरस्कार की सूची में मात्र बारह लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा आयरिश (ब्रिटेन की पड़ोसी आयरलैंड की) फिल्म "कैलिन सियुइन" (गुमसुम बालिका) का वैश्विक प्रतिस्पर्धी सूची में आ जाना एक विशिष्ट उपलब्धि है। अन्य बोलियों, जुबानों, उपभाषाओं आदि के लिए प्रेरक हैं, प्रोत्साहक भी। भारत की तुलु, मगही, भोजपुरी, बोडो जैसी बोलियों के लिए अनुकरणीय उदाहरण हैं। हालांकि भारत की राष्ट्रीय उपलब्धि तो आज प्रातः (13 मार्च 2023) अमेरिका से मिली खबर से सिद्ध हो जाती है, क्योंकि तेलुगु फिल्म RRR का अत्यंत जनप्रिय गीत "नाटू-नाटू" आस्कर प्रतिस्पर्धा में अव्वल नामित हो गया। गायक-द्वय राहुल सिप्लीगुंज तथा कालभैरव द्वारा यह वाणीबध्द किया गया है। दुनिया में बोली जाने वाली सात हजार भाषाओं (भारत की 122 मिलाकर) में यह तेलुगु भाषा का महत्व विश्व पटल पर बढ़ाता है। हॉलीवुड में "नाटू-नाटू" गीत गा रहे इन तेलुगू जनों को अमेरिका में बसे सवा आठ लाख तेलुगूभाषी तथा आंध्र-तेलंगाना आदि के नौ करोड़ जन अपनी मातृभाषा में सुना होगा। यह मशहूर लोकगीत "नाटू-नाटू" निर्माता एसएस राजामौली की फिल्म RRR की है। ऑस्कर में भी ये मूलगीतों के वर्ग में शामिल रहा। इसकी शूटिंग यूक्रेन में रूस से जंग के दौरान हुई थी। दरअसल आरआरआर की टीम यूक्रेन में कुछ दृश्य शूट करने के दौरान फंस गई थी जिसके बाद ?नाटू-नाटू? की शूटिंग यूक्रेन के प्रेजिडेंट व्लादीमीर जेलेंस्की के महल में हुई थी।
आइरिश भाषाई की यह नामित फिल्म "गुमसुम बालिका" हमारे विशाल राष्ट्र की उपभाषाओं के लिए एक नमूना है, चुनौती है। कैथरीन क्लिंच द्वारा लिखित यह कथानक बताता है कि नौ साल की एक लड़की जो एक भीड़भाड़ वाले, निर्धन परिवार की है जिसे गर्मियों में अपनी माँ के रिश्तेदारों के पास रहने के लिए भेज दिया जाता है। "द क्वाइट गर्ल" 1980 के दशक में आयरलैंड में एक आकर्षक नाटक रहा। क्लेयर कीगन के एक उपन्यास से उधृत कहानी एक नौ वर्षीया लड़की - कैट पर केंद्रित है। लेखक क्लेयर कीगन के उपन्यास 'फोस्टर' के फिल्म रूपांतरण को सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय फीचर फिल्म के लिए ऑस्कर के लिए नामांकित पांच फिल्मों में से चुना गया है।
भारतीय भाषाओं और बोलियों के सम्यक तथा द्रुत उन्नयन की नजर से ऑस्कर की इस सूचीबद्ध आइरिश चलचित्र ने भाषायी विवाद के कोलाहल से मुद्दे को ऊपर उठाया है। यह साबित करता है कि फिल्मी कला को उत्कृष्टता से उठाया जा सकता है। फूहड़पन, सतही निर्देशन, सस्ती शब्दावलि, चलताऊ प्रस्तुतीकरण आदि के बिना भी सफल फिल्में बनाई जा सकती हैं।
इस परिवेश में कुछ आयरिश भाषा के बारे में ऐतिहासिक चर्चा जरूरी है। मसलन पड़ोसी इंग्लैंड द्वारा पहला कब्जा स्वतंत्र आयरलैंड पर 1541 में हुआ था। इंग्लिश बादशाह हेनरी अष्टम ने अपने को आयरलैंड का भी राजा घोषित कर दिया था। तब हिंदुस्तान में मुगल साम्राज्य कायम हो चुका था। भारत की भांति आयरलैंड पर भी ब्रिटिश सम्राट ने स्थानीय सेल्टिक भाषा को काटकर अपनी अंग्रेजी थोप दी थी। हालांकि शब्दों, अभिव्यक्ति की शैली और राजनीतिक महत्व मे आयरिश भाषा बड़ी थी।
इसीलिए यहां उल्लिखित करना आवश्यक है कि भारत के चौथे राष्ट्रपति तथा यूपी के तीसरे राज्यपाल वीवी गिरी (वराहगिरी वेंकटगिरी : 1969 से 1974) के डबलिन में आयरिश गणराज्य के राष्ट्रपति ईमोन डी वेलेरा सहपाठी रहे थे। दोनों ने ब्रिटिश साम्राज्यवादी शासन के विरुद्ध संघर्ष किया था। जेल गए थे। दोनों देश (भारत तथा आयरलैंड) ब्रिटिश उपनिवेश रहे। दोनों राष्ट्रों को आजादी देने की बेला पर ब्रिटिशराज ने विभाजित कर डाला था। इसकी विभीषिका आज तक वे दोनों भुगत रहे हैं। आयरलैण्ड तो पांच सदियों 1541 से बादशाह हेनरी अष्टम के काल से तथा भारत 1857 से मलिका विक्टोरिया द्वारा व्यापारी ईस्ट इंडिया कम्पनी से सत्ता लेने के समय 1947 तक परतंत्र रहा। किन्तु उत्तरी आयरलैण्ड और आयरिश गणराज्य अभी भी दो राष्ट्रों के अस्तित्व वाले है। विभाजित हैं। इस त्रासद तथ्य को मशहूर आयरिश नाटकाकार जार्ज बर्नार्ड शाह ने आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री (जवाहरलाल नेहरु) को पत्र में लिखा था : "साम्राज्यवादियों ने मेरे स्वदेश की भांति तुम्हारे देश को भी जाते?जाते बांट दिया।" ("बंच आफ ओल्ड लेटर्स", आर्क्सफोड प्रकाशक)। यूं प्रमुख आयरिश लोग जो भारतीय जनसंघर्ष से जुड़े रहे उनमें सिस्टर निवेदिता थीं जो भारतीय कला, इतिहास तथा कांग्रेस आंदोलन में क्रियाशील रहीं। दूसरी थीं एनी बेसेन्ट। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता की थी। आल्फ्रेड वेब्स 1894 में कांग्रेस के सभापति थे। कवि?युगल कजिन्स तथा मार्गरेट नोबल ने रवीन्द्रनाथ ठाकुर की रचना जनगणमन का अंग्रेजी में रुपांतरण किया था।
इन्ही प्रकरणों तथा संदर्भों के आधार पर आयरिश भाषा को ऑस्कर द्वारा प्रदत्त सम्मान से भारत में भी भाषायी संघर्ष तथा उपलब्धि पर खुली बहस होनी चाहिए। आखिर आजादी के 75 वर्ष बाद (अमृतकाल में) भी भारत गूंगा हो, भाषा विलायती, गुलामी की हो ? तो हर राष्ट्रवादी का दिल तो जलेगा ही। मगर कब तब तक यह गवारा होगा। हॉलीवुड से एक कठोर संदेश आया है, संकेत भी है। प्रश्न भी !

K Vikram Rao
Mobile : 9415000909
E-mail: k.vikramrao@gmail.com

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