
8 मई 2025। भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध एक बार फिर तनावपूर्ण मोड़ पर हैं। हाल ही में पाकिस्तान ने 1972 के ऐतिहासिक शिमला समझौते को निलंबित कर दिया, जो दोनों देशों के बीच शांति और द्विपक्षीय बातचीत का आधार था। यह फैसला भारत द्वारा आतंकवाद के खिलाफ ‘ऑपरेशन सिंदूर’ चलाए जाने से ठीक पहले आया, जिसमें भारत ने कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में पाकिस्तान स्थित आतंकी ठिकानों पर निशाना साधा।
भारत ने कहा कि उसकी कार्रवाई सीमित, लक्षित और गैर-उकसावे वाली थी। बयान में यह भी स्पष्ट किया गया कि किसी भी पाकिस्तानी सैन्य सुविधा को निशाना नहीं बनाया गया। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इस हमले को "कायरतापूर्ण" बताया और जवाबी कार्रवाई की चेतावनी दी।
शिमला समझौता भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच 1971 के युद्ध के बाद हुआ था। इसका उद्देश्य आपसी विवादों को केवल द्विपक्षीय बातचीत के माध्यम से हल करना था, और संयुक्त राष्ट्र जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को इससे दूर रखना था। इस समझौते में नियंत्रण रेखा (LoC) की स्थापना की गई थी, जो आज भी दोनों देशों के बीच अर्ध-सीमा के रूप में कार्य करती है।
लेकिन पाकिस्तान ने इस समझौते की भावना का बार-बार उल्लंघन किया, खासकर सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देकर। कश्मीर में उरी, पुलवामा, और हाल ही में पहलगाम जैसे हमले इसी नीति का हिस्सा रहे हैं। भारत ने इस स्थिति से निपटने के लिए कई कूटनीतिक और आर्थिक कदम उठाए हैं, जिनमें सिंधु जल संधि का निलंबन भी शामिल है।
अब जब पाकिस्तान ने शिमला समझौते को स्थगित किया है, तो यह भारत को सैन्य और रणनीतिक रूप से अधिक लचीलापन देता है। भारत अब आतंकवादी ठिकानों पर अधिक सक्रिय कार्रवाई कर सकता है, और नियंत्रण रेखा पर अपने हितों की रक्षा के लिए नई पहल कर सकता है। यह स्थिति पाकिस्तान के लिए खतरनाक हो सकती है क्योंकि उसकी आर्थिक हालत खराब है और वह लंबे समय तक संघर्ष नहीं झेल सकता।
वहीं अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य भी भारत के पक्ष में है। भारत एक उभरती हुई आर्थिक और सैन्य शक्ति है, जबकि पाकिस्तान वैश्विक मंच पर अलग-थलग पड़ता जा रहा है। अमेरिका, यूरोप, अरब देश और यहां तक कि चीन भी अब भारत के साथ संबंध मजबूत करना चाहते हैं।
शिमला समझौते का निलंबन कूटनीतिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण मोड़ है। इससे न केवल भारत को अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करने का अवसर मिला है, बल्कि पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक समर्थन पाने का मार्ग भी प्रशस्त हुआ है। आने वाले समय में यह देखना होगा कि यह घटनाक्रम क्षेत्रीय शांति को किस दिशा में ले जाता है।