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जी7 की घटती साख: वैश्विक नेतृत्व की चुनौती

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Place: भोपाल                                                👤By: prativad                                                                Views: 430

17 जून 2025। कभी दुनिया की सबसे प्रभावशाली ताकतों में शुमार जी7 समूह आज गंभीर संकट और असहमति से जूझ रहा है। कनाडा में होने वाला आगामी जी7 शिखर सम्मेलन न केवल यूक्रेन और गाजा जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर मतभेद उजागर करेगा, बल्कि समूह की वैश्विक भूमिका और एकता पर भी सवाल खड़े करेगा।

जी7 देशों – अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान – के बीच अब पहले जैसी एकजुटता नहीं रही। वैश्विक आर्थिक व्यवस्था पर उनका प्रभुत्व लगातार कम हो रहा है, विशेषकर ब्रिक्स जैसे समूहों के उभार और रूस-चीन साझेदारी के चलते। यह समूह अब अपने आप में दुनिया की आवाज नहीं रह गया है, जबकि उभरती अर्थव्यवस्थाएं अब अपनी शर्तों पर वैश्विक व्यवस्था में भागीदारी चाहती हैं।

ट्रम्प की अमेरिका में वापसी की संभावना ने स्थिति और जटिल कर दी है। 2018 में ट्रम्प ने कनाडा में हुए शिखर सम्मेलन के संयुक्त बयान में शामिल होने से इनकार कर दिया था। ट्रम्प ने न केवल व्यापार को हथियार बनाया, बल्कि कनाडा जैसे साझेदार देशों को अपमानित भी किया। नए कनाडाई प्रधानमंत्री माइकल कार्नी अब अमेरिका की दादागीरी का विरोध करने की तैयारी में हैं।

वर्तमान में, यूक्रेन और गाजा जैसे संवेदनशील मुद्दों पर जी7 की राय बंटी हुई है। जलवायु परिवर्तन, व्यापार और विकासशील देशों को लेकर भी मतभेद गहरे हैं। जबकि पिछले इटली शिखर सम्मेलन में यूक्रेन पर 18 और गाजा पर 10 पैराग्राफ दिए गए थे, इस बार किसी एकमत भाषा की संभावना बेहद कम है।

रूस और चीन की रणनीतिक साझेदारी, ब्रिक्स का विस्तार, और विकसित होती दक्षिणी अर्थव्यवस्थाएं जी7 की सर्वोच्चता को सीधी चुनौती दे रही हैं। दुनिया अब बहुध्रुवीयता की ओर बढ़ रही है – जहां जी7 अकेले विश्व को दिशा नहीं दे सकता।

कुल मिलाकर, जी7 अब crossroads पर खड़ा है। क्या यह समूह नई वैश्विक वास्तविकताओं को स्वीकार कर खुद को ढाल पाएगा? या फिर यह अपने ही अंतर्विरोधों में उलझकर अप्रासंगिक होता जाएगा? आने वाला सम्मेलन इसका संकेत देगा।


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