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बीजेपी में नेतृत्व परिवर्तन पूरा: अब संगठन भी मोहन के मन का!

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Place: भोपाल                                                👤By: prativad                                                                Views: 326

2 जुलाई 2025। मध्यप्रदेश की राजनीति में लंबे विचार-विमर्श और संगठनात्मक मंथन के बाद हेमंत खंडेलवाल को भाजपा का नया प्रदेश अध्यक्ष निर्विरोध चुन लिया गया है। इस निर्णय के साथ ही महीनों से चल रही अटकलों और लॉबिंग की पटकथा का पटाक्षेप हो गया है।

हालांकि अध्यक्ष पद के लिए कोई औपचारिक चुनाव नहीं हुआ, पर राजनीतिक संकेतों और भीतरखाने समीकरणों ने पहले ही साफ कर दिया था कि यह चयन केवल संगठन का फैसला नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की राजनीतिक पकड़ और रणनीतिक कौशल की पुष्टि है।

सत्ता-संगठन समन्वय: सैद्धांतिक आदर्श बनाम व्यावहारिक दबाव
भाजपा की परंपरा रही है कि सरकार और संगठन में सामंजस्य बना रहे, लेकिन सत्ता और संगठन के बीच टकराव भी अतीत में अनेक बार सामने आया है। इतिहास गवाह है कि कई बार प्रदेश अध्यक्ष ऐसे भी रहे जो तत्कालीन मुख्यमंत्री की पसंद नहीं थे, जिससे समन्वय में दरार आई।

मगर इस बार तस्वीर साफ है। खंडेलवाल के चयन को मुख्यमंत्री मोहन यादव के लिए राजनीतिक संबल के रूप में देखा जा रहा है। इसे सही मायनों में "गोल्डन हेमंत काल" कहा जा सकता है, जहां संगठन और सत्ता की नब्ज एक ही धड़कन में चलती नजर आ रही है।

राजनीतिक संतुलन का शुद्ध प्रयोग
खंडेलवाल मालवा के बाहर के नेता हैं, जबकि सीएम मालवा से आते हैं। जातीय संतुलन के लिहाज़ से वे वैश्य समुदाय से हैं, जो भाजपा का पारंपरिक समर्थन आधार रहा है। लो-प्रोफाइल सार्वजनिक छवि के बावजूद वे पूर्व सांसद रह चुके हैं और संगठन के लिए उपयुक्त चेहरा माने जा रहे हैं।

बीजेपी की यही खूबी रही है—'परफॉर्मेंस पहले, पब्लिसिटी बाद में'। हेमंत खंडेलवाल की नियुक्ति भी इसी सिद्धांत पर आधारित है।

जब पसंद मुख्यमंत्री की हो, तो शीर्ष नेतृत्व की मुहर पक्की मानी जाती है
राजनीतिक विश्लेषण का केन्द्रीय बिंदु यही है कि यह नियुक्ति किसी समानांतर शक्ति केंद्र की नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री की पसंद की ही पुष्टि है। यह मानना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और संघ के वरिष्ठ प्रचारक सुरेश सोनी—तीनों का समर्थन मुख्यमंत्री मोहन यादव को प्राप्त है। यही समर्थन इस फैसले की रीढ़ है।

बीजेपी की कार्यप्रणाली में जब तक यह ‘वरदहस्त’ बना रहे, तब तक किसी भी अंदरूनी विरोध की संभावना नगण्य मानी जाती है।

अध्यक्ष चयन की राजनीति में मात खा गए कई दिग्गज
इस चयन ने उन कई नेताओं की उम्मीदों पर विराम लगा दिया, जो अध्यक्ष पद की दौड़ में थे और शायद मुख्यमंत्री के साथ सामंजस्य नहीं बना पाते। इस कदम ने न केवल संभावित सत्ता-संगठन संघर्ष को टाल दिया, बल्कि संकेत भी दिया कि बीजेपी नेतृत्व अब मध्यप्रदेश में नए नेतृत्व को आकार देने के लिए प्रतिबद्ध है।

सत्ता से सेवा तक: अब बदलते भूमिकाओं का समय
भाजपा में यह स्पष्ट संदेश गया है कि जो पहले पावरफुल हुआ करते थे, उन्हें अब संगठन या जनसेवा की ओर झुकना होगा। संगठन में 'पोजिशन' नहीं, 'परफॉर्मेंस' मायने रखती है।

भविष्य की पटकथा: 2028 की तैयारी हेमंत के नेतृत्व में
अध्यक्ष का कार्यकाल तीन वर्ष का होता है और अगला विधानसभा चुनाव लगभग साढ़े तीन साल दूर है। ऐसे में संभावना यही है कि खंडेलवाल के नेतृत्व में ही भाजपा चुनावी रण में उतरेगी।

इस दौरान मोहन यादव के सामने सिंहस्थ जैसे बड़े आयोजन की अग्निपरीक्षा है, जो केवल प्रशासनिक नहीं बल्कि राजनीतिक परफॉर्मेंस का भी बैरोमीटर होगा।

बीजेपी की संगठनात्मक संरचना की मजबूती
भाजपा में अध्यक्ष से भी बड़ी भूमिका संगठन महामंत्री की होती है, जो वैचारिक अनुशासन का वाहक और शिकायत निवारण का केंद्र होता है। यही कारण है कि बीजेपी का संगठनात्मक ढांचा कांग्रेस से अलग और अधिक सुव्यवस्थित दिखता है।

हेमंत खंडेलवाल का चयन भाजपा के संगठनात्मक अनुशासन, नेतृत्व के एकमत और मुख्यमंत्री मोहन यादव के राजनीतिक कौशल का प्रतिफल है। अब पार्टी के पास स्पष्ट नेतृत्व है, और सरकार-संगठन की एकजुटता का अगला इम्तिहान आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव होंगे।

यह नियुक्ति बताती है कि बीजेपी में नेतृत्व चयन केवल चेहरों का चयन नहीं, बल्कि रणनीतिक संतुलन और भविष्य की तैयारियों का रोडमैप हो रहा है।

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