
1 जून 2025। जब दीपिका पादुकोण ने संदीप रेड्डी वांगा की फिल्म स्पिरिट से बाहर होने का फैसला किया, तो यह बॉलीवुड में मौजूद लैंगिक भेदभाव की परतें खोल कर रख देता है। यह वही इंडस्ट्री है जहां मेल स्टार्स के प्रोजेक्ट छोड़ने को 'क्रिएटिव आज़ादी' का नाम दिया जाता है — जैसे सलमान खान द्वारा संजय लीला भंसाली की इंशाल्लाह छोड़ना। लेकिन जब बात किसी महिला की होती है, तो उसे “अप्रोफेशनल” बता दिया जाता है।
दीपिका ने फिल्म से अलग होने के लिए काम के घंटे तय करने, 40 करोड़ रुपये की फीस, शूटिंग तय समय से ज़्यादा खिंचने पर अतिरिक्त भुगतान और मुनाफे में हिस्सेदारी की मांग की थी — जो आमतौर पर पुरुष सितारों को मिलती है। जबकि उनके को-स्टार प्रभास की फीस 100 से 200 करोड़ रुपये तक मानी जाती है।
दीपिका के बाहर होते ही अगले ही दिन उनकी जगह एनिमल से चर्चित हुईं तृप्ति डिमरी को कास्ट कर लिया गया। फिर यह भी सामने आया कि दीपिका और निर्देशक वांगा के बीच विवाद की एक वजह फिल्म में ‘बोल्ड सीन’ की संख्या थी।
वांगा ने सोशल मीडिया पर जवाब देते हुए लिखा:
"जब मैं किसी को कहानी सुनाता हूं, तो भरोसे के साथ सुनाता हूं... लेकिन आपने जो किया, उसने आपके बारे में बहुत कुछ बता दिया। ये feminism है? अगली बार पूरी कहानी बताना... मुझे फर्क नहीं पड़ता। #dirtyPRgames — खुंदक में बिल्ली खंबा नोचे!"
उधर, उसी दिन कोपेनहेगन में Cartier इवेंट में मौजूद दीपिका ने एक इंटरव्यू में शांति से कहा:
“मैं हमेशा सच बोलने और अपने अंतरात्मा की सुनने में यकीन रखती हूं। जो भी फैसला मुझे आंतरिक शांति दे, वही मेरा रास्ता होता है।”
इसके बाद सोशल मीडिया पर दीपिका समर्थकों और वांगा के प्रशंसकों के बीच ज़ोरदार बहस छिड़ गई।
वकील और एक्टिविस्ट देवरूपा रक्षित कहती हैं:
“यह सिर्फ एक फिल्म या फीस की बात नहीं है, यह उस गहरी पितृसत्तात्मक सोच की मिसाल है, जो किसी भी महिला को उसकी शर्तों पर काम करने की अनुमति नहीं देती। जैसे ही कोई महिला अपनी सीमाएं तय करती है, या बराबरी की मांग करती है, उसे 'मुश्किल', 'घमंडी' या 'बदलने लायक' बता दिया जाता है।”
रक्षित की इस सोच का समर्थन सोनम कपूर ने भी सोशल मीडिया पर किया। उन्होंने आगे कहा:
“महिलाओं ने खुद को इसमें पहचाना — जब उनसे काम के घंटे तय करने या मेहनताना बढ़ाने की बात पर नाराज़गी जताई गई। जबकि पुरुष सितारे लगातार फ्लॉप देते हुए भी तीन-चार गुना ज़्यादा फीस मांगते हैं और कोई सवाल नहीं उठता।”
एक वरिष्ठ महिला निर्माता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा:
"अब अभिनेत्रियां अपने आत्म-सम्मान के साथ समझौता नहीं कर रही हैं, और यही बदलाव बॉलीवुड की सत्ता को हिला रहा है।"
ऐसे उदाहरण पहले भी सामने आ चुके हैं — जैसे अनुष्का शर्मा द्वारा महिला-केंद्रित कहानियों का निर्माण, या करीना कपूर खान द्वारा मातृत्व में काम की सुरक्षा की मांग। अब महिलाएं पीछे नहीं हट रहीं।
हालांकि दीपिका के बाहर होने के बाद उनकी लोकप्रियता में गिरावट नहीं आई। खबरें हैं कि वे जल्द ही डायरेक्टर एटली की अगली फिल्म में अल्लू अर्जुन के साथ नज़र आ सकती हैं। एक लेखक कहते हैं:
“अब दौर इमेज-बेस्ड स्टोरीटेलिंग का है। जब कोई अभिनेत्री किसी बड़ी सोच की प्रतीक बन जाती है, तो उसे हिट फिल्म की जरूरत नहीं होती — वह खुद कहानी बन जाती है।”
दूसरी ओर, वांगा की रणनीति कुछ लोगों को पब्लिसिटी स्टंट लग रही है। एक पीआर एक्सपर्ट कहते हैं:
“हर बार जब वांगा खुद को misunderstood बताकर विक्टिम की तरह पेश करते हैं, वो एक खास पुरुष दर्शक वर्ग में अपनी पकड़ मजबूत करते हैं।”
लेकिन ट्रेड एनालिस्ट तरण आदर्श इससे सहमत नहीं हैं। उनका कहना है,
“अगर कोई कलाकार कहानी लीक करता है, तो यह गलत है। पर फिल्में छोड़ना कोई नई बात नहीं। 70 और 80 के दशक में भी कलाकार ऐसा करते थे, लेकिन उस वक्त इसे इस तरह मीडिया सर्कस नहीं बनाया जाता था।”
कोलकाता की समाजशास्त्री सुस्मिता बंदोपाध्याय कहती हैं:
“फेमिनिज़्म का मकसद है औरतों को एक-दूसरे का समर्थन देना — न कि एक को ऊपर उठाकर दूसरी को गिराना। इस पूरे विवाद में तृप्ति को जिस तरह निशाना बनाया गया, वह दुखद है। अंत में चाहे दीपिका हों या तृप्ति, हार तो एक औरत की ही हुई।”