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संगीत के शत्रु तालिबानियों के करतूतों की अब इंतिहा हो गई !

Location: भोपाल                                                 👤Posted By: prativad                                                                         Views: 3252

भोपाल: के. विक्रम राव Twitter ID: Kvikram Rao


भारत में अफगन-तालिबानियों के हमदर्दों के लिए खास खबर। दो दिन बीते (29 जुलाई 2023) इस हैवानी जमात ने शहर हेरात के चौराहे पर सारे संगीत वाद्य यंत्र जला डाले। गायन को गुनाह करार देकर, कलाकारों को भूखों मरने पर लाचार कर दिया। अफगानिस्तान के इस पश्चिमोत्तर इलाके हेरात से बस ढाई सौ किलोमीटर दूर है गोर प्रांत। यहां के लुटेरे महमूद ने पृथ्वीराज चौहान को 18वें युद्ध में तराइन के मैदान (1192) में हराया था। देशद्रोही राजा जयचंद की मदद पाई थी। काबुल में तालिबानी सरकार-नियंत्रित संवाद समिति बख्तार ने बताया कि गिटार, हार्मोनियम, तबला, स्पीकर्स, बांसुरी, सारंगी, शहनाई तंबूरा, सितार आदि सब आग में राख कर दिए गए।
बेचारा मशहूर गायक जावेद शाकिर अब फुटपाथ पर बूट पॉलिश करके पेट पालता है। शॉकी के संगीत पर तालिबान द्वारा प्रतिबंध लगा दिया गया है। वह अपने लंबे बालों में तेल लगाता था और टेलीविजन और शादियों में प्रदर्शन करता था। वह 15 साल की उम्र से गा रहे हैं। इसे "गैर-इस्लामिक" कहा गया। शॉकी, एक पति और सात बच्चों के पिता, गुजारा करने के लिए संघर्ष करते हैं। रोजाना जूते पॉलिश करके लगभग 250 एएफएन ($4) कमाते हैं। "कई बार, हमारे पास रातों में खाने के लिए रोटी नहीं होती है। मेरे बच्चे भूखे सोते हैं।" उन्होंने कहा : "तालिबान खुशी और संगीत के दुश्मन हैं।" अगस्त 2021 के बाद सोशल मीडिया पर कई वीडियो साझा किए गए, जिनमें संगीतकारों को पीटते हुए, उनके चेहरों को कोयले से काला करते हुए, उनके संगीत वाद्ययंत्रों को उनके गले में लटकाते हुए, एक उपदेश के रूप में जनता को दिखाया गया।
हालांकि अफगानिस्तान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ म्यूजिक (एएनआईएम) के संस्थापक और निदेशक अहमद नासिर सरमस्त अभी भी अफगानिस्तान के संगीत को जीवित रखने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। उन्होंने बताया : "कुछ संगीतकार देश में कम आय वाली नौकरियों जैसे बढ़ईगीरी, जूते की मरम्मत, सेकेंड-हैंड बिक्री और पेंटिंग जैसी दैनिक मजदूरी वाली नौकरियों के माध्यम से अपना जीवन जारी रखते हैं।" तो जानिए इस महान संगीत भक्त पठन को। अहमद नासर सरमस्त एक अफगान-ऑस्ट्रेलियाई नृवंशविज्ञानी हैं। उनके पिता, उस्ताद सलीम सरमस्त, अफगानिस्तान में एक प्रसिद्ध संगीतकार, संगीतकार थे। सरमस्त ने 1981 में एक अफगान संगीत विद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। बाद में उन्होंने 1990 के दशक में चल रहे अफगान गृहयुद्ध के कारण अफगानिस्तान छोड़ दिया। उन्होंने 1993 में मॉस्को स्टेट कंज़र्वेटरी से संगीतशास्त्र में मास्टर डिग्री हासिल की। उन्हें 1994 में ऑस्ट्रेलिया में शरण दी गई थी। सरमस्त 2005 में मोनाश विश्वविद्यालय से पीएचडी करके संगीत में पीएचडी करने वाले पहले अफगान बन गए। तालिबान की हार के बाद अपने मूल देश में संगीत को पुनर्जीवित करने में मदद करने के लिए अफगानिस्तान वे लौट आए थे। अफगान शिक्षा मंत्रालय के निमंत्रण के तहत, सरमस्त अफगान संगीत परंपराओं को बहाल करने की योजना के साथ लौटे, जिन्हें तालिबान शासन के वर्षों के तहत दबा दिया गया था। उन्होंने वंचित बच्चों, अनाथों और सड़क पर रहने वाले बच्चों को विशेष रूप से संगीत शिक्षा प्रदान करने की योजना बनाई थी। उन्होंने सह-शैक्षिक शिक्षण वातावरण की पेशकश पर भी बहुत महत्व दिया। सरमस्त 11 दिसंबर 2014 को तालिबान द्वारा किए गए आत्मघाती हमले में घायल हो गये थे। तालिबान ने उन पर अफगानिस्तान के युवाओं को भ्रष्ट करने का आरोप लगाया। हमले के बाद वे पूरी तरह से बहरे हो गये थे। आपातकालीन सर्जरी के लिए उन्हें काबुल के एक अस्पताल ले जाया गया। बाद में, वह ऑस्ट्रेलिया लौट आए, जहां सर्जनों ने उनके सिर के पीछे से छर्रे के ग्यारह टुकड़े निकाले, जिससे उनके एक कान से आंशिक रूप से सुनने की क्षमता बहाल हो गई। हमले के कारण सरमस्त अभी भी पीड़ित है।
इस तालिबानी हरकत से कई भारतीय संगीतप्रेमियों को कट्टरवादी छठे मुगल बादशाह औरंगजेब आलमगीर की याद ताजा हो उठी। वह एक तानाशाह और क्रूर शासक था। सत्ता हासिल करने के लिए ऐसा शासक जिसने अपने पिता को कैद करवा दिया और भाई दारा शिकोह का सिर कलम करवा दिया। उसके हाथ न जाने कितनों के खून से रंगे। मगर संगीत से उसे बहुत ज्यादा चिढ़ थी। कई इतिहासकारों ने कुछ किस्सों का जिक्र करते हुए अपनी किताब में लिखी है कि औरंगजेब को किस हद तक संगीत नापसंद था। पूरी मुगल सल्तनत में एक ऐसा दौर भी देखा गया जब संगीतकारों के भूखे मरने के दिन आ गए। वाद्ययंत्रों पर धूल की पर्त चढ़ते लगी। औरंगजेब ने अपने दौर में संगीत पर ऐसी पाबंदी लगाई। इतालवी पर्यटक मनूची ने इस बात का जिक्र अपने संस्मरण में किया है, वो लिखते हैं-एक ऐसा दौर भी आया जब संगीतकार उनके इस प्रतिबंध से तंग आ गए और विरोध प्रदर्शन निकालने की योजना बनाई। तैयारी शुरू हुई। दिल्ली की जामा मस्जिद के पास एक हजार संगीतकार जमा हुए। प्रदर्शनकारियों ने ऐसे रोना शुरू किया मानों जनाजा निकाला जा रहा है। यह वो वक्त था जब औरंगजेब मस्जिद से नमाज पढ़कर निकलता था। मस्जिद से निकलते वक्त उसे लोगों के रोने की आवाज सुनाई दी। उसने कारण पूछा कि : "ऐसा क्यों कर रहे हो" ? प्रदर्शनकारियों ने जवाब दिया कि "आपने हमारे संगीत का कत्ल कर दिया है उसे ही दफनाने जा रहे हैं।" यह बात सुनने के बाद औरंगजेब ने कहा, "तो फिर कब्र जरा गहरी खोदना।" औरंगजेब का मानना था कि इस्लाम में बताए गए नियमों को कलाकार नहीं मानते। वो उसका पालन नहीं करते। यही वजह रही है कि संगीत को लेकर उसका नजरिया हमेशा से नकारात्मक रहा।
संगीत के विषय में इन तालिबानी और औरंगजेबी दृष्टिकोणों के संदर्भ में जर्मन प्रोटेस्टेंट इसाई प्रचारक मार्टिन लूथर की उक्ति गौरतलब है कि : "संगीत ईश्वर की नेमत है। शैतान का शत्रु है।" ब्रिटिश पादरी एल्फ्रेड हंट ने तो संगीत को "टूटे दिल के लिए औषधि" बताया था। फिलहाल अब भी क्या किसी भारतीय मुसलमान के दिल में इन जाहिल, क्रूर तालिबानियों के प्रति कोई नरमी और संवेदना होनी चाहिए ?


K Vikram Rao
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