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तिब्बत और ताइवान को अलग राष्ट्र मानें ! चीन को यही जवाब !!

Location: भोपाल                                                 👤Posted By: prativad                                                                         Views: 4651

भोपाल: के. विक्रम राव Twitter ID: Kvikram Rao

कम्युनिस्ट चीन भी अब भली-भांति समझ गया कि भारत आज 1962 वाला नही है, जो वह धमकियों से खौफ और संत्रास में पड़ जाए। चीन ने नए मानचित्रों में भारत के भूभाग : लद्दाख, कश्मीर, अरुणाचल को अपना हिस्सा बताया। बड़ा सटीक, साहसभरा जवाब दिया विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक टीवी प्रोग्राम में। उन्होंने कहा : "चीन की ये पुरानी आदत है। वो दूसरे देशों के इलाक़ों पर अपना दावा करते रहे हैं। वे 1950 के आसपास से ही इसके दावे कर रहे हैं। हमारी सरकार अपने देश की रक्षा को लेकर स्थिति साफ़ कर चुकी है। किसी भी तरह के बेतुके दावे से दूसरों के क्षेत्र आपके नहीं हो जाएंगे।"
अतः मोदी सरकार अब क्या कदम उठाए ? बड़ा सरल है। पूर्वोत्तर भारत पर अपना मानचित्र जारी कर दें। इसमें तिब्बत को अरुणाचल का दक्षिणी भाग बता दें। चीन ने अरुणाचल को तिब्बत का उत्तरी भाग बताया है। यूं भी तिब्बत स्वतंत्र राष्ट्र था। अतः फिर बने। दलाई लामा मुखिया होंगे। उनकी मदद और रक्षा करना भारत का दायित्व है। बौद्ध तिब्बत भी, बौद्ध लद्दाख की भांति, भारत से रक्षा पाने का हकदार है। गौतम बुद्ध के नाम पर। ये धर्म प्रवर्तक भारत के थे।
मोदी सरकार को "जैसे को तैसा" वाले कूटनीतिक सिद्धांत के आधार पर ताइवान को पूर्ण गणराज्य वाली मान्यता दे देनी चाहिए। इसके सर्वमान्य नेता जनरल च्यांग काई शेक तो जवाहरलाल नेहरू के परम मित्र रहे। उनकी लावण्यमयी पत्नी मदाम सूंग मेई लिंग तो नेहरू की खास मित्र भी रहीं। वे 105 वर्ष तक जीवित थी, (निधन न्यूयॉर्क में 23 अक्टूबर 2003)। उनकी अंतिम इच्छा थी अपने पति च्यांग काई शेक के समाधि स्थल ताइवान के सीहु में दफन हों।
चीन द्वारा ऐसी बेतुके और फूहड़ दावों से हर राष्ट्रभक्त भारतीय का आक्रोशित होना स्वाभाविक है। राहुल गांधी को खासकर। आज वे श्रेष्ठतम भारतीय देशभक्त होने का दावा पेश करते हैं। चीन के नए नक़्शे जारी होने के बाद राहुल गांधी ने बुधवार को कहा : "मैं लद्दाख से आया हूं। पीएम मोदी ने कहा था कि लद्दाख में एक इंच ज़मीन नहीं गई। ये सरासर झूठ है।" इसी उद्गार को राहुल गांधी ने आज फिर मुंबई में गठबंधन की सभा में दुहराया। राहुल गांधी ने कहा : "पूरा लद्दाख जानता है कि चीन ने हमारी ज़मीन हड़प ली। ये मानचित्र की बात तो बड़ी गंभीर है।"
अब जरूरत है इस 53-वर्षीय अधेड़ कांग्रेसी को याद दिलाने की कि उनकी दादी के पिता जवाहरलाल नेहरू प्रथम भारतीय थे, जो इस चीन-भारत सीमा विवाद के सृजनकर्ता हैं। उन्हीं की नजरों के सामने ही अक्टूबर 1962 को 43,180 वर्ग किलोमीटर पूर्वोत्तर भारतीय भूभाग को कम्युनिस्ट चीन ने हथिया लिया था। अगले वर्षों में राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी, पिताश्री राजीव गांधी और कांग्रेस प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव तथा फिर सरदार मनमोहन सिंह आदि प्रधानमंत्री पद पर सवार रहकर चार दशकों तक देश की सुरक्षा का वादा करते रहें। वे सब क्यों इस पूर्वोत्तर भूभाग को चीन के चंगुल से आज तक आजाद नहीं करा पाये ? खड़गे ने सही बताया : "अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन सहित सारे क्षेत्र भारत का अविभाज्य हिस्सा हैं। मनमाने ढंग से तैयार कोई भी चीनी नक्शा इसे बदल नहीं सकता।"
मगर मुद्दा यह है कि क्यों पहले उसे मुक्त नहीं कराया गया ? जबकि राहुल के इन पुरखों को तो लोकसभा में अपार बहुमत हासिल था। क्या राहुल गारंटी देंगे की अगर भारत के मतदाता उन्हें सत्ता दे दें तो वे पूर्वोत्तर को आजाद करा लेंगे ? अर्थात तब फिर राजकोष की लूट, बोफोर्स-मार्का, कोयला खदान (2013), 2-जी स्पेक्ट्रम (2008), सत्यम (2009), करीब चौदह हजार करोड़वाला इत्यादि नहीं होंगे। इन आशांकित लूट का स्मरण इसलिए है कि सोनिया-कांग्रेस गत दस सालों से सत्ता से बाहर रहीं। पार्टी फंड खाली हो गया होगा। लाजमी है उगाही की अब तात्कालिक जरूरत भी है। छत्तीसगढ़ और राजस्थान राज्य सरकारें कितना चंदा दे पायेंगी। अर्थात सीमा विवाद जो नेहरू-इंदिरा सरकार की देन है पर से ध्यान-हटाने का प्रहसन मात्र राहुल की नौटंकी है। वर्ना वे पवित्र कैलाश मानसरोवर की यात्रा हमलावर चीन के आतिथ्य में क्यों करते ?
अब कुछ भाजपा की अंदरुनी बात भी। वयस्क भाजपायी सांसद रहे डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने लिखा : "मोदी से कहिए कि अगर वो भारतमाता की किसी मजबूरी की वजह से रक्षा नहीं कर सकते, तो कम से कम पद छोड़िए और मार्गदर्शक मंडल में जाइए। झूठ से हिन्दुस्तान की रक्षा नहीं की जा सकती। भारत एक और नेहरू अब झेल नहीं पाएगा।"
इस समस्त परिवेश में इस ऐतिहासिक तथ्य को पुनः याद करना होगा कि राम की शक्ति पूजा से ही लंका दहली थी। मोदी के पुलवामा एक्शन से ही इस्लामी पाकिस्तान खौफजदा हुआ था। कश्मीर में आतंक कमतर हुआ था। युगो बाद लाल चौक में तिरंगा लहराया। पहले यहां सूर्यास्त के बाद भारतीय जाने से डरते थे। हालांकि अक्तूबर 1987 में इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट (IFWJ) के सात सौ पत्रकारों ने चश्मेशाही से लाल चौक तक जुलूस निकाला था। इनका नारा था : "कश्मीर हो या गौहाटी, अपना देश अपनी माटी।" तब एक बुजुर्ग कश्मीरी ने कहा भी था : "आज का प्रो-इंडियन जुलूस, 1947 में शेख मोहम्मद अब्दुल्ला और जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में निकले मार्च के बाद किया गया दूसरा प्रदर्शन था।" हालांकि 370 खत्म करते ही लाल चौक पूर्णतया भारतीय हो गया। राहुल को इसका निजी सुखी अनुभव हुआ होगा जब वे वहां "भारत जोड़ो" मुहिम में गए थे। कश्मीर को तो उनके पुरखों ने काट ही दिया था। मोदी ने जोड़ दिया।

K Vikram Rao
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E-mail: k.vikramrao@gmail.com

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