×

दहेज प्रताडऩा का मामला बनाया जाये जमानतीय अपराध

News from Bhopal, Madhya Pradesh News, Heritage, Culture, Farmers, Community News, Awareness, Charity, Climate change, Welfare, NGO, Startup, Economy, Finance, Business summit, Investments, News photo, Breaking news, Exclusive image, Latest update, Coverage, Event highlight, Politics, Election, Politician, Campaign, Government, prativad news photo, top news photo, प्रतिवाद, समाचार, हिन्दी समाचार, फोटो समाचार, फोटो
Place: Bhopal                                                👤By: DD                                                                Views: 1380

परिवार की टूटन को बचाने की जद्दोजहद
स्टेट लॉ कमीशन की 18 वीं रिपोर्ट सरकार को पेश
1 अप्रैल 2021। स्टेट लॉ कमिशन ने शिवराज सरकार को सौंपी अपनी 18 वीं रिपोर्ट में कहा है कि दहेज प्रताडऩा की धारा 498 ए को जमानती एवं जिला कोर्ट की परमीशन से राजीनामे वाला अपराध बनाया जाये, ताकि परिवार को दोबारा जुडऩे का मौका मिल सके और अनावश्यक रुप से परिजन परेशान न हों।
इसके पीछे कमिशन ने तर्क दिया है कि गैर जमानीय धारा होने के कारण ससुराल पक्ष के लागे खासकर महिलायें जेल भेजे जाने से परेशान होती हैं और बाद में राजीनामे होने की संभावनायें भी खत्म हो जाती हैं क्योंकि यह रंजिश का रुप ले लेता है। इसी प्रकार, पति-पत्नी में समझौता होने पर भी दहेज केस में जिला कोर्ट राजीनामे के आधार पर केस खत्म नहीं कर पाता है तथा लोगों को राजीनामे के आधार पर काफी धनराशि खर्च कर हाईकोर्ट से दहेज केस की धारा क्वेश कराना पड़ती है।
चेन स्नेचिंग रोकने सजा बढ़ायी जाये :
इसी प्रकार, कमिशन ने महिलाओं के गले से सोने जवाहरत की चेन खींचने की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिये आईपीसी में नई धारा 379 ए एवं 379 बी जोड़ी जाये जिसमें सिर्फ चेन खींचने पर 5 से 10 वर्ष और चेन खींचने के साथ चोट पहुंचाने पर 7 से 10 वर्ष की सजा एवं 25 हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान किया जाये। कमिशन ने पाया है कि वर्तमान में स्वर्ण आदि जेवरात के मूल्य कहीं अधिक बढ़ गये हैं तथा महिलाओं के गले से खींचने पर उनके मन पर लगा आघात बरसों तक बना रहता है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में चेन खींचने पर सिर्फ धारा 379 लगाई जाती है जिसमें मात्र 3 वर्ष के कारावास का ही प्रावधान है।
कमिशन ने अपनी रिपोर्ट में इस बात को स्पष्ट किया है कि राज्य विधानसभा को भारतीय दण्ड विधान और सीआरपीसी में संशोधन का अधिकार है तथा ऐसे संशोधन को करने के बाद वह राष्ट्रपति से मंजूरी लेकर इसको लागू कर सकती है।
ये भी की अनुशंसायें :
कमिशन ने अपनी रिपोर्ट में कुछ अन्य मामलों में भी अनुशंसायें की हैं। एक, पीडि़त पक्ष को पुलिस द्वारा एफआईआर, चालान आदि की प्रति नि:शुल्क मुहैया कराने का प्रावधान कानून में किया जाये क्योंकि अभी सिर्फ प्रशासनिक आदेश से ऐसा किया जा रहा है जबकि कानून में आरोपी को यह सब देने का पहले से ही प्रावधान है परन्तु पीडि़त पक्ष के लिये नहीं है। दो, पुलिस द्वारा किसी अपराध में खात्मा डालने की सूचना कोर्ट को दी जाती है, तब इसे कोर्ट द्वारा स्वीकार करने के पूर्व कानूनी प्रावधान हो कि पीडि़त पक्ष को पहले सुना जाये।
तीन, जमानत मिलने के बाद आरोपी कोर्ट की पेशियों में जानबूझकर नहीं आते हैं जिससे मामले में आरोपी के न होने से कोर्ट में लम्बे समय तक केस की सुनवाई नहीं होती है। इसलिये कानूनी प्रावधान किया जाये कि आरोपी के न आने पर भी कोर्ट सुनवाई जारी रखे और निर्णय सुना दे। चार, भादवि सौ साल से अधिक पुराना है और इसमें अर्थदण्ड अभी भी पुराने ही चल रहे हैं, इसलिये वर्तमान मूल्यवृध्दि को ध्यान में रखते हुये 61 अपराधों में अर्थदण्ड दस गुना बढ़ाया जाये। मसलन, शराब पीकर सार्वजनिक स्थान पर हंगामा मचाने वाले पर आज भी अर्थदण्ड मात्र दस रुपये ही है। पांच, कोर्ट द्वारा हत्या आदिर गंभीर मामलों में न्यायिक हिरासत में भेजे गये व्यक्ति के मामले में पुलिस को विवेचना 90 दिन में पूर्ण करने का अधिकार दिया जाये जोकि अभी 60 दिन है।



- डॉ. नवीन जोशी

Related News

Latest News

Global News