
28 अप्रैल 2025। मध्य प्रदेश देश में आत्महत्या के मामलों की संख्या के हिसाब से तीसरे स्थान पर पहुंच गया है, जिसे लेकर मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने गहरी चिंता व्यक्त की है और इस संकट से निपटने के लिए तत्काल एवं समन्वित प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया है।
रविवार को इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्राइवेट साइकियाट्री (IAPP) द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में गांधी मेडिकल कॉलेज, भोपाल के मनोचिकित्सा विभागाध्यक्ष डॉ. आर. एन. साहू ने कहा, "आत्महत्या के बढ़ते मामलों को देखते हुए मानसिक स्वास्थ्य क्षेत्र में नीतिगत और जमीनी दोनों स्तरों पर व्यापक सुधार की जरूरत है।"
सम्मेलन में बोलते हुए पूर्व आईएपीपी अध्यक्ष डॉ. इंदिरा शर्मा ने विशेष रूप से युवाओं में आत्महत्या की दर को लेकर चिंता व्यक्त की। उन्होंने बताया कि भारत में युवाओं के बीच आत्महत्या दर वैश्विक औसत से लगभग दोगुनी है, जो सामाजिक विफलता, पारिवारिक दबाव और अपर्याप्त मानसिक स्वास्थ्य संसाधनों की ओर इशारा करता है। उन्होंने आत्महत्या के लिए उकसाने को भी एक बढ़ती हुई गंभीर समस्या बताया और इसे समाज, नैतिकता, मनोचिकित्सा तथा कानून से जुड़ा एक अत्यंत संवेदनशील मुद्दा करार दिया।
गांधी मेडिकल कॉलेज की डीन, डॉ. कविता एन. सिंह ने मेडिकल छात्रों के बीच मानसिक स्वास्थ्य सुधारने के प्रयासों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कॉलेज में ध्यान और प्रार्थना सत्र शुरू करने से छात्रों में तनाव के स्तर में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है। साथ ही, उन्होंने परामर्श सेवाओं और अभिभावकों की सक्रिय भूमिका को आत्महत्याओं की रोकथाम और शैक्षणिक प्रदर्शन में सुधार के लिए महत्वपूर्ण बताया।
सम्मेलन में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम), मध्य प्रदेश की मिशन निदेशक डॉ. सलोनी सिडाना ने भी भाग लिया। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के सुदृढ़ीकरण के लिए कई पहलें शुरू की हैं, जैसे कि "मनहित" ऐप के जरिए समय रहते मानसिक स्वास्थ्य जांच को बढ़ावा देना और "मनकाक्षा" कार्यक्रम के माध्यम से हर जिले में मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना।
डॉ. सिडाना ने बताया कि राष्ट्रीय टेली-मानस कार्यक्रम के तहत हेल्पलाइन 14416 के माध्यम से पिछले वर्ष 3 लाख से अधिक टेली-काउंसलिंग कॉल संभाली गईं। इसके अलावा, एनएचएम अब मातृ और किशोर मानसिक स्वास्थ्य पर भी केंद्रित कार्यक्रम चला रहा है, ताकि बचपन और युवावस्था में मानसिक समस्याओं का समय रहते समाधान किया जा सके।
विशेषज्ञों ने एकमत से सुझाव दिया कि स्कूल, कॉलेज, कार्यस्थल और सामुदायिक स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता अभियान, नियमित स्क्रीनिंग, परामर्श केंद्रों की स्थापना और आत्महत्या रोकथाम रणनीतियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ताकि इस बढ़ते संकट पर प्रभावी नियंत्रण पाया जा सके।