
1 मई 2025। केंद्र सरकार द्वारा आगामी जनगणना के साथ जातीय जनगणना (Caste Census) कराने के निर्णय को लेकर देशभर में सियासी हलचल तेज हो गई है। इस फैसले का स्वागत करते हुए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इसे "स्वतंत्र भारत में सबसे बड़ा और ऐतिहासिक निर्णय" करार दिया। उन्होंने इस पहल के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय कैबिनेट को धन्यवाद दिया, जबकि कांग्रेस और राहुल गांधी पर तीखा हमला भी बोला।
🔸 मोहन यादव बोले: सामाजिक न्याय की दिशा में निर्णायक कदम
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने अपने वीडियो संदेश में कहा, "आजादी के बाद से देश में जातीय जनगणना को लेकर मांग तो होती रही, लेकिन किसी ने इसे पूरी संजीदगी से नहीं लिया। मोदी सरकार का यह निर्णय सामाजिक समरसता, समानता और सुगमता के नए युग की शुरुआत है।"
उन्होंने कहा कि यह सिर्फ आंकड़ों की गणना नहीं, बल्कि देश के गरीब, पिछड़े, दलित और वंचित वर्गों को पहचान देने वाला फैसला है, जिससे उनकी नीति-निर्माण में सहभागिता और सामाजिक न्याय सुनिश्चित हो सकेगा।
🔸 कांग्रेस और राहुल गांधी पर हमला
सीएम मोहन यादव ने कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि वर्षों तक सत्ता में रहने के बावजूद कांग्रेस ने इस मुद्दे पर केवल राजनीति की। "राहुल गांधी हर मंच पर ओबीसी की बात करते हैं, लेकिन जब अवसर था, तब कांग्रेस ने जातीय जनगणना को दबा दिया। अब जब मोदी सरकार ने यह ऐतिहासिक निर्णय लिया है, तो उनके पास जवाब नहीं है," यादव ने कहा।
यशस्वी प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी ने देश में जनगणना में जातिगत गणना का ऐतिहासिक और युग परिवर्तनकारी निर्णय लिया है... pic.twitter.com/v5p7jaAUFn
— Dr Mohan Yadav (@DrMohanYadav51) April 30, 2025
🔸 जातीय जनगणना: एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत में जातीय जनगणना की मांग आजादी के बाद से ही उठती रही है। आखिरी बार पूरी जातिगत जनगणना 1931 में ब्रिटिश शासनकाल में हुई थी। 2011 में सोशियो इकोनॉमिक एंड कास्ट सेन्सस (SECC) के तहत एक प्रयास हुआ, लेकिन सरकार ने ओबीसी वर्ग के आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए।
अब केंद्र सरकार ने अगली जनगणना में ओबीसी सहित सभी जातियों की विस्तृत गिनती कराने का निर्णय लिया है। यह निर्णय उन राज्य सरकारों की मांग के अनुरूप है जो पहले से ही अपने-अपने राज्यों में जातीय सर्वेक्षण करा चुकी हैं, जैसे बिहार।
🔸 राजनीतिक नफा-नुकसान पर बहस तेज
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह कदम आगामी लोकसभा चुनावों से पहले समाज के बड़े वोट बैंक - ओबीसी समुदाय को साधने की एक रणनीति भी हो सकती है। विपक्षी दलों की ओर से इसे देर से लिया गया निर्णय बताया जा रहा है, जबकि सत्तारूढ़ भाजपा इसे 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास' की दिशा में ठोस कदम कह रही है।
🔸 क्या है जातीय जनगणना?
जातीय जनगणना का तात्पर्य है – भारत की जनसंख्या को जातिगत आधार पर वर्गीकृत करना, न कि केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) तक सीमित रखना। इसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के आंकड़े भी पहली बार सार्वजनिक रूप से सामने लाए जाएंगे। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकारी योजनाएं, संसाधनों का आवंटन और प्रतिनिधित्व सभी वर्गों को उनकी वास्तविक जनसंख्या के अनुपात में मिले।
मोहन यादव के इस समर्थन के बाद स्पष्ट है कि भाजपा अब जातीय जनगणना को 'सामाजिक समरसता और न्याय का राजनीतिक औजार' बनाकर पेश करने की रणनीति अपना रही है। आने वाले दिनों में यह मुद्दा राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में रहेगा।