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मोहन यादव की रणनीतिक जीत: हेमंत खंडेलवाल निर्विरोध अध्यक्ष, गुटबाज़ों को तगड़ा झटका

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Place: भोपाल                                                👤By: prativad                                                                Views: 285

1 जुलाई 2025। मध्यप्रदेश की सियासत में एक बार फिर भाजपा ने अपने संगठात्मक अनुशासन, नेतृत्व क्षमता और रणनीतिक संतुलन का परिचय दिया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की रणनीति न केवल सफल रही, बल्कि भाजपा में संगठन को लेकर चल रही अंतर्कलह और गुटबाज़ी को भी निर्णायक रूप से शांत कर दिया। हेमंत खंडेलवाल को मध्यप्रदेश भाजपा का नया प्रदेश अध्यक्ष निर्विरोध चुना गया, और यह नियुक्ति भाजपा में “एक नेता, एक रणनीति” के नए युग की शुरुआत का संकेत देती है।

गुटबाज़ी वालों को झटका, कार्यकर्ताओं को तरजीह
इस चुनाव प्रक्रिया की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि कोई दूसरा दावेदार सामने नहीं आया, न ही पार्टी के भीतर किसी भी स्तर पर मतभेद उभरे। यह साफ संकेत है कि भाजपा अब गुटों और जातीय समीकरणों की राजनीति से ऊपर उठ चुकी है। जिन नेताओं ने अध्यक्ष पद के लिए पर्दे के पीछे से प्रयास किए थे, उन्हें इस फैसले से बड़ा झटका लगा है।

ना जातिवाद, ना क्षेत्रवाद – सिर्फ योग्यता और निष्ठा की परीक्षा
मध्यप्रदेश की राजनीति हमेशा से देश में अपनी संतुलित और विचारधारा आधारित कार्यप्रणाली के लिए जानी जाती रही है। राज्य सात अलग-अलग राज्यों से सीमाएँ साझा करता है, लेकिन कभी भी जातिगत या क्षेत्रीय राजनीति यहां गहराई तक नहीं पैठ सकी।

हाल के दिनों में भी राजनीतिक गलियारों में ये अटकलें थीं कि ग्वालियर क्षेत्र में संगठन की असहमति को देखते हुए अनुसूचित जाति, आदिवासी, या महिला चेहरा अध्यक्ष बनाया जाएगा। लेकिन भाजपा ने इन सभी कयासों को दरकिनार करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि योग्यता, निष्ठा और संगठन के प्रति समर्पण ही नेतृत्व के लिए मुख्य आधार होंगे।

हेमंत खंडेलवाल – मोहन यादव की पहली पसंद क्यों बने?
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने न केवल हेमंत खंडेलवाल का नाम आगे बढ़ाया, बल्कि यह सुनिश्चित भी किया कि उनके निर्वाचन में किसी प्रकार का विरोध या मतभेद उत्पन्न न हो। मीडिया में भी एकसमान संदेश गया — भाजपा अब “शोर नहीं, समर्पण” की राजनीति पर विश्वास करती है।

मुख्य कारणों में शामिल हैं:

🔸 RSS से गहरा जुड़ाव:
दोनों नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की पृष्ठभूमि से हैं। डॉ. मोहन यादव 1993-96 तक उज्जैन में संघ के विभिन्न पदों पर कार्य कर चुके हैं। वहीं हेमंत खंडेलवाल का परिवार भाजपा की जड़ों से जुड़ा रहा है — उनके पिता स्व. विजय खंडेलवाल पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से थे और सांसद भी रह चुके हैं।

🔸 संगठन और सरकार में संतुलन:
हेमंत खंडेलवाल भाजपा के प्रदेश कोषाध्यक्ष के रूप में कार्य कर चुके हैं। इस दौरान उनकी कार्यशैली, समर्पण और संगठन के प्रति व्यवहारिक समझ ने डॉ. यादव को प्रभावित किया। यही कारण है कि मुख्यमंत्री ने उन्हें खुद प्रस्तावित भी किया और चुनाव प्रक्रिया में पूर्ण समर्थन दिया।

🔸 छात्र राजनीति से राजनीति तक की यात्रा:
डॉ. मोहन यादव की शुरुआत ABVP से हुई थी — 1982 में छात्रसंघ के सह-सचिव और 1984 में उज्जैन नगर मंत्री रहे। वहीं हेमंत खंडेलवाल ने विद्यार्थी जीवन से ही भाजपा के लिए काम शुरू किया। छात्र राजनीति की यह समान पृष्ठभूमि दोनों नेताओं के बीच मजबूत कार्यसंबंध को दर्शाती है।

🔸 शैक्षणिक योग्यता और दृष्टिकोण:
डॉ. यादव B.Sc., LLB, MA, MBA और PhD जैसी विविध डिग्रियों से संपन्न हैं, जबकि खंडेलवाल B.Com और LLB ग्रेजुएट हैं। इस बौद्धिक गहराई और व्यावसायिक समझ ने दोनों के बीच सामंजस्य और नेतृत्व क्षमता को और धार दी है।

संगठन और सत्ता – एक धुरी, एक दिशा
आज भाजपा न केवल चुनाव जीतने की मशीन है, बल्कि वह संगठनात्मक अनुशासन और वैचारिक स्पष्टता से चलने वाली विचारधारा आधारित पार्टी है। डॉ. मोहन यादव और हेमंत खंडेलवाल की यह जोड़ी अब संगठन और सत्ता के बीच विश्वसनीय पुल बन गई है, जो भाजपा को चुनावों से आगे विकास, विस्तार और विचार की ओर ले जाएगी।

नई भाजपा का नया संदेश
मध्यप्रदेश भाजपा का यह कदम न केवल नेतृत्व बदलाव है, बल्कि यह भाजपा के भीतर “नई कार्यशैली और स्पष्ट विजन” की ओर बढ़ते कदम का परिचायक भी है। मोहन यादव ने यह जता दिया कि वे अब सिर्फ मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि संगठन और सरकार की संयुक्त शक्ति हैं — और उन्होंने साबित किया कि राजनीति में चुपचाप की गई सटीक रणनीति ही सबसे प्रभावशाली होती है।

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