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एमवाय में चूहों का आतंक : ये सिर्फ लापरवाही नहीं, सिस्टम की सड़ांध है

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Place: भोपाल                                                👤By: prativad                                                                Views: 283

4 सितंबर 2025। इंदौर का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल, एमवाय। यहां नवजात गहन चिकित्सा इकाई (NICU) वह जगह है, जहां जिंदगी और मौत के बीच झूलते नन्हे-मुन्नों को बचाने की हर कोशिश की जाती है। जहां बाहर से एक पानी की बोतल तक भीतर नहीं ले जाने दी जाती, वहां चूहे खुलेआम दौड़ते रहे और दो नवजातों को कुतर डाला। दोनों की मौत हो गई। सवाल यही है कि जब सबसे सुरक्षित वार्ड में यह हाल है, तो पूरे अस्पताल की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।

मौतें सिर्फ हादसा नहीं, चेतावनी हैं
यह कोई सामान्य दुर्घटना नहीं है। यह उस पूरे भ्रष्ट और जर्जर हो चुके सिस्टम की पोल खोलता है, जिसे चूहे पहले ही कुतर चुके हैं। हर साल करोड़ों का बजट, नियमित पेस्ट कंट्रोल, सुरक्षा और सफाई के ठेके, लेकिन हकीकत सामने है—दो मासूम अपनी जिंदगी गंवा चुके हैं।

जिम्मेदार कौन?
मुख्यमंत्री से लेकर मानवाधिकार आयोग तक सख्त लहजे में बयान दिए जा रहे हैं। जांच समितियां बन रही हैं। लेकिन असली सवाल जिम्मेदारी का है।

विभागाध्यक्ष छुट्टी पर हैं और लौटने की जहमत तक नहीं उठाई।
यूनिट प्रभारी घटना के बाद छुट्टी पर चले गए।
अधीक्षक सिर्फ जुर्माना ठेका एजेंसी पर डालकर पल्ला झाड़ रहे हैं।
डीन अस्पताल प्रबंधन छोड़ इंटरव्यू में व्यस्त रहे।
यह लापरवाही नहीं, सीधी-सीधी प्रशासनिक गैरजिम्मेदारी है।
जांच कमेटी—नाटक का पुराना स्क्रिप्ट

हर बार यही होता है—जांच कमेटी बनेगी, रिपोर्ट आएगी, कुछ नोटिस जारी होंगे और मामला ठंडा पड़ जाएगा। लेकिन सवाल है कि जब दो नवजातों की जान जा चुकी है, तब क्या महज जुर्माना और नोटिस ही काफी हैं?

सिस्टम की सड़ांध
सरकारी अस्पतालों का असली संकट यही है। यहां हर विभाग में ठेकेदारी संस्कृति हावी है—सफाई से लेकर दवाई और उपकरण तक। जिम्मेदारी तय नहीं होती, बस लीपापोती चलती रहती है। चूहों ने बच्चों को नहीं, बल्कि उस उम्मीद को कुतर डाला है, जो गरीब मरीज इस अस्पताल से लेकर आते हैं।

अब वक्त सर्जिकल स्ट्राइक का
सरकार अगर सचमुच गंभीर है, तो यह महज “पेस्ट कंट्रोल” का मामला नहीं है।
प्रबंधन स्तर पर जिम्मेदारी तय होनी चाहिए।
लापरवाह अधिकारियों पर सेवा से बर्खास्तगी जैसे कड़े कदम उठाए जाएं।
अस्पतालों के लिए स्वतंत्र मॉनिटरिंग मैकेनिज्म बने।
जांच की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए और उस पर कार्रवाई की गारंटी दी जाए।

एमवाय की ये मौतें सिर्फ दो परिवारों की त्रासदी नहीं हैं। यह पूरे स्वास्थ्य तंत्र पर एक धब्बा है। अगर इस चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो आने वाले कल में चूहे सिर्फ नवजातों को नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम को खा जाएंगे।

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