
इंदौर में विधि विशेषज्ञों की अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने रखे विचार
11 अक्टूबर 2025। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि न्याय पाना हर नागरिक का मौलिक, मानवीय और संवैधानिक अधिकार है। उन्होंने कहा कि भारत की संघीय व्यवस्था का मूल उद्देश्य है कि हर व्यक्ति को जीवन, भोजन और स्वास्थ्य के साथ समान अवसर और न्याय मिले। डॉ. यादव ने इसे लोक कल्याणकारी राज्य का पहला दायित्व बताया और कहा कि न्याय और सुशासन दोनों समाज व शासन को मजबूत करते हैं।
डॉ. यादव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णयों ने देश की न्याय प्रणाली में नई दिशा दी है और जन-आस्था को और सशक्त बनाया है। उन्होंने कहा कि समानता, पारदर्शिता, विनम्रता और समय पर न्याय ही न्यायपालिका की असली आत्मा है, जो समय के साथ और प्रखर होती जा रही है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत में प्राचीन काल से न्याय की गहरी परंपरा रही है, जिसे और प्रभावी बनाना सरकार का लक्ष्य है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का उल्लेख करते हुए कहा—“अब न्याय की देवी खुले नेत्रों से न्याय कर रही हैं”, अर्थात न्याय और अधिक सचेत और पारदर्शी हो गया है।
डॉ. यादव इंदौर में आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी “Evolving Horizons: Navigating Complexity and Innovation in Commercial and Arbitration Law in the Digital World” के शुभारंभ अवसर पर संबोधित कर रहे थे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के साथ दीप प्रज्ज्वलन कर कार्यक्रम की शुरुआत की।
डिजिटल युग में न्याय की नई दिशा
मुख्यमंत्री ने उपस्थित न्यायाधीशों, विधि विशेषज्ञों और कानून छात्रों का स्वागत करते हुए कहा कि मध्यप्रदेश न्याय प्रणाली को अधिक सुलभ, सरल और प्रभावी बनाने के लिए निरंतर कदम उठा रहा है। प्रादेशिक, जिला और ग्राम स्तर तक न्यायालयों की स्थापना इसी दिशा में उठाया गया कदम है।
उन्होंने कहा कि न्याय हमारी संस्कृति का अंग है और इसके निर्माता सम्राट विक्रमादित्य जैसे आदर्श हैं, जिनके मार्गदर्शन पर आज भी भारत आगे बढ़ रहा है।
डॉ. यादव ने कहा कि तकनीकी युग में न्यायपालिका को निरंतर आत्ममंथन और नवाचार अपनाने की जरूरत है ताकि पारदर्शिता और निष्पक्षता बरकरार रहे और भारत की अर्थव्यवस्था और व्यापार सुगमता से आगे बढ़ सके।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के विचार
न्यायमूर्ति जितेन्द्र कुमार माहेश्वरी ने कहा कि न्यायपालिका का उद्देश्य कानून बनाना नहीं, बल्कि निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा में संतुलन बनाना है। डेटा नियंत्रण के युग में पारदर्शिता और निष्पक्षता सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए।
न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने कहा कि तकनीकी प्रगति के साथ न्यायपालिका को विकसित होना होगा, ताकि स्वचालित अनुबंधों जैसे नए क्षेत्रों में न्याय से समझौता न हो।
न्यायमूर्ति राजेश बिंदल ने बताया कि जैसे-जैसे भारत की आर्थिक शक्ति बढ़ी है, विवाद भी बढ़े हैं। उन्होंने एआई के उपयोग से उत्पन्न होने वाली नई चुनौतियों पर ध्यान देने की आवश्यकता जताई।
न्यायमूर्ति अरविंद कुमार ने कहा कि भारत मात्र सहभागी नहीं, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था का निर्माता है। न्यायपालिका को सहयोग और मध्यस्थता के नए मॉडल अपनाने होंगे।
संगोष्ठी की प्रमुख झलकियाँ
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा ने स्वागत भाषण में कहा कि प्रदेश तकनीकी और कानूनी नवाचार का केंद्र बन सकता है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुझाव दिया कि कानूनों को तकनीकी प्रगति के अनुरूप विकसित होना चाहिए, न कि उसके अधीन।
डेनमार्क की डिप्टी डायरेक्टर मारिया स्कोउ ने भारत-डेनमार्क के कानूनी सहयोग को महत्वपूर्ण बताया।
इस अवसर पर मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की तीन नई तकनीकी पहलें भी शुरू की गईं —
ऑनलाइन इंटर्नशिप आवेदन प्रणाली,
केस डायरी की डिजिटल संचार व्यवस्था,
“समाधान आपके द्वार” मंच द्वारा समझौता योग्य अपराधों के निपटारे की पहल।
यह दो दिवसीय संगोष्ठी (11-12 अक्टूबर) डिजिटल युग में वाणिज्यिक कानून, ऑनलाइन विवाद, बौद्धिक संपदा, एआई और न्याय प्रणाली में नवाचार जैसे विषयों पर केंद्रित रही। देश-विदेश के न्यायविदों, विधि विशेषज्ञों और छात्रों ने इसमें भाग लिया, जिसका उद्देश्य न्यायिक संरचना को 21वीं सदी की चुनौतियों के अनुरूप और अधिक सशक्त बनाना है।