20 सितंबर 2023। राजनैतिक सौहार्द न रहने के कारण मप्र विधानसभा के उपाध्यक्ष का पद पिछले तीन साल से नहीं भरा जा सका है और अब यह भरा भी नहीं जायेगा क्योंकि अगले माह विधानसभा आम चुनाव की आचार संहिता लग जायेगी और सब चुनाव में लग जायेंगे। इतिहास देखा जाये तो ऐसा पहली बार हुआ है जबकि उपाध्यक्ष का पद इतने समय तक खाली रहा हो।
भाजपा ने शुरुआत की थी :
वर्ष 1956 में मप्र के गठन के बाद से विधानसभा में उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को न देने की आम परम्परा थी। हालांकि नर्मदा प्रसाद श्रीवास्तव पहली बार विरोधी की ओर से वर्ष 1962 में उपाध्यक्ष चुने गये। वर्ष 1964 में भी वे पुन: उपाध्यक्ष बने। परन्तु इसके बाद 3 मार्च 1990 तक किसी विपक्षी विधायक को उपाध्यक्ष का पद नहीं दिया गया। लेकिन इसके बाद भाजपा की सरकार आने पर पहली बार तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने राजनैतिक सौहार्द दिखाते हुये विधानसभा का उपाध्यक्ष पद विपक्षी दल कांग्रेस को सौंपा तथा कांग्रेस विधायक श्रीनिवास तिवारी 23 मार्च 1990 से 15 दिसम्बर 1992 तक उपाध्यक्ष रहे। इसके बाद कांग्रेस की सरकार आने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी राजनैतिक सौहार्द की इस परिपाटी को आगे बढ़ाया और उनके दस साला कार्यकाल में विपक्षी दल भाजपा के भेरुलाल पाटीदार 28 दिसम्बर 1993 से 1 दिसम्बर 1998 तक और ईश्वरदास रोहाणी 11 फरवरी 1999 से 5 दिसम्बर 2003 तक उपाध्यक्ष रहे। तत्पश्चात पुन: भाजपा की तीन बार सरकार आने पर विपक्षी दल कांग्रेस के क्रमश: हजारीलाल रघुवंशी 18 दिसम्बर 2003 से 11 दिसम्बर 2008 तक, हरवंश सिंह 13 जनवरी 2009 से 14 मई 2013 तक तथा राजेन्द्र कुमार सिंह 10 जनवरी 2014 से 13 दिसम्बर 2018 तक उपाध्यक्ष रहे। इसके बाद कांग्रेस की सरकार आने पर यह राजनैतिक सौहार्द टूट गया और तत्कालीन सीएम कमलनाथ के पन्द्रह माह के कार्यकाल में उनकी ही पार्टी की हिना कांवरे 10 जनवरी 2019 से 24 मार्च 2020 तक उपाध्यक्ष रहीं। परन्तु इसके बाद भाजपा की सरकार के आने बाद पक्ष या विपक्ष से किसी को भी अब तक उपाध्यक्ष नहीं बनाया गया है।
- डॉ. नवीन जोशी
विधानसभा के इतिहास में पहली बार उपाध्यक्ष का पद तीन साल खाली रहा
Place:
भोपाल 👤By: prativad Views: 651
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