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हीरे की जंग: प्राकृतिक बनाम लैब-निर्मित हीरों का भविष्य

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Place: भोपाल                                                👤By: prativad                                                                Views: 799

प्रतिवाद | 3 जून 2025।

चमक और लक्ज़री की दुनिया में इन दिनों एक खामोश लेकिन तीव्र जंग चल रही है — प्राकृतिक और लैब-निर्मित हीरों के बीच। यह "हीरे की जंग" न केवल उद्योग की दिशा बदल रही है, बल्कि परंपरा और तकनीक, दुर्लभता और स्थिरता, और नैतिकता और विशिष्टता के बीच की लड़ाई भी बन चुकी है।

लैब-निर्मित हीरों का उदय
पिछले कुछ वर्षों में लैब-ग्रोन (प्रयोगशाला में निर्मित) हीरों की मांग में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। हाई प्रेशर-हाई टेम्परेचर (HPHT) और केमिकल वेपर डिपॉजिशन (CVD) जैसी तकनीकों के ज़रिए बनाए गए ये हीरे प्राकृतिक हीरों की तरह ही दिखते हैं और उनकी भौतिक व रासायनिक संरचना भी लगभग समान होती है। लेकिन कीमत में ये 30% से 70% तक सस्ते होते हैं।

Bain & Company की रिपोर्ट के अनुसार, यह उद्योग 2018 से हर साल 15-20% की दर से बढ़ रहा है और 2030 तक $15 बिलियन तक पहुंचने की संभावना है। पेंडोरा और डी बीयर्स जैसे बड़े ब्रांड अब इस क्षेत्र में उतर चुके हैं, जो दिखाता है कि ये हीरे अब मुख्यधारा में शामिल हो चुके हैं।

प्राकृतिक हीरों की पलटवार
प्राकृतिक हीरों के निर्माता हार मानने को तैयार नहीं हैं। वे इन हीरों की भूगर्भीय उत्पत्ति, दुर्लभता और ऐतिहासिक महत्व को उनकी विशेषता बताते हैं। उनका मानना है कि प्राकृतिक हीरों की भावनात्मक और सांस्कृतिक कीमत कोई प्रयोगशाला नहीं बना सकती।

डी बीयर्स और अलरोसा जैसे बड़े ब्रांड्स प्राकृतिक हीरों को "सदाबहार प्रेम का प्रतीक" और "समय से परे की विरासत" के रूप में प्रचारित कर रहे हैं। ब्लॉकचेन जैसी तकनीकों से इनकी प्रमाणिकता सुनिश्चित की जा रही है।

नैतिकता, पर्यावरण और जेन Z की पसंद
नई पीढ़ी, खासकर जेन Z और मिलेनियल्स, लैब-निर्मित हीरों की सबसे बड़ी ग्राहक बनकर उभरी है। उनकी प्राथमिकता है — नैतिकता, पारदर्शिता और पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद। इन हीरों से "ब्लड डायमंड्स", शोषण और खनन से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान जैसी चिंताएं खत्म हो जाती हैं।

हालांकि, यह तर्क भी जटिल है। लैब-निर्मित हीरों का उत्पादन काफी ऊर्जा खपत करता है, खासकर अगर वह ऊर्जा नवीकरणीय स्रोतों से न हो।

कीमत की टक्कर
जैसे-जैसे लैब-निर्मित हीरों की आपूर्ति और प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है, इनकी कीमतें लगातार गिर रही हैं। वहीं, प्राकृतिक हीरे अब भी दीर्घकालिक निवेश और विरासत के तौर पर देखे जाते हैं, खासकर बड़े और दुर्लभ टुकड़ों में। लेकिन रोज़मर्रा के गहनों और फैशन के लिए खरीदारों के लिए सस्ता और नैतिक विकल्प ज्यादा आकर्षक है।

आगे क्या?
भविष्य में दोनों ही तरह के हीरों का सह-अस्तित्व तय माना जा रहा है। जहां प्राकृतिक हीरे लक्ज़री और विरासत का प्रतीक बने रहेंगे, वहीं लैब-निर्मित हीरे आम ग्राहकों और फैशन उद्योग में अपनी जगह मजबूत करेंगे। इस नई हीरे की दुनिया के नियम अब ग्राहक, ब्रांड और नीति-निर्माता मिलकर तय करेंगे।

एक बात निश्चित है — चमक भले ही एक जैसी हो, पर उसकी कहानी अब बदल रही है।

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