
16 जुलाई 2025। मियामी से लेकर मुंबई तक, दक्षिण एशियाई महिलाएं न सिर्फ़ पारंपरिक धरोहर संभाल रही हैं, बल्कि वैश्विक स्तर पर सोने में निवेश की दौड़ में भी सबसे आगे हैं।
पाकिस्तानी मूल की फ़रज़ाना गनी के लिए हर सोने का टुकड़ा एक कहानी है—शादी में सास से मिली विरासत, हज के बाद माँ की भेंट, बेटी के जन्म पर मिला उपहार। और अब जब सोने की कीमतें ऐतिहासिक ऊँचाई पर पहुँच चुकी हैं, वे इसे सिर्फ़ गहना नहीं, बल्कि सुरक्षा और स्थायित्व का प्रतीक मानती हैं।
"नकदी या बॉन्ड की तुलना में मैं आज भी सोने के सिक्के खरीदना पसंद करूंगी," मियामी की 56 वर्षीय गनी कहती हैं।
दक्षिण एशिया में सोना सिर्फ़ आभूषण नहीं, एक सांस्कृतिक विरासत है। दुल्हनों के लिए यह नथ से लेकर हार, ताबीज और साड़ियों में बुने धागों तक—सब कुछ में शामिल होता है। यह विरासत माँ से बेटी तक पहुँचती है और जीवन के हर महत्वपूर्ण मोड़ पर इसकी भूमिका होती है।
2024 और 2025 में सोने की कीमतों में 50% से अधिक की बढ़ोतरी ने इस विश्वास को और मजबूत किया है। अमेरिका की राजनीतिक और आर्थिक अनिश्चितताओं, और वैश्विक व्यापार युद्धों के बीच निवेशक स्थायित्व के लिए फिर से सोने की ओर लौटे हैं।
भारत—सोने का दूसरा सबसे बड़ा बाज़ार
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के अनुसार, भारत ने 2023 में 611 टन सोने के आभूषण खरीदे। हर साल 1.2 करोड़ शादियाँ इस मांग को बढ़ावा देती हैं, जिनमें दुल्हन के गहनों की हिस्सेदारी 50% से अधिक होती है।
भारत में सोना केवल ज़ेवर नहीं, महिलाओं के लिए वित्तीय सुरक्षा का सशक्त प्रतीक है—खासकर तब जब देश में 50% से कम महिलाएं अपने वित्तीय निर्णय स्वयं लेती हैं।
बदलती प्राथमिकताएँ, लेकिन परंपरा बरकरार
अब की पीढ़ी पारंपरिक भारी सेट्स को आधुनिक डिज़ाइनों में बदल रही है—ऐसे गहने जिन्हें रोज़ पहना जा सके। सोने का मूल्य आर्थिक अस्थिरता के समय ही नहीं, आर्थिक विस्तार में भी बढ़ता है, और यही कारण है कि दक्षिण एशियाई परिवार पीढ़ी-दर-पीढ़ी इसे संभाल कर रखते हैं।
गनी भी अपनी बेटी की शादी में यही परंपरा आगे बढ़ा रही हैं—अपने पुराने गहनों को नया रूप देकर अगली पीढ़ी को सौंप रही हैं।
"सोना हमेशा सभ्य और सुंदर रहेगा," वे मुस्कुराकर कहती हैं, "और यह विरासत हमेशा चलेगी।"