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टीम और परिवार भावना का पुरोधा एक मुख्यमंत्री

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Place: Bhopal                                                👤By: प्रतिवाद                                                                Views: 17924



(विकास और जनकल्याण के लिए शिवराजसिंह चौहान का 11 वर्ष)

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की रामराज्य की अपनी कल्पना थी। एक विषाद पूर्ण अवसर पर उन्होनें कहा था कि मेरी हर धड़कन मुखरित करती है कि या तो इस पावन भूमि से हिंसा की लपटों को शांत कर दे या मुझे महाशांति में विलीन कर दे। जिस राजनैतिक आजादी के लिए जीवन अर्पित किया अब मुल्क में सिर उठा रही हिंसा का साक्षी नहीं बनना चाहता। मानव कल्याण की यह भावना जीवन का चरम उत्कर्ष कहा जायेगा। आज मध्यप्रदेश में जनजीवन के हर क्षेत्र में एक नई पुलकन दृष्टिगोचर हो रही है तो उसका श्रेय राजनैतिक दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ परस्पर तादात्म्य, एक रस जीवन की कामना प्रदेश की साढ़े सात करोड़ जनता के साथ रागात्मक संबंधो की डोर में गुंफित होना है। आंकड़ो की दुनिया में मानवीय चेहरा में हंसी-खुशी देखने की लालसा, मध्यप्रदेश की तस्वीर बदलने की उत्कंठा, चैबीसों घंटे एक छरहरे कद-काठी के इंसान में परिलक्षित होती है। प्रदेश के चप्पे-चप्पे में उसकी पहचान पांव-पांव वाले भैया के नाम से की जाती है। मध्यप्रदेश उर्वर भूमि, समृद्ध वन-संपदा, नदी-सरोवरों से परिपूर्ण होने के बाद भी देश में बीमारू राज्यों की कतार में खड़ा कर दिया गया था। घूरे के भी दिन फिरते है। 2003 में मध्यप्रदेश में राजनैतिक क्षितिज पर भगवा किरण विकीर्ण हुई। विकास चक्र तेजी से घूमा और शिवराज सिंह चैहान ने अथक परिश्रम, प्रशासन और जनता की टीम भावना से मध्यप्रदेश देश में विकास के मामले में अव्वल राज्य बन चुका है। कृषि के क्षेत्र मे मध्यप्रदेश देश और दुनिया में एक कीर्तिमान के रूप में देखा जाने लगा है। किसी भी प्रदेश मे कृषि विकास की दर 24 प्रतिशत हो जाना और इसकी निरंतरता बनी रहना कोतूहल जनक होते हुए भी एक हकीकत है। यही कारण है कि पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने तमाम प्रतिस्पर्धा भावना के बावजूद मध्यप्रदेश को परखा और कृषि कर्मण अवार्ड से सम्मानित किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने अनेक अवसरों पर राष्ट्रीय विकास दर की स्थिरता के लिए मध्यप्रदेश सहित भाजपा शासित राज्यों को श्रेय दिया था। तब से आज तक 4 बार मध्यप्रदेश को कृषि कर्मण सम्मान से अभिनंदित होने का गौरव प्राप्त हो चुका है।



देश के अनेकों राज्य आज बिजली की किल्लत से जूझ रहे है, कटौती वहां दैनिक कर्मकांड है। बिजली की कमी से उद्योगो के पहिए थम रहे है। लेकिन 11 वर्षों में मध्यप्रदेश बिजली उत्पादन में रिकार्ड बना चुका है। जीवन्त प्रमाण ही कहा जायेगा कि मध्यप्रदेश में सभी आबाद 52117 गांवों में 24 घंटे बिजली की पूर्ति उत्पादनशीलता को प्रेरित कर रही है। कृषि और उद्योगों में संतुलन लाकर प्रदेश के विभिन्न अंचलों के विकास मे असंतुलन को दूर करनें में बिजली की गुणवत्ता पूर्ण आश्वस्त पूर्ति उत्पे्ररक का काम कर रही है। आजादी के बाद कमोवेश साढ़े पांच दशकों में प्रदेश में बिजली, सिंचाई, परिवहन की सड़कों, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे बुनियादी क्षेत्रों में प्रगति के कदम उतनी तेजी से नहीं बढ़े, जितने इन 11 वर्षों में बढ़े है। इसी का नतीजा है कि मध्यप्रदेश में विकास दर दहाई में पहुंच चुकी है।



आज जब देश के अन्य प्रदेशों में कृषि के क्षेत्र में किसानों के पलायन की खबरें आ रही है, मध्यप्रदेश ने खेती को आर्थिक लाभ का धंधा सिद्ध कर दिया है। लेकिन इसके लिए जहां अन्नदाता किसानों के श्रम सीकरों को श्रेय जाता है वहीं किसानों को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की क्रांतिकारी पहल की भी भूरि-भूरि प्रशंसा स्वयं किसान करते नहीं थकते है। किसान पुत्र मुख्यमंत्री ने किसानों के दर्द को समझा है, उन्होनें तय किया "ऋणग्रस्तता में पैदा होकर ऋणग्रस्तता में जीना और कर्ज से उऋण हुए बिना मर जाना ही" किसान की नियति नहीं होगी। किसान खुशहाल होगा, किसान की खुशहाली से प्रदेश सरसब्ज होगा। उद्योग धंधों में बरकत आयेगी। शिवराज सिंह चैहान ने किसान की खुशहाली के लिए कृषि नीति बनाने के लिए वातानुकूलित उत्तुंग सचिवालय से निकलकर खुरदरे यथार्थ के धरातल पर प्रदेश के किसानों की पंचायत बुलाई और अपनी नियति तय करने का आग्रह किया। किसानों के प्रति सरकार की इस संवेदनशीलता ने किसानों की बंद किस्मत को बदल दिया। अन्नदाता किसानों ने महसूस किया कि मध्यप्रदेश सरकार गांव, गरीब, किसान, मजदूर की सरकार है। आजादी के बाद पंचवर्षीय योजना बनी। हम बारहवीं पंचवर्षीय योजनाकाल में सफर कर रहे है, लेकिन तत्कालीन सरकारों ने खेती को हाशिए पर नहीं डाला होता तो किसान की पीड़ा को समझकर खेती के कर्ज पर 18 प्रतिशत ब्याज दर नहीं वसूली होती। मध्यप्रदेश सरकार ने ब्याज दरों को घटाया और किसानों के पसीने से लथपथ चेहरों पर व्यथित होकर शिवराज ने सोचा कि क्यों न प्रदेश में किसान को जीरों प्रतिशत ब्याज पर कर्ज मंजूर कर दिया जाये। किसानों की भाग्य लक्ष्मी मुस्कुराई। प्रदेश सरकार ने सहकारी बैंको से मिलने वाले कर्ज पर जीरों प्रतिशत ब्याज की योजना पर अमल किया। फिर आज तो हालात यह है कि एक लाख रू. खाद-बीज के लिए कर्ज लिये जाने पर सरकार दस प्रतिशत की छूट का ऐलान भी कर चुकी है। किसान खुशहाली की मंजिल पर सोपान दर सोपान अग्रसर हो रहा है।



खेती के क्षेत्र में सुधारों को लेकर मध्यप्रदेश पायोनियर स्टेट माना जाने लगा है, क्योंकि देश में किसान राहत में पाला-ओला, इल्ली प्रकोप जैसी आपदाएं शामिल नहीं थी, इसके लिए पांव वाले भैया ने सड़क से संसद तक संघर्ष किया, जंतर-मंतर तक दस्तक दी। केन्द्र सरकार पसीजी और समूचे देश के किसान को आपदा में राहत का कवच मिला। मध्यप्रदेश ने बीमा योजना से राहत के लिए देश में अग्रणी पहल कर किसानों को राहत सुनिश्चित करने में अगुवायी की है। देश के कृषि के इतिहास में मध्यप्रदेश के किसानों को सूखे के दंश में राहत के लिए 20 लाख किसानों को बीमा की साढ़े चार हजार करोड़ रूपए की राशि दी जा रही है। प्रशासकों के लिए मध्यप्रदेश विकास पर्यटन केन्द्र बना देश-विदेश के प्रशासकीय अधिकारियों के लिए मध्यप्रदेश विकास पर्यटन का केन्द्र बनता जा रहा है। यहां पहुंचकर जब उन्हंे पता चलता है कि मध्यप्रदेश में योजना नियोजन का कार्य पंचायतें करती है तो वे अचंभित होकर रह जाते है। शिवराज सिंह चैहान ने जहां किसानों के लिए किसान पंचायत आमंत्रित कर नीति निर्धारण का न्यौता दिया तो वहीं युवा पंचायत, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति पंचायत, महिला पंचायत बुलाकर विकास से जुड़े अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श का अवसर देकर नीति निर्धारण की गेंद उनके ही पाले में डालकर उनमें आत्मविश्वास जगाया। जनसहयोग का आगे आना, परस्पर विश्वास सेतु बनना विकास की सफलता की कुंजी है। मध्यप्रदेश में विकास की कुंजी जनता को सौंप दी गयी है। इस उदारता का असर आंशिक रूप से कोष पर पड़ा है। लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान का मानना है कि -

राम की चिरैया, राम का ही खेत!

खाओ री चिरैया भर-भर पेट !!

आदिवासी, अनुसूचित जाति, जनजाति, गरीब परिवार के छात्र-छात्राएं उच्च शिक्षा के लिए लालायित हो रहे है। क्योंकि उन्हें देश में और विदेश में शिक्षा प्राप्त करने के लिए लगने वाले शुल्क की भरपाई राज्य सरकार कर रही है। इस पहल ने प्रदेश की किशोर और युवा पीढ़ी से शिवराजसिंह चैहान का रागात्मक संबंध प्रगाढ़ हो चुका है और उन्हें मामा की ख्याति हासिल हुई। कौशल विकास, स्वरोजगार योजनाओं की प्रदेश में प्रगति का कारण यहां दिया जाने वाला इंसेट्वि है। जहां स्वरोजगार, उद्यम के लिए वित्तीय संसाधन कर्ज की आवश्यकता है, राज्य सरकार गारंटर बनकर खड़ी है। अवसर प्रचुर है, उनके लिए युवा पीढ़ी भी मानसिक रूप से तैयार हो चुकी है। मध्यप्रदेश को स्वर्णिम राज्य बनानें का काम अकेले सरकार का नहीं सामूहिक जिम्मेवारी है। प्रदेश में बने सकारात्मक वातावरण ने मानो स्पष्ट कर दिया है कि आने वाला कल वही होगा, जिसका हम आज निर्माण करेंगे। मध्यप्रदेश की फिजा बदली है, पिछले पांच-छह माह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से लेकर तमाम अभियानों का श्रीगणेश मध्यप्रदेश की धरती से करके विकास यात्रा को गति दी है। 'नमामि देवी नर्मदे' अभियान से प्रदूषण मुक्ति की बयार भी मध्यप्रदेश की धरती से उड़ेगी और अपनी सौंधी सुगंध से विश्व धरा को सुरभित करेगी।

आंकड़ो में परखे तो बिजली का उत्पादन 2900 मेगावाट से 16 हजार मेगावाट होना, ग्रोथ रेट का दहाई में पहुँचना, सकल घरेलु उत्पाद में चार गुना वृद्धि, हर परिवार का बैंक खाला खुलना, उद्योगों में निवेश का एक लाख करोड़ रूपए अधिक हो जाना, विश्व में खेती विकास दर का रिकार्ड बनना, हर खेत को पानी के लिए क्षमता 7.5 लाख हेक्टेयर से 36 लाख हेक्टेयर हो जाना, नर्मदा का जल से मालवा पठार को सिंचित करना, हर विकास खंड में आईआईटी, कौशल विकास केन्द्र, 188 महाविद्यालयों की स्थापना, 110 नए आईआईटी खोले जाने से युवा पीढ़ी में इल्म और हुनर तासीर बनकर सोच में वैज्ञानिक पुट दिखाई दे रहा है। लगता है मध्यप्रदेश, बदलता मध्यप्रदेश एक हकीकत बन चुकी है।



(लेखक - भरतचन्द्र नायक)

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