
18 अक्टूबर 2025। जयपुर में दर्ज ब्लैकमेलिंग केस की गिरफ्तारी भले ही राजस्थान से जुड़ी हो, लेकिन इसकी गूंज भोपाल के मीडिया गलियारों तक पहुंच चुकी है। मामला सिर्फ दो पत्रकारों या एक पोर्टल का नहीं, बल्कि उस पूरे डिजिटल सिस्टम का आईना है जिसमें खबरें “क्लिक” से पहले “सत्यापन” से नहीं गुजरतीं।
◼️ भोपाल की डिजिटल पत्रकारिता पर छाया शक का साया
भोपाल पिछले कुछ वर्षों में डिजिटल पत्रकारिता का उभरता केंद्र बन चुका है। सैकड़ों पोर्टल, यूट्यूब चैनल और सोशल मीडिया पेज हर दिन “खबर” के नाम पर कंटेंट परोस रहे हैं। पर इस तेज़ी में जांच-पड़ताल, आचारसंहिता और पत्रकारिता के मूल सिद्धांत पीछे छूटते जा रहे हैं।
राजस्थान की डिप्टी सीएम से जुड़ा यह मामला दिखाता है कि कैसे भोपाल से चल रहे कुछ प्लेटफॉर्म न केवल राज्य-सीमा पार खबरें चला रहे हैं, बल्कि राजनीतिक और व्यक्तिगत प्रतिष्ठा पर भी असर डालने की स्थिति में हैं। अब सवाल यही है — क्या भोपाल के डिजिटल मीडिया में नैतिक संपादन और तथ्य-जाँच की प्रणाली वाकई मौजूद है?
◼️ पत्रकारिता या डिजिटल व्यापार?
पिछले कुछ सालों में मीडिया हाउस से ज्यादा "मीडिया हैंडलर" पैदा हुए हैं। ऐसे प्लेटफॉर्म, जो क्लिक, व्यू और सब्सक्राइबर के दबाव में खबरों को मसालेदार या सनसनीखेज़ बना देते हैं। किसी के खिलाफ आरोप लगाने से पहले, या किसी बयान को संदर्भ से काटकर चलाने से पहले, ज़िम्मेदारी की वह रेखा अक्सर धुंधली हो जाती है जो पत्रकारिता को बाकी कंटेंट से अलग करती है।
भोपाल जैसे शहरों में जहां कई छोटे स्वतंत्र डिजिटल मीडिया समूह सक्रिय हैं, वहाँ अब सवाल यह भी उठ रहा है — क्या खबरें बिक रही हैं या बनाई जा रही हैं?
◼️ प्रेस स्वतंत्रता बनाम पेशे की जवाबदेही
गिरफ्तारी के बाद प्रेस स्वतंत्रता बनाम पुलिस कार्रवाई का मुद्दा फिर चर्चा में है। लेकिन असली चिंता यह होनी चाहिए कि “स्वतंत्रता” के नाम पर “अविवेक” न पनपे। प्रेस को आज अपनी आज़ादी के साथ जवाबदेही भी निभानी होगी। क्योंकि अगर पत्रकार ही सूचना का दुरुपयोग करने लगें, तो लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत खोखली हो जाएगी।
◼️ आगे क्या?
यह मामला अदालत तक जाएगा, पुलिस जांच पूरी होगी, और शायद कुछ नए नाम सामने आएं। पर भोपाल के पत्रकार समुदाय के लिए यह एक चेतावनी है — डिजिटल खबरों की दौड़ में जो भी कदम बढ़ाए जा रहे हैं, उन्हें जिम्मेदारी और पारदर्शिता के साथ बढ़ाना होगा।
भोपाल, जो कभी तथ्यपरक और संतुलित पत्रकारिता के लिए जाना जाता था, अब दोराहे पर खड़ा है। एक रास्ता है डिजिटल शॉर्टकट्स का, दूसरा — सच्ची और जांची-परखी रिपोर्टिंग का।
कौन सा रास्ता चुना जाएगा, यही तय करेगा कि आने वाले वर्षों में भोपाल का मीडिया भरोसे की मिसाल बनेगा या सनसनी का बाजार।