
7 अक्टूबर 2025। पत्रकारिता लोकतंत्र की रीढ़ है — लेकिन आज यह पेशा दुनिया भर में लगातार ख़तरों से जूझ रहा है। ब्रिटेन ने इस दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए सोमवार को घोषणा की है कि अब देश की हर पुलिस फोर्स में ‘जर्नलिस्ट सेफ्टी लायजन अफसर’ नियुक्त किया जाएगा। इस पद का उद्देश्य मीडिया की स्वतंत्रता को सशक्त बनाना और पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
यूके में नई पहल: हर पुलिस फोर्स में सुरक्षा अधिकारी
ब्रिटेन के होम ऑफिस ने बताया कि हाल के वर्षों में पत्रकारों पर ऑनलाइन धमकियों, फील्ड रिपोर्टिंग के दौरान हिंसा और उत्पीड़न के मामले तेजी से बढ़े हैं।
इन घटनाओं से निपटने के लिए, इंग्लैंड और वेल्स की सभी 43 पुलिस फोर्स, साथ ही ब्रिटिश ट्रांसपोर्ट पुलिस (BTP) और काउंटर टेरर पुलिसिंग यूनिट में ऐसे अफसर नियुक्त किए जाएंगे।
ब्रिटिश मंत्री इयान मरे ने कहा कि यह निर्णय मीडिया, पुलिस और सरकार के बीच सहयोग बढ़ाने की दिशा में एक ठोस कदम है। “हर पुलिस फोर्स में सुरक्षा अफसर की नियुक्ति पत्रकारों के प्रति भरोसे और पारदर्शिता को मजबूत करेगी,” उन्होंने कहा।
स्कॉटलैंड और नॉर्दर्न आयरलैंड में ऐसे अधिकारी पहले से ही कार्यरत हैं, और अब यह व्यवस्था पूरे यूनाइटेड किंगडम में लागू की जा रही है।
भारत में स्थिति: बढ़ते खतरे और सीमित सुरक्षा
भारत में भी पत्रकारों की सुरक्षा स्थिति चिंताजनक है। रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स (RSF) की 2025 रिपोर्ट के अनुसार, भारत 180 देशों में प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 159वें स्थान पर है।
बीते एक वर्ष में कई पत्रकारों पर हमले, झूठे मुकदमे, गिरफ्तारी, और ऑनलाइन ट्रोलिंग के मामले सामने आए हैं — खासकर उन रिपोर्टरों के खिलाफ, जो भ्रष्टाचार, चुनावी अनियमितताओं या प्रशासनिक विफलताओं पर रिपोर्टिंग करते हैं।
ग्रामीण और छोटे शहरों में खतरा ज्यादा: स्थानीय अपराध, अवैध खनन, और राजनीतिक हितों पर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को धमकियाँ और हिंसा का सामना करना पड़ता है।
ऑनलाइन उत्पीड़न: महिला पत्रकारों को सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार, ट्रोलिंग और धमकी भरे संदेशों का शिकार होना पड़ता है।
कानूनी हथियार: कई बार UAPA, आईटी अधिनियम या मानहानि कानून का इस्तेमाल आलोचनात्मक पत्रकारों को चुप कराने के लिए किया जाता है।
विश्व स्तर पर गिरती प्रेस स्वतंत्रता
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हालात अच्छे नहीं हैं। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (CPJ) के मुताबिक, पिछले साल दुनिया भर में 68 पत्रकारों की हत्या और 320 से अधिक की गिरफ्तारी हुई। सबसे ख़तरनाक देशों में मैक्सिको, रूस, इज़राइल, म्यांमार और अफगानिस्तान शामिल हैं।
जरूरत: भारत में संस्थागत सुरक्षा व्यवस्था
विशेषज्ञों का कहना है कि ब्रिटेन जैसे मॉडल से भारत को सीख लेनी चाहिए।
पत्रकारों के लिए अलग “सेफ्टी सेल” या राज्य स्तरीय समन्वय अधिकारी की नियुक्ति से फील्ड रिपोर्टरों की सुरक्षा बढ़ाई जा सकती है।
वर्तमान में, भारत में पत्रकारों की सुरक्षा पर कोई समर्पित कानून या संस्थागत तंत्र नहीं है।
जहाँ ब्रिटेन पत्रकारों की सुरक्षा को सरकारी प्राथमिकता बना रहा है, वहीं भारत में अब भी कई पत्रकार सिस्टम, सत्ता और सोशल मीडिया के दबाव के बीच जोखिम उठा रहे हैं।
पत्रकारिता की स्वतंत्रता केवल अभिव्यक्ति का अधिकार नहीं — यह जनता के जानने का अधिकार है। और अगर पत्रकार सुरक्षित नहीं रहेंगे, तो लोकतंत्र की आवाज़ भी असुरक्षित हो जाएगी।