
14 सितंबर 2025। हिन्दी दुनिया की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल अन्य इक्कीस भाषाओं के साथ हिन्दी का एक विशेष स्थान है। मातृभाषा के रूप में हिन्दी को आगे बढ़ाने की दिशा में किसी राज्य ने अपने कदम तेजी से बढ़ाये हैं तो वह है देश का हृदयस्थल कहा जाने वाला मध्यप्रदेश। इसका श्रेय सूबे के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को जाता है जिन्होंने शिक्षा मंत्री रहते हुए लगातार हिन्दी भाषा को बढ़ावा देने के लिए काम किया और अब उनके कुशल नेतृत्व में मध्यप्रदेश में हिन्दी भाषा रफ़्तार के साथ आगे बढ़ रही है। हिंदी के विकास में मध्यप्रदेश ने बड़ा योगदान दिया है। देश के विभिन्न राज्यों के प्रशासनिक कामकाज में हिंदी के प्रयोग की समीक्षा करें तो मध्यप्रदेश ऐसे राज्य के रूप में अधिक प्रभावी दिखता है जिसने हिंदी के प्रयोग को लगातार प्रोत्साहन दिया है। वर्ष 2015 में भोपाल में हुए विश्व हिंदी सम्मेलन में मध्यप्रदेश ने हिंदी को प्रोत्साहन देने का संकल्प व्यक्त किया था। इसके बाद से ही मध्यप्रदेश हिंदी को समृद्ध बनाने के लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है ।
हिंदी माध्यम से शिक्षा और शोध को बढ़ावा देता अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय
मप्र सरकार ने देश का पहला हिन्दी विश्वविद्यालय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम से स्थापित किया है। राजधानी भोपाल स्थित अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय का हिंदी भाषा को शिक्षण, प्रशिक्षण, ज्ञान की वृद्धि और प्रसार के लिए एक सशक्त माध्यम बना रहा है। यह विश्वविद्यालय विज्ञान, प्रबंधन, साहित्य, कला, तकनीकी, चिकित्सा, वाणिज्य और अन्य विधाओं में हिंदी माध्यम से उच्चस्तरीय शिक्षा और शोध को बढ़ावा देने के लिए संकल्पित है। अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय ने हिंदी भाषा को वैश्विक स्तर पर स्थापित करने और भारतीय ज्ञान परंपरा को आधुनिक शिक्षा के साथ जोड़ने का एक अनूठा प्रयास किया है। यह विश्वविद्यालय न केवल हिंदी भाषा के गौरव को बढ़ा रहा है, बल्कि छात्रों को रोजगारपरक और नैतिक शिक्षा प्रदान करके राष्ट्र के विकास में योगदान दे रहा है। नई शिक्षा नीति के आने से पहले मध्यप्रदेश में अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय भोपाल ने हिन्दी में इंजीनियरिंग और चिकित्सा शिक्षा शुरू करने की घोषणा की थी। विश्वविद्यालय ने तीन भाषाओं में जहां इंजीनियरिंग की शुरुआत की, वहीं एमबीबीएस पाठ्यक्रम हिंदी में शुरू करने की दिशा में भी तेजी से अपने कदम बढ़ाये। भोपाल का अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय हिंदी भाषा और साहित्य के अध्ययन, अनुसंधान और प्रचार के लिए एक समर्पित संस्थान है। यह विश्वविद्यालय हिंदी को वैश्विक स्तर पर ले जाने के लिए डिजिटल और तकनीकी संसाधनों का उपयोग भी कर विश्वविद्यालय द्वारा छोटे स्तर पर हुई पहल मध्यप्रदेश सरकार की नई शिक्षा नीति के तहत की गई पहल के चलते रंग लाई।
एमपी में सरकारी पत्राचार से लेकर शिक्षा की भाषा बनी हिंदी
मध्यप्रदेश में अब डाक्टर और इंजीनियर बनने में भाषा राह में रुकावट नहीं बन रही है। प्रदेश में मेडिकल के साथ ही इंजीनियरिंग,मेडिकल की पढ़ाई भी हिन्दी में शुरू होने से समाज के हर वर्ग के प्रतिभाशाली युवा तकनीकी पढ़ाई के लिए आगे आ रहे हैं। इससे पठन - पाठन का स्तर जहाँ सुधर रहा है वहीँ शोध की गुणवत्ता और स्तर में भी सुधार होगा। मध्यप्रदेश सरकार ने हिंदी को प्रशासनिक कार्यों में अपनाने के लिए कई नीतियां लागू की हैं। सरकारी दस्तावेजों, पत्राचार और बैठकों में हिंदी के उपयोग को प्राथमिकता दी जा रही है। मध्यप्रदेश में विभागों में राजभाषा हिंदी के उपयोग और हिंदी सॉफ्टवेयर के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम निरंतर आयोजित किए जाते हैं। समय -समय पर हिंदी दिवस और हिंदी पखवाड़ा जैसे आयोजनों के माध्यम से सरकारी कर्मचारियों और आम जनता में हिंदी के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा रही है। यह सुनिश्चित करता है कि हिंदी न केवल एक भाषा के रूप में, बल्कि प्रशासनिक संचार के सशक्त माध्यम के रूप में भी स्थापित हो।
इंजीनियरिंग और मेडिकल पाठ्यक्रम हिंदी में शुरू होने से ग्रामीण छात्र छात्राओं को मिल रहा लाभ
आमतौर पर तकनीकी और चिकित्सा शिक्षा जैसे इंजीनियरिंग और एमबीबीएस पाठ्यक्रमों में अंग्रेजी को प्राथमिकता दी जाती रही है। हालांकि हाल के वर्षों में मध्यप्रदेश ने इन पाठ्यक्रमों को हिंदी में पढ़ाने की शुरुआत ने ग्रामीण क्षेत्रों के छात्र-छात्राओं के लिए नए अवसर खोले मध्यप्रदेश देश का ऐसा पहला राज्य है जहां एमबीबीएस की पढ़ाई भी अब हिन्दी में हो रही है। छात्र छात्राएं अब जटिल तकनीकी और चिकित्सीय अवधारणाओं को अपनी मातृभाषा में आसानी से समझ सकते हैं, जिससे उनकी सीखने की प्रक्रिया अधिक प्रभावी और समावेशी बन रही है।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 16 अक्टूबर 2022 को राजधानी भोपाल में एमबीबीएस के हिन्दी पाठ्यक्रम की शुरूआत की थी। पढ़ाई को हिन्दी में शुरू कराने के लिए तब सभी पुस्तकें भी अंग्रेजी से अनुवाद कर हिन्दी में तैयार की गई। पठन सामग्री इस तरह से तैयार की गई, जो छात्र -छात्रों को आसानी से समझ में आ जाएं। इंजीनियरिंग, चिकित्सा विज्ञान की पुस्तकों में अंग्रेजी भाषा की कठिन शब्दावली के होने से हिन्दी माध्यम में पढ़ने वाले ग्रामीण छात्र छात्राओं को कठिनाई होती थी। अब इंजीनियरिंग और मेडिकल पाठ्यक्रम शुरू होने से गरीब एवं मध्यम वर्ग के हिन्दी माध्यम में पढ़ने वाले छात्र छात्राओं के लिये पढ़ाई आसान हो गई है। हिंदी में पाठ्यक्रम उपलब्ध होने से ग्रामीण क्षेत्रों के उन छात्रों को भी अवसर मिल रहा है, जो पहले अंग्रेजी की कमी के कारण उच्च शिक्षा से वंचित रह जाते थे। छात्र- छात्राएं अपनी आम बोलचाल की हिंदी भाषा में परीक्षा दे रहे हैं। हिन्दी भाषा को बढ़ावा देने की दिशा में प्रदेश सरकार उठाया गया यह कदम सराहनीय है। सोचने, समझने, तर्क करने, निर्णय पर पहुंचने की बेहतर क्षमता मातृभाषा से पढ़ाई करने पर ही आती है। मातृभाषा से ही किसी विद्यार्थी का बेहतर बौद्धिक विकास हो सकता है।
मातृ-भाषा हिंदी में हो रहे हैं सतत नवाचार
मध्यप्रदेश सरकार की मातृ-भाषा हिंदी में चिकित्सा शिक्षा को बढ़ावा देने का संकल्प अब नीतिगत निर्णयों और कार्यान्वयन की ठोस रूपरेखा के साथ तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय, जबलपुर द्वारा चिकित्सा एवं दंत चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में मातृ-भाषा हिंदी को सशक्त बनाने के लिए सतत नवाचार किए जा रहे हैं। मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा प्रदेश में समय -समय पर कवि सम्मेलन, साहित्यिक गोष्ठियाँ और पुस्तक मेलों का आयोजन किया जाता है जो हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। ये आयोजन नई पीढ़ी को हिंदी साहित्य से सीधे जोड़ रहे हैं। हिंदी की बोलियों के संरक्षण और उनके विकास की केन्द्रीकृत कोशिशें भी संस्कृति विभाग के माध्यम से की जा रही हैं।
मध्यप्रदेश ने हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में अपनी भूमिका को सशक्त रूप से निभाया है। सूचना प्रौद्योगिकी में हिन्दी भाषा के उपयोग को बढ़ावा देने में तो मध्यप्रदेश देश में लगभग अग्रणी है। इसके अलावा साहित्यिक परंपराओं, शैक्षणिक पहलों, सरकारी पत्राचार, सांस्कृतिक आयोजनों और डिजिटल प्रयासों के माध्यम से राज्य ने हिंदी को वैश्विक मंच पर भी एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाने का प्रयास किया है। प्रदेश में सूचना प्रौद्योगिकी में हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिये कम्प्यूटर से किये जाने वाले शासन के सभी कार्यों में यूनीकोड को अनिवार्य कर दिया गया है। इससे हिन्दी भाषियों को कम्प्यूटर दक्ष बनाने में अच्छी सफलता मिली है। मध्यप्रदेश का यह योगदान न केवल हिंदी भाषा को समृद्ध कर रहा है, बल्कि इसे भावी पीढ़ियों के लिए जीवंत और प्रासंगिक बनाए रखने में भी सहायक साबित हो रहा है। हिंदी को बढ़ावा देने में मध्यप्रदेश की यह भूमिका देश के अन्य राज्यों के लिए भी एक प्रेरणा का स्रोत है।
मातृ-भाषा में पढ़ाई पीएम मोदी का विजन बना सीएम मोहन का मिशन
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि मध्यप्रदेश सरकार हिंदी के अधिकाधिक प्रयोग और प्रोत्साहन के लिए संकल्पबद्ध है। हिंदी बोलने वाले हिंदी का गौरव बढ़ाते हैं। मध्यप्रदेश से न सिर्फ डॉक्टर, इंजीनियर हिंदी में शिक्षा ग्रहण कर आगे बढ़ रहे हैं बल्कि अन्य पाठ्यक्रमों एमबीए और अन्य पाठ्यक्रमों में भी अध्ययन करके विद्यार्थी कॅरियर का निर्माण कर सकते हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भी संकल्प है कि शिक्षा का माध्यम मातृ-भाषा बने। शिक्षा मंत्रालय ने अपनी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाई शुरू करने की जरूरत बताई जिसके बाद मध्यप्रदेश सरकार ने मातृभाषा पर ज़ोर देते हुए हिन्दी में पढ़ाई शुरू करने की दिशा में अपने कदम तेजी से बढ़ाये हैं जिसके चलते प्रदेश के गरीब, ग्रामीण परिवेश से आने वाले परिवारों को इसका बड़ा लाभ मिल रहा है।
इंजीनियरिंग और मेडिकल जैसे पाठ्यक्रमों को हिंदी में शुरू करना मध्यप्रदेश के ग्रामीण छात्र-छात्राओं के लिए एक क्रांतिकारी कदम साबित हुआ है। भविष्य में इससे छात्र छात्राओं को शिक्षा के लिए समान अवसर भी मिलेंगे और उनकी पढ़ाई में अब अंग्रेजी भाषा बाधा नहीं बनेगी। इसने भाषा की बाधाओं को तोड़ा है और न केवल सभी तक उच्च शिक्षा की पहुंच बढ़ाई है बल्कि आत्मविश्वास को प्रोत्साहित किया है।