
23 अगस्त 2025। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर खंडपीठ ने एक अहम आदेश में कहा है कि यदि कोई युवती बालिग है, तो उसे यह अधिकार है कि वह अपनी इच्छा से किसी भी व्यक्ति के साथ रह सकती है। अदालत ने स्पष्ट किया कि नैतिकता जैसे विषयों पर न्यायालय निर्णय नहीं दे सकता और वयस्क को अपनी निजी जिंदगी के फैसले लेने का पूर्ण अधिकार है।
पिता ने दायर की थी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका
मामला नरसिंहपुर का है, जहां एक पिता ने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल कर दावा किया कि उसकी बेटी को अवैध रूप से बंदी बनाकर रखा गया है। सुनवाई के दौरान पुलिस ने युवती को कोर्ट में प्रस्तुत किया, जहाँ उसने न्यायालय को बताया कि वह बालिग है और अपनी मर्जी से शादीशुदा व्यक्ति के साथ रह रही है। उसने यह भी स्वीकार किया कि उसने स्वयं ही माता-पिता का घर छोड़ा है।
शादीशुदा व्यक्ति के साथ रहने पर आपत्ति
याचिकाकर्ता (पिता) की ओर से दलील दी गई कि जिस व्यक्ति के साथ युवती रह रही है, वह पहले से विवाहित है, इसलिए बेटी को माता-पिता के पास भेजा जाना चाहिए। इस पर पुलिस ने कोर्ट को जानकारी दी कि वह व्यक्ति अपनी पहली पत्नी से अलग रह रहा है और तलाक की प्रक्रिया शुरू करने का प्रस्ताव रखा है।
कोर्ट का स्पष्ट रुख
जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस प्रदीप मित्तल की खंडपीठ ने कहा कि बालिग युवती यह तय करने में सक्षम है कि उसके लिए क्या सही है और किसके साथ रहना चाहती है। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी विवाहित व्यक्ति के साथ सहजीवन अपराध नहीं है, लेकिन यदि वह उसके साथ विवाह करती है तो यह दंडनीय होगा, और पहली पत्नी इस पर आपराधिक मुकदमा दायर कर सकती है।
अंडरटेकिंग लेने के निर्देश
हाईकोर्ट ने यह आदेश दिया कि युवती और संबंधित व्यक्ति, दोनों से लिखित अंडरटेकिंग लिया जाए कि वह अपनी इच्छा और स्वेच्छा से साथ रह रहे हैं। इसके बाद अदालत ने याचिका का निस्तारण कर दिया।