
10 सितंबर 2025। मध्यप्रदेश सरकार ने जबलपुर के कलेक्टर रहे दीपक सक्सेना को नया जनसंपर्क आयुक्त बनाया है। यह निर्णय सिर्फ एक प्रशासनिक तबादला नहीं, बल्कि सरकार की छवि सुधारने की गंभीर कोशिश माना जा रहा है।
प्रशासनिक ईमानदारी और संवेदनशीलता
दीपक सक्सेना उन अफसरों में गिने जाते हैं जिनके दरवाजे आम लोगों के लिए हमेशा खुले रहते हैं। जबलपुर में कलेक्टर रहते हुए उन्होंने बार-बार साबित किया कि प्रशासनिक पद केवल आदेश देने का नहीं, बल्कि सुनने और समाधान देने का भी है। चाहे स्कूल फीस वसूली का मामला हो, गरीबों को किताबें सस्ते दामों पर उपलब्ध कराना हो, किसानों की समस्या सुलझाना हो या सामुदायिक भवनों के विवाद—सक्सेना ने हर विषय को व्यक्तिगत स्तर पर सुलझाने की आदत डाली।
यह उनकी वही शैली है, जिसने उन्हें जनता के बीच लोकप्रिय और भरोसेमंद बनाया। यही कारण है कि मुख्यमंत्री मोहन यादव ने मीडिया मैनेजमेंट के मोर्चे पर कमजोर पड़ रही सरकार को संभालने की जिम्मेदारी उन्हीं को सौंपी है।
मीडिया मैनेजमेंट: सबसे बड़ी परीक्षा
पिछले दो वर्षों में मध्यप्रदेश सरकार का मीडिया प्रबंधन लगातार बैकफुट पर रहा है। कई विभागों ने पत्रकारों से टकराव का रास्ता अपनाया, विज्ञापनों को हथियार बनाया और यहां तक कि असहमति जताने वाले मीडिया पर मुकदमे तक दर्ज किए गए। इसका सीधा असर मुख्यमंत्री की छवि पर पड़ा।
अब जिम्मेदारी दीपक सक्सेना के कंधों पर है कि वे इस बिगड़े रिश्ते को सुधारे। वे पत्रकारों के साथ संवाद बढ़ाकर और असली मुद्दों पर सरकार की तरफ से सटीक जानकारी उपलब्ध कराकर माहौल को बदल सकते हैं।
नवाचार और डिजिटल मीडिया का दौर
दीपक सक्सेना के बारे में कहा जाता है कि वे नवाचारों के लिए भी जाने जाते हैं। जनसंपर्क विभाग में उनके पास इस दिशा में बड़ा मौका है। यह समय केवल प्रेस नोट और विज्ञापनों का नहीं, बल्कि डिजिटल नैरेटिव बिल्डिंग का है। आज जनता फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, एक्स और लोकल डिजिटल पोर्टलों के जरिए सरकार को परखती है।
अगर सक्सेना यहां डिजिटल रणनीति, फैक्ट-चेकिंग तंत्र और जनता के साथ सीधा ऑनलाइन संवाद जैसे प्रयोग करते हैं, तो विभाग की भूमिका पूरी तरह बदल सकती है। यह केवल सरकार की छवि सुधारने का नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक संचार को नए स्तर तक ले जाने का मौका है। देखना होगा कि वे इस चुनौती को कितनी दूर तक ले जा पाते हैं।
आगे की राह
दीपक सक्सेना की कार्यशैली इस उम्मीद को जन्म देती है कि वे भोपाल में भी वही रफ्तार और संवेदनशीलता दिखाएंगे, जैसी उन्होंने जबलपुर में दिखाई। उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी—पत्रकारों के बीच भरोसा बहाल करना और विभागीय स्तर पर बन चुकी गलत परंपराओं को खत्म करना।
सरकार को भी यह समझना होगा कि जनसंपर्क विभाग का काम केवल "सरकार की तारीफ" करवाना नहीं है, बल्कि मीडिया और जनता दोनों को सही समय पर पारदर्शी सूचना देना है। अगर सक्सेना इस दिशा में डिजिटल नवाचारों के साथ कामयाब होते हैं, तो वे सचमुच सरकार की रीढ़ साबित होंगे।