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पत्रकार जिसने रचा इतिहास ! सिर्फ देखा-लिखा ही नहीं : हरीश चंदोला !!

Location: Bhopal                                                 👤Posted By: prativad                                                                         Views: 2012

Bhopal: के. विक्रम राव Twitter ID: Kvikram Rao

जब 94-वर्षीय पत्रकार हरीश चंदोला का उनके नई दिल्ली-स्थित जोरबाग आवास में निधन (रविवार, 26 मार्च 2023) हुआ तो मैंने सोचा था कि संपादकीय श्रद्धांजलियां पेश होंगी। मगर निधन की खबर तक नहीं छपी कहीं भी। एक लाइन भी नहीं। जबकि भारत के चार शीर्षतम अंग्रेजी दैनिकों में वर्षों तक वे कार्यरत रहे। इनमें टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस, स्टेट्समैन आदि हैं। बड़ा रंज और विषादभरा प्रसंग हैं। पत्रकारी पेशे पर कलंक लगा है। उनके वरिष्ठ साथियों की निर्मम निर्लज्जता व्यक्त करती है।

हरीश चंदोला ने इतिहास देखा, उसपर लिखा और स्वयं रचा भी। उनकी राय पर इंदिरा गांधी ने हेमवती नंदन बहुगुणा को यूपी का मुख्यमंत्री नामित किया था। तब पीएसी के बागी जवानों ने राजधानी लखनऊ की सड़क पर राज्य पुलिस पर खुलेआम गोलीबारी की थी। प्रधानमंत्री ने पंडित कमलापति त्रिपाठी को हटाया। हरीश चंदोला से मशविरा किया। इंदिरा गांधी ने बहुगुणा को सीएम चुना। पहले कम्युनिस्ट पार्टी से कांग्रेस में आये चंदजीत यादव की सिफारिश की थी पीएम के प्रधान सचिव पीएन हक्सर ने जो कभी वामपंथी रहे थे। मगर हरीश चंदोला की राय भारी पड़ी। जवाहरलाल नेहरू से लेकर अटल बिहारी बाजपेई तक सबसे चंदोला के आत्मीय रिश्ते रहे। एकदा नेहरू उनसे रुष्ट हो गए थे। घटना है 1950 के आसपास की। गड़वाल से चरवाहों की टोली के साथ चंदोला पहुंच गए तिब्बत सीमा तक। लौटकर खबर साया की कि कम्युनिस्ट चीन 1700 किलोमीटर लंबी सड़क बनवा रहा है भारत के अंदर। प्रधानमंत्री तब "हिंदी चीनी भाई भाई" का नारा लगवा रहे थे। अतः चंदोला से नेहरू बोले : "बकवास मत लिखो।" चीन की सेना ने चंदोला को पकड़ा भी था फिर रिहा कर दिया था। यह खबर शीघ्र संसद में गूंजी और सच हुई। अक्तूबर 1962 में पूर्वोत्तर में चीन ने हमला किया था। उपकार था देश पर चंदोला का जब उन्होने नागा विद्रोहियों से सरकार की संधि करवाई थी। लाल बहादुर शास्त्री तथा इंदिरा गांधी उनके कृतज्ञ थे। चंदोला ने एक नागा युवती (बागी जेड. ए. फिजो की संबंधी) से विवाह किया था और विद्रोहियों से निजी रिश्ते बना लिए थे। इस नागा पत्नी से जन्मी दोनों संताने लंदन में रहती हैं। उनकी पुस्तक "नागा स्टोरी" भारत की प्रथम सशस्त्र संघर्ष को हार्पर कालिंस ने प्रकाशित किया था।

हरीश चंदोला को पत्रकारिता के माध्यम से और भी काम के लिए कई राजपुरुषों ने साधा था। फिलिस्तीनी नेता यासर अराफत को डालरभरा सूटकेस पहुंचाने के लिए एक प्रधानमंत्री ने आग्रह किया था। क्योंकि चंदोला यायावर संवाददाता थे। जब रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र की समस्तीपुर में जनसभा में बम फूटने से हत्या हुई थी तो चंदोला की राय पर ही उनके अनुज डॉ जगन्नाथ मित्र को मुख्यमंत्री नामित किया गया था।

हरीश चंदोला से मेरी निजी सौहार्द्रता रही। वे तब दमिश्क (सीरिया) में कार्यरत थे। मुझे उनका आतिथ्य स्वीकारने का अवसर मिला। इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स के सम्मेलन में IFWJ के अध्यक्ष के नाते साइप्रस की राजधानी निकोसिया मै गया था। वहां से यूनियन ऑफ अफ्रीकन जर्नलिस्ट्स के अधिवेशन में शरीक होने गया काहिरा होकर दमिश्क गया था। हवाई अड्डे से हरीश चंदोला मुझे घर ले गए थे। उस दौर की बड़ी दिलचस्प और जोखिमभरी एक घटना थी। मेरी भेंट उन्होने कराई भूमिगत अरब विद्रोही डॉ जॉर्ज हब्बास से। वे यासर अराफात से ज्यादा जुझारू थे। मगर दोनों विरोधी रहे। पेशे से मेडिकल डॉक्टर जॉर्ज हब्बास ईसाई पर निष्ठावान अरब थे वे अरबी मुसलमान यासर अराफत को सौदेबाज और अवसरवादी मानते रहे। डॉ हब्बास मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल नासिर के परम मित्र थे। जॉर्ज हब्बास का फलसफा रहा : "दुनिया में दो ही वर्ग हैं : पीड़ित अथवा उत्पीड़क" ! उनकी सलाह थी : "बगावत करो। क्या खोवोगे ? सिवाय जंजीरो के।"

इन्हीं जॉर्ज हब्बास ने फिलिस्तीन राष्ट्र की मांग के समर्थन में फ्रांसीसी वायुयान का अपहरण कराया था। उसे युगांडा के एंटेब्वे हवाई अड्डे पर उतारा था। इस्राइल से अपनी आजादी की मांग को मनवाने की बात रखी थी। इस अपहरण पर एक फिल्म भी बनी थी। घटना है 27 जून 1976 की जब एयर फ्रांस फ्लाइट 139, तेल अवीव (इजराइल) से रवाना हुई। बस उड़ान भरने के बाद, उसका अपहरण कर लिया। विमान बेंगाजी से यह युगांडा के एंटेबे हवाई अड्डे पर पहुंचा। मगर फिर इस्राइली छापेमारो ने जहाज और अपने कैद नागरिकों को छुड़ा लिया था। डॉ जॉर्ज हब्बास इस अपहरण के शिल्पी थे। हरीश चंदोला के अनुरोध पर मैं डॉ हब्बास के तिलस्मी आवास भूतल में पहुंचा। करीब दो घंटे बात हुई। उन्होने भारत की प्रशंसा की। डॉ हब्बास ने मुझसे जॉर्ज फर्नांडिस तथा आपातकाल में इन्दिरा गांधी के लिए हमारी डायनामाइट संघर्ष के बारे में विस्तार से पूछा। मैं हरीश चंदोला जी का आभारी रहा कि एक सेक्युलर अरब क्रांतिकारी से भेंट कराई जो यासर अराफत की भांति यहूदी इजराइल से तिजारत नहीं कर सकता था। लड़ाका था। डॉ हब्बास ईसाई मगर पंथनिरपेक्ष मार्क्सवादी अरब जननायक थे। उन दिनों सीरिया में हाफिज अल असद राष्ट्रपति थे। जब मै मशहूर खलीफा दरम्यान मस्जिद देखने गया तो जुमे की नमाज हेतु राष्ट्रपति भी आये थे।

सभी छः महाद्वीपों के 51 नगरों की यात्रा कर चुका हूँ। मगर हरीश चंदोला जैसे इतिहासवेत्ता और जानकार पत्रकार से दमिश्क में भेंट मेरे लंबे जीवन का एक यादगार वाकया रहा। पत्रकारिता के ऐसे पितामह को मैं नमन करता हूं। स्वर्ग में भी घुमक्कड़ी कर रहे होंगे। जरूर खबरें खोज रहे होंगे। उन्हें सलाम।


K Vikram Rao
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E-mail: k.vikramrao@gmail.com

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