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मस्ती 4 रिव्यू: हंसी कम, सरदर्द ज्यादा

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Place: भोपाल                                                👤By: prativad                                                                Views: 123

रेटिंग: 1/5
डायरेक्टर: मिलाप ज़वेरी
कलाकार: विवेक ओबेरॉय, आफ़ताब शिवदासानी, रितेश देशमुख

22 नवंबर 2025। अगर आपको 2000 के दशक वाली बेपरवाह कॉमेडी याद है — मस्ती, धमाल, गोलमाल, गरम मसाला, नो एंट्री — तो समझ लीजिए, ये उसी जॉनर का एक और सिरदर्दी अवतार है। पहले इन फिल्मों को दिमाग को ब्रेक देने वाला टाइमपास कहा जाता था। अब ये दिमाग तोड़ देने वाला ब्रेक बन चुकी हैं।

फ्रैंचाइज़ जारी है… काश नहीं होती

पहली मस्ती (2004) मजेदार थी। उसके बाद ग्रैंड मस्ती, ग्रेट ग्रैंड मस्ती और अब ये चौथा हिस्सा। फिल्म खुद ही बार-बार कैमरे में झांककर बताती है कि वो “मस्ती यूनिवर्स” की अगली कड़ी है, मानो दर्शक भूल गए हों। आखिरी शॉट में तो पांच उंगलियां दिखाकर अगले पार्ट का टीज़र भी दे देती है।
क्यूट नहीं है। थकाने वाला है।

कहानी वही घिसी—बस रोल बदल गए

इस बार ट्विस्ट ये है कि आधी कहानी में पत्नियां अपने पतियों को धोखा देती हैं, और तीनों 'मस्त' पति ये सोचते घूमते हैं कि उनका “लव वीज़ा” कैसे बचा रहे। कॉन्सेप्ट को प्रोग्रेसिव कहा जा सकता था, अगर इसे स्कूल प्रोजेक्ट वाले नजरिए से न लिखा गया होता।

विवेक, आफ़ताब और रितेश अच्छे एक्टर हैं, लेकिन अब इन रोल्स में उम्र साफ दिखती है। उनकी पत्नियां इतनी ज्यादा युवा दिखती हैं कि mismatch खुद ही पंचलाइन बन जाता है। और हां, फीमेल एक्टर्स के लिए “फ्रैंचाइज़ लॉयल्टी” नाम की कोई चीज इस सीरीज में कभी रही नहीं।

कैमियो आते हैं, लेकिन बस आते ही हैं

जैकलीन फर्नांडीज शुरुआती मिनटों में नजर आती हैं और फिर हवा हो जाती हैं। जेनेलिया भी झलक भर दिखती हैं। फिल्म को ये सब शायद “स्टार वैल्यू” लगती होगी, लेकिन स्क्रीन पर इसका असर लगभग शून्य है।

स्क्रिप्ट में मजाक से ज्यादा थकान

फिल्म ऐसे डायलॉग्स पर गर्व करती है जैसे “दिल का रास्ता नीचे से जाता है”, जो 2004 में भी कमजोर था और 2025 में तो और भी।
स्क्रीनप्ले ऐसा है जैसे किसी ने सारी मजेदार रील्स को जोड़कर पूरी फिल्म बना दी हो — ढेर सारा शोर, थोड़ी सी कॉमेडी और जीरो कनेक्ट।

एक अच्छाई भी है

तुषार कपूर, जो आधे बिहारी आधे रशियन “पाब्लो पुतिनवा” के रोल में अपनी नैचुरल कॉमिक टाइमिंग दिखाते हैं। गोलमाल में जैसे चलते थे, वैसा यहां भी चल जाते हैं। पूरी फिल्म में वही एक ताज़ा हवा की तरह लगते हैं।

नतीजा: बच्चों की रील्स के लिए ठीक, बड़े दर्शकों के लिए दर्द

अगर इस फिल्म के सीन को तोड़कर रील्स में डालो, तो बच्चे शायद हंस लें। थिएटर में बैठकर इसे झेलना अलग बात है।
मैं थिएटर से बाहर निकलते हुए सिर्फ यही सोच रहा था: मस्ती 4 देखने के बाद सर फोड़ने का मन क्यों इतना Strong हो जाता है?

कुल मिलाकर — अगर FOMO है तो देख लें, वरना सर बचा कर रखें।

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