×

45 साल संघर्ष, 25 साल लाठी: आखिर क्यों टूटा भूपेंद्र सिंह का दिल?

prativad news photo, top news photo, प्रतिवाद
Location: भोपाल                                                 👤Posted By: prativad                                                                         Views: 858

भोपाल: 30 सितंबर 2024। मध्यप्रदेश की राजनीति में गहराते हालात अब बीजेपी के शीर्ष नेताओं में नाराजगी का संकेत दे रहे हैं। बुंदेलखंड के प्रमुख ब्राह्मण और क्षत्रिय नेताओं में असंतोष खुलकर सामने आने लगा है, जिसमें पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह की नाराजगी प्रमुखता से उभरकर सामने आई है। हाल ही में सागर में आयोजित रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव में पूर्व मंत्रियों की नाराजगी के बाद बीजेपी का आंतरिक शीत युद्ध सतह पर आ गया।

भूपेंद्र सिंह की व्यथा: संघर्ष और असंतोष
इस शीत युद्ध की पृष्ठभूमि में, पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह की नाराजगी ने नया मोड़ तब लिया जब एक समाचार पत्र ने रिपोर्ट किया कि उन्होंने कॉन्क्लेव के मंच पर खुद के लिए कुर्सी लगवाई और बैठक व्यवस्था से असंतोष जताया। इस रिपोर्ट से आहत भूपेंद्र सिंह ने अपनी पीड़ा सोशल मीडिया के माध्यम से जाहिर की। उन्होंने लिखा, "मैंने और मेरे परिवार ने 45 वर्षों तक पार्टी को इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए संघर्ष किया, यातनाएं झेलीं, लेकिन कुर्सियों की खबर ने मन को व्यथित कर दिया है।"

संघ-भाजपा मेरे खून में: भूपेंद्र सिंह की भावुक प्रतिक्रिया
अपनी फेसबुक पोस्ट में भूपेंद्र सिंह ने लिखा, "संघ और भाजपा मेरे खून में हैं, और मैं हमेशा इनके अनुशासन का पालन करता आया हूँ। पिछले 45 सालों में मैंने पार्टी के लिए निरंतर कार्य किया है, जिनमें 25 साल ऐसे थे जब कांग्रेस की सत्ता थी। उस समय मैं आंदोलनों में पुलिस की लाठियों का सामना किया, जेल की यातनाएं सही, लेकिन अपने संघर्ष के रास्ते से नहीं हटे।"

कुर्सी की चाह नहीं, विचारधारा सर्वोपरि
भूपेंद्र सिंह ने अपने पोस्ट में स्पष्ट किया कि अगर उन्हें सिर्फ कुर्सी का मोह होता, तो वो कांग्रेस सरकार के दमन के समय झूठे मुकदमों और जेल की यातनाओं को क्यों सहते? उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के दौर में जब उनके परिवार की जमीनें अधिग्रहित की जा रही थीं, तब कांग्रेस में शामिल होने का प्रस्ताव मिला था, लेकिन उन्होंने विचारधारा के साथ समझौता करने से इनकार कर दिया।

उन्होंने कहा, "हमने उस समय कुर्सियों का मोह नहीं किया, तो आज क्यों करेंगे? मेरे परिवार का कोई भी सदस्य कभी भी भाजपा के अलावा किसी और पार्टी या विचारधारा से नहीं जुड़ा, और न ही कभी कुर्सी के लिए समझौता किया। अगर कुर्सियों का लालच होता, तो हम संघर्ष और यातनाएं क्यों सहते?"

भविष्य की राजनीति की ओर संकेत
भूपेंद्र सिंह और गोपाल भार्गव की बढ़ती नजदीकियों से यह साफ है कि बीजेपी के अंदर आने वाले समय में राजनीति का समीकरण बदल सकता है। दोनों नेताओं का खुला असंतोष बताता है कि पार्टी के अंदरूनी मतभेद अब खुलकर सामने आ रहे हैं, जो भविष्य की राजनीति पर गहरा असर डाल सकते हैं।

Related News

Global News