
18 मई 2025। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) अब सिर्फ इंसानी भाषा को समझने तक सीमित नहीं रही—यह तकनीक अब जानवरों की 'बोलियों' को डिकोड करने की दिशा में भी तेज़ी से आगे बढ़ रही है। वैज्ञानिकों का मानना है कि हम एक ऐसे युग के करीब हैं जहाँ इंसानों और जानवरों के बीच संवाद संभव हो सकेगा।
दक्षिण प्रशांत के एक सुदूर द्वीप पर रहने वाला न्यू कैलेडोनियन कौआ वर्षों से वैज्ञानिकों के लिए जिज्ञासा का केंद्र रहा है। यह दुर्लभ पक्षी अपने चोंच से लकड़ी के औजार बनाकर कीड़े निकालता है, और यदि उसे गलती महसूस होती है, तो वह औजार को फिर से बेहतर तरीके से बनाता है। स्कॉटलैंड के सेंट एंड्रयूज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक क्रिश्चियन रुट्ज़ के अनुसार, कौओं में न केवल औजार बनाने की क्षमता है, बल्कि वे अपनी 'बोलियों' और सामाजिक संरचना के ज़रिए संस्कृति जैसी विशेषताएं भी दर्शाते हैं।
अब, AI के ज़रिए इन रहस्यों को और गहराई से समझा जा रहा है। अर्थ स्पीशीज़ प्रोजेक्ट जैसी संस्थाएं, जिनमें कंप्यूटर वैज्ञानिक, जीवविज्ञानी और संरक्षण विशेषज्ञ शामिल हैं, विभिन्न प्रजातियों की आवाज़ों और व्यवहारों का डेटा इकट्ठा कर रही हैं और उसे मशीन लर्निंग मॉडलों से विश्लेषित कर रही हैं। इसका उद्देश्य जानवरों के संचार को समझना और उसका संभावित अनुवाद करना है।
इसी दिशा में CETI (Cetacean Translation Initiative) नामक एक अन्य परियोजना विशेष रूप से स्पर्म व्हेल की जटिल ध्वनियों और सामाजिक व्यवहारों को समझने पर केंद्रित है। CETI के सदस्य शेन गेरो के अनुसार, हाल ही में डोमिनिका में उनकी टीम को एक युवा नर व्हेल के अपने परिवार से मिलने पर विशेष ध्वनियों को रिकॉर्ड करने का अवसर मिला—एक ऐसा क्षण जो मानव और व्हेल के बीच संबंध की संभावनाओं को और गहरा करता है।
AI विशेषज्ञ अज़ा रस्किन का मानना है कि यह तकनीकी प्रगति उतनी ही क्रांतिकारी हो सकती है जितनी कि एक समय में टेलीस्कोप का आविष्कार था। उनके अनुसार, “जिस तरह दूरबीन ने हमें यह दिखाया कि पृथ्वी ब्रह्मांड का केंद्र नहीं है, ठीक वैसे ही AI हमें यह समझाने में मदद कर सकती है कि हम जानवरों की दुनिया के केंद्र में नहीं हैं।”
जानवरों के व्यवहार और संचार को समझने में AI एक नई क्रांति का अग्रदूत बन सकता है। इससे न केवल हमारी वैज्ञानिक समझ बढ़ेगी, बल्कि यह जैव विविधता संरक्षण और मानवीय दृष्टिकोण में भी व्यापक बदलाव ला सकता है।