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एआई उपनिवेशवाद: जब डेटा के नाम पर देशों को गुलाम बनाया जाता है

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Place: भोपाल                                                👤By: prativad                                                                Views: 245

9 अगस्त 2025। पुराने ज़माने में दुनिया पर राज करने के लिए मसाले, गुलाम और चाँदी लूटी जाती थी। आज के समय में राज करने का नया तरीका है डेटा लूटना।

आज का यह नया उपनिवेशवाद (गुलाम बनाने का तरीका) अब सिर्फ ज़मीन और तेल पर नहीं है, बल्कि डिजिटल दुनिया में है। यह दिखाई नहीं देता, पर हर जगह मौजूद है। नैरोबी (केन्या) की गरीब बस्तियों से लेकर मनीला (फ़िलीपींस) के गाँवों तक, हर हाथ में स्मार्टफ़ोन है। यही स्मार्टफ़ोन अब नया 'कच्चा माल' है, जिससे डेटा इकट्ठा किया जाता है। जिस तरह पुराने समय में मसाले और गुलाम जहाजों में भरकर पश्चिमी देशों में ले जाए जाते थे, उसी तरह आज आपका डेटा अमेरिका और चीन की बड़ी कंपनियों के सर्वर तक चुपचाप पहुँचा दिया जाता है।

इसे लोग विकास कहते हैं, लेकिन असल में यह डेटा की लूट है। इसे ही एआई उपनिवेशवाद कहते हैं।

विकास या डेटा की लूट?
अमेरिका और चीन की बड़ी टेक कंपनियाँ विकासशील देशों को डेटा की एक खुली खदान की तरह इस्तेमाल कर रही हैं। वे "विकास के लिए एआई" के नाम पर इंटरनेट और प्रोग्राम देते हैं, लेकिन असली फायदा सिर्फ उन्हीं को होता है।

घाना: यहाँ के लोगों की आवाज़ की रिकॉर्डिंग को पश्चिमी देशों के वॉइस असिस्टेंट (जैसे एलेक्सा) को बेहतर बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

नाइजीरिया: पुलिस के पास मौजूद लोगों के चेहरे के डेटा से सैन फ्रांसिस्को में निगरानी रखने वाले सॉफ़्टवेयर को और सटीक बनाया गया।

फ़िलीपींस: किसानों के खेती से जुड़े डेटा का फायदा बड़ी विदेशी कंपनियों को हुआ, जबकि किसानों को बहुत कम लाभ मिला।

यह साझेदारी नहीं, बल्कि एक नया तरीका है जिससे विदेशी कंपनियाँ लूट-खसोट कर रही हैं।

क्या एआई सबको बराबरी पर लाएगा?
हमें सालों से यह बताया गया कि एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) विकासशील देशों में खेती, स्वास्थ्य और शहरों की जिंदगी में क्रांति लाएगा। लेकिन इसका कोई सबूत नहीं है कि यह वादा सच हुआ है।

सच तो यह है कि सिर्फ एक क्रांति हुई है: डेटा की लूट की। विदेशी टेक कंपनियों के सर्वर अब पुराने गोदामों की तरह बन गए हैं, जहाँ गरीब देशों का डेटा जमा होकर अमीर देशों की संपत्ति बन जाता है।

सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि कई बार इसी डेटा का इस्तेमाल उन लोगों के खिलाफ किया जाता है, जिन्होंने यह डेटा दिया था।

केन्या: चेहरे की पहचान वाले सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल राजनेताओं और कार्यकर्ताओं पर नज़र रखने के लिए किया गया।

भारत: एआई पर आधारित धोखाधड़ी पकड़ने वाले सिस्टम ने हज़ारों गरीब लोगों को गलत तरीके से सरकारी सुविधाओं से वंचित कर दिया।

यह वही पुराना "बाँटो और राज करो" का तरीका है, बस अब यह डिजिटल दुनिया में हो रहा है।

बायोमेट्रिक डेटा की होड़
इस नए उपनिवेशवाद में सबसे ज़्यादा मांग बायोमेट्रिक डेटा (जैसे उँगलियों के निशान और आँखों की स्कैनिंग) की है। इसे "सबको वित्तीय सेवाओं से जोड़ने" के नाम पर इकट्ठा किया जाता है, लेकिन अक्सर इसके लिए कोई मज़बूत कानून नहीं होता।

हाल ही में वर्ल्डकॉइन नाम की एक क्रिप्टोकरेंसी ने लोगों की आँखों का स्कैन करने के बदले उन्हें थोड़े से पैसे दिए। सबसे ज़्यादा लोग इसमें कहाँ से जुड़े? केन्या जैसे गरीब अफ्रीकी देशों से, जहाँ कानून कमजोर थे। (वर्ल्डकॉइन के मालिक सैम ऑल्टमैन, ChatGPT बनाने वाली कंपनी के CEO भी हैं।)

हमें क्या करना चाहिए?
अगर एआई और इंटरनेट को सिर्फ डेटा लूटने और लोगों को कंट्रोल करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा, तो गरीब देश एक बार फिर शोषण का शिकार होंगे।

हमें अपने डेटा को बचाने के लिए कड़े कानून बनाने चाहिए और डेटा पर अपना अधिकार जमाना चाहिए। तभी हम यह सुनिश्चित कर पाएंगे कि डिजिटल दुनिया में इतिहास खुद को न दोहराए।

- दीपक शर्मा
prativad@gmail.com

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