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क्या आपकी बातचीत वाकई निजी है? पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और आम लोगों के लिए ज़रूरी गोपनीयता टूल्स

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Place: भोपाल                                                👤By: prativad                                                                Views: 837

17 जुलाई 2025। आज का युग डिजिटल है। हम सभी दिन-रात स्मार्टफोन, कंप्यूटर और इंटरनेट से जुड़े हुए हैं—चाहे वह WhatsApp चैट हो, Google पर सर्च हो, या ऑफिस मीटिंग। लेकिन क्या आपकी हर बातचीत वाकई निजी है? क्या कोई आपकी अनुमति के बिना आपकी ऑनलाइन गतिविधियों को देख सकता है?

जवाब है: हाँ, अगर आप सावधान नहीं हैं। इसलिए यह ज़रूरी हो गया है कि हम सभी यह समझें कि अपनी डिजिटल पहचान और संचार को सुरक्षित कैसे रखें, ख़ासतौर पर भारत जैसे देश में जहाँ साइबर अपराध, डेटा लीक और पहचान की चोरी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।

⚡ भारत में क्यों ज़रूरी है डिजिटल गोपनीयता?
भारत में डिजिटल लेनदेन, ऑनलाइन सेवाओं और सरकारी पहचान प्रणालियों (जैसे आधार) की पहुँच तेजी से बढ़ी है। लेकिन साथ ही, साइबर हमलों, फोन हैकिंग, कॉल रिकॉर्डिंग, और सोशल मीडिया पर निगरानी के मामलों में भी उछाल आया है।

2023 में भारत सरकार ने डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट पारित किया, लेकिन व्यवहारिक स्तर पर आम नागरिक को अपनी बातचीत सुरक्षित रखने के लिए खुद सतर्क रहना पड़ता है।

आपकी बातचीत को निजी रखने के लिए अपनाएं ये उपाय:
1️⃣ सुरक्षित मैसेजिंग ऐप का इस्तेमाल करें: Signal सबसे भरोसेमंद विकल्प

Signal एक ओपन-सोर्स, एंड-टू-एंड एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग ऐप है। इसका मालिक कोई कॉर्पोरेट कंपनी नहीं बल्कि एक नॉन-प्रॉफिट संस्था है।

WhatsApp और Telegram जैसे ऐप्स में भी एन्क्रिप्शन होता है, लेकिन वे आपकी मेटा-डेटा (जैसे किससे कब बात की) स्टोर कर सकते हैं।

Signal में न तो चैट बैकअप होते हैं, न विज्ञापन ट्रैकिंग, न ही कंपनी को आपकी चैट की जानकारी।

प्रो टिप: Signal में "Disappearing Messages" विकल्प ऑन करें, जिससे आपकी चैट अपने-आप एक तय समय बाद हट जाए।

2️⃣ पर्सनल डिवाइस और नेटवर्क का इस्तेमाल करें

कार्यस्थल का कंप्यूटर या WiFi इस्तेमाल करते समय यह मानें कि आपकी गतिविधियाँ नज़र में हो सकती हैं।

अगर आप किसी संवेदनशील विषय पर बात कर रहे हैं—जैसे सरकारी भ्रष्टाचार, ऑफिस विवाद, या सामाजिक मुद्दे—तो हमेशा अपना पर्सनल मोबाइल/नेटवर्क इस्तेमाल करें।

भारत में कुछ कंपनियां कर्मचारियों के फोन पर स्क्रीन रिकॉर्डिंग ऐप तक इंस्टॉल करवा लेती हैं—सावधानी ज़रूरी है।

3️⃣ VPN का उपयोग करें, लेकिन सीमाओं के साथ

VPN आपके लोकेशन को छुपाता है और इंटरनेट ट्रैफिक को एन्क्रिप्ट करता है।

लेकिन ध्यान दें: VPN कंपनियाँ भी डेटा लॉग कर सकती हैं और कानूनन उनके पास यह डेटा शेयर करने का दबाव आ सकता है।

इसलिए भरोसेमंद और नो-लॉग पॉलिसी वाले VPN चुनें, जैसे ProtonVPN या Mullvad।

4️⃣ सबसे सुरक्षित है Tor ब्राउज़र का उपयोग

Tor एक विशेष ब्राउज़र है जो आपकी ऑनलाइन गतिविधियों को गुमनाम बनाए रखता है।

यह आपके इंटरनेट ट्रैफिक को दुनियाभर के कई नोड्स से घुमा कर भेजता है, जिससे आपकी पहचान छुप जाती है।

Tor का उपयोग भारत में पत्रकार, एक्टिविस्ट, और व्हिसलब्लोअर भी करते हैं।

आप Tor के ज़रिए SecureDrop जैसे प्लेटफ़ॉर्म से गुमनाम रूप से दस्तावेज़ साझा कर सकते हैं।

5️⃣ प्रिंटिंग और स्क्रीनशॉट में सावधानी बरतें

कुछ ऑफिस और सरकारी संस्थान ईमेल या दस्तावेज़ में वॉटरमार्क या ट्रैकिंग कोड डालते हैं जिससे लीक की पहचान की जा सके।

प्रिंटर डॉट्स तकनीक से भी आपके द्वारा प्रिंट की गई सामग्री की तारीख, समय और स्थान का पता लगाया जा सकता है।

⚡ भारतीय संदर्भ में कानूनी जोखिम
भारत में आईटी एक्ट 2000, डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट 2023 और साइबर क्राइम कानूनों के अंतर्गत आपकी डिजिटल गतिविधियों पर कार्रवाई संभव है।

यदि कोई संवेदनशील जानकारी सार्वजनिक हो जाती है, तो आपके ऊपर गोपनीयता उल्लंघन, अफवाह फैलाने, या ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के तहत भी मामला दर्ज हो सकता है। इसलिए तकनीकी सुरक्षा के साथ-साथ कानूनी समझदारी भी ज़रूरी है।

गोपनीयता एक सामूहिक जिम्मेदारी है
जैसा कि ACLU टेक्नोलॉजिस्ट डैनियल गिल्मर कहते हैं:

"अपने अधिकारों की रक्षा करना एक टीम गेम है। यदि आप सीखते हैं कि अपने डेटा की रक्षा कैसे करनी है, और दूसरों को भी सिखाते हैं, तो आप एक मज़बूत डिजिटल समाज का निर्माण कर रहे हैं।"

भारत में इंटरनेट का इस्तेमाल जितनी तेज़ी से बढ़ रहा है, गोपनीयता उतनी ही अहम होती जा रही है।

तो अगली बार जब आप कोई मैसेज भेजें या गूगल सर्च करें, यह ज़रूर सोचें — क्या मैं इसे सुरक्षित तरीके से कर रहा हूँ?

— दीपक शर्मा

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