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बिना सुरक्षा अपडेट वाले सिस्टम रैनसमवेयर हमलों का सबसे बड़ा शिकार, रिपोर्ट में खुलासा

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Place: नई दिल्ली                                                👤By: prativad                                                                Views: 273


सोफोस की चेतावनी: तकनीकी कमज़ोरियाँ बनीं 32% रैनसमवेयर हमलों की वजह, औसतन 1.5 मिलियन डॉलर से ज्यादा की रिकवरी लागत

2 जुलाई 2025। दुनियाभर में रैनसमवेयर हमलों का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है, और सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि ज्यादातर हमले उन कंप्यूटर सिस्टमों पर हो रहे हैं जिनमें जरूरी सुरक्षा अपडेट नहीं किए गए हैं। एक ताज़ा अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट के अनुसार, 2025 में हुए सफल रैनसमवेयर हमलों में से 32% की वजह सिस्टम की यही कमजोरियाँ रहीं।

साइबर सुरक्षा कंपनी सोफोस की यह रिपोर्ट 17 देशों के 3,400 आईटी विशेषज्ञों के अनुभवों पर आधारित है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकतर संगठनों में साइबर सुरक्षा को लेकर तैयारी बेहद कमजोर है। पीड़ित संगठनों ने औसतन 2.7 वजहें बताई जिनकी वजह से वे हमले का शिकार बने। इनमें सबसे आम कारण थे – साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों की कमी, सुरक्षा खामियों की जानकारी का अभाव और सीमित स्टाफ।

कैसे होता है हमला?
रिपोर्ट में बताया गया है कि साइबर अपराधी सबसे पहले इंटरनेट से जुड़े उन सिस्टमों को खोजते हैं जिनमें कोई पुराना सुरक्षा दोष है। इसके बाद वे उस कमजोरी का फायदा उठाकर सिस्टम में घुस जाते हैं। एक बार अंदर पहुंचने के बाद, वे छिपे हुए एक्सेस बनाकर लंबे समय तक नियंत्रण बनाए रखते हैं, और मौका मिलते ही डाटा को लॉक (एन्क्रिप्ट) कर फिरौती की मांग करते हैं।

कितना होता है नुकसान?
रिपोर्ट में बताया गया है कि एक रैनसमवेयर हमले के बाद किसी संगठन को अपने सिस्टम को वापस सामान्य स्थिति में लाने में औसतन 1.5 मिलियन डॉलर (करीब 12.5 करोड़ रुपये) तक खर्च करना पड़ता है। यह नुकसान केवल फिरौती की रकम तक सीमित नहीं होता, बल्कि सिस्टम सुधार, कामकाज में रुकावट, डेटा रिकवरी और सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने में भी भारी खर्च आता है।

समाधान क्या है?
रिपोर्ट साफ़ तौर पर कहती है कि सभी संगठनों को अपने सिस्टम में समय-समय पर सुरक्षा अपडेट करना चाहिए और साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों की मदद लेनी चाहिए। केवल एंटीवायरस लगाना अब काफी नहीं है। सक्रिय सुरक्षा उपाय, कर्मचारियों की ट्रेनिंग और सिस्टम की नियमित जांच ही भविष्य में ऐसे खतरों से बचा सकती है।

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