
फिल्म: जॉली LLB 3
निर्देशक: सुभाष कपूर
कलाकार: अक्षय कुमार, अरशद वारसी, सौरभ शुक्ला
श्रेणी: कॉमेडी-ड्रामा
रेटिंग: ★★★
20 सितंबर 2025। जॉली LLB सीरीज़ की तीसरी कड़ी में इस बार मज़ा दोगुना है—क्योंकि यहां दो जॉली हैं। अक्षय कुमार और अरशद वारसी, दोनों ही अपने-अपने अंदाज़ में जॉली बने हैं और फिल्म की असली ताक़त यही टकराव है।
कहानी का ढांचा
अरशद वारसी हैं जगदीश त्यागी (पश्चिमी यूपी से) और अक्षय कुमार हैं जगदीश्वर मिश्रा (पूर्वी यूपी से)। नाम, क्लाइंट और पहचान को लेकर दोनों के बीच लगातार भ्रम होता है, जो कोर्ट से लेकर बाहर तक खींचतान में बदल जाता है।
फिल्म की शुरुआत हल्के-फुल्के लेकिन बेवकूफी भरे मामलों से होती है, जो हंसी तो लाते हैं लेकिन जज्बात नहीं पकड़ पाते। धीरे-धीरे कहानी ज़मीन अधिग्रहण और कॉर्पोरेट-पॉलिटिक्स के बड़े मुद्दे तक पहुँचती है—यहीं से फिल्म गंभीर होती है और असली पकड़ बनाती है।
कलाकारों की परफॉर्मेंस
अक्षय और अरशद की जोड़ी फिल्म को खींचती है। दोनों का कॉमिक टाइमिंग और स्क्रीन एनर्जी मजेदार है, भले ही लहजे और बॉडी लैंग्वेज पूरी तरह परफेक्ट न लगे।
सौरभ शुक्ला, हमेशा की तरह, शो चुरा ले जाते हैं। जज सुंदर लाल त्रिपाठी के रूप में उनका गुस्सा, चुटकुले और कोर्टरूम की मस्ती हर सीन को यादगार बनाती है।
क्या बदला है, क्या नहीं
पहली जॉली LLB (2013) के बाद से कोर्टरूम ड्रामा का स्तर बदल चुका है। असली अदालतों की झलक अब टीवी और OTT पर दिखती है—गिल्टी माइंड्स, क्रिमिनल जस्टिस जैसी सीरीज़ ने स्टैंडर्ड ऊँचा कर दिया है।
इसलिए तीसरे भाग में फिल्म को अपनी पहचान बनाए रखने के लिए और मेहनत करनी पड़ी है। अच्छी बात यह है कि इस बार कहानी सिर्फ़ वकीलों के ड्रामे तक सीमित नहीं रहती, बल्कि राजनीति, ज़मीन और लालच जैसे बड़े सवाल उठाती है।
जॉली LLB 3 सिर्फ एक सीक्वल नहीं, बल्कि समय से जुड़ा बयान है। यह दिखाती है कि सरकारें बदल सकती हैं, लेकिन सिस्टम में लालच नहीं।
फिल्म हंसी-मज़ाक, कोर्टरूम की भिड़ंत और गंभीर सामाजिक मुद्दों को जोड़ती है। क्लाइमैक्स शानदार है और उम्मीद से बेहतर निकलता है।
सीधा-सा नतीजा: अगर आपको पहले दोनों जॉली पसंद आई थीं, तो तीसरी जरूर देखेंगे—और शायद यह सबसे ज्यादा असर छोड़ेगी।