
21 सितंबर 2025। रेड कार्पेट पर वाहवाही से लेकर बड़े फिल्म फेस्टिवल्स में क्रिटिक्स की सराहना तक—नीरज घायवान की होमबाउंड लंबे समय से चर्चा में रही है। कान्स में छह मिनट तक खड़े होकर मिली तालियाँ, टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में मिली सफलता और अब ऑस्कर के लिए भारत की आधिकारिक एंट्री बन जाना—फिल्म ने उम्मीदों से कहीं ज़्यादा मुकाम हासिल किया है। ईशान खट्टर, विशाल जेठवा और जान्हवी कपूर स्टारर यह फिल्म अब भारत के सिनेमाघरों में रिलीज़ होने जा रही है। सवाल है—क्या यह सचमुच उस ग्लोबल तारीफ़ और अवॉर्ड्स की हकदार है?
कहानी
फिल्म दो दोस्तों—चंदन (विशाल जेठवा) और शोएब (ईशान खट्टर)—की है, जो पुलिस कॉन्स्टेबल बनने का सपना देखते हैं ताकि उन्हें वह सम्मान मिल सके, जिससे समाज ने उन्हें वंचित रखा। एक दलित है और दूसरा मुस्लिम। परीक्षा पास करने के बाद भी सिस्टम उन्हें परखता है, और उनका संघर्ष जारी रहता है।
नतीजे आते हैं तो पता चलता है कि एक सफल हो गया, जबकि दूसरे का सपना अधूरा रह जाता है। यही उनके रिश्ते में दरार पैदा करता है। गुस्से में दोनों एक-दूसरे को अपनी जिंदगी की कड़वी सच्चाइयाँ सुना देते हैं। चंदन और सुधा (जान्हवी कपूर) के बीच रोमांस पनपता है, लेकिन करियर और जिम्मेदारियों के बीच वह भी टूट जाता है।
दोनों हालात से हारकर परिवार की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए दूसरे शहर में छोटे-मोटे काम करने लगते हैं। तभी कोविड-19 की मार से उनकी जिंदगी फिर उलझ जाती है, और वे लॉकडाउन के बीच घर लौटने का फैसला करते हैं। क्लाइमैक्स में यही सफर असली असर छोड़ता है।
अभिनय
विशाल जेठवा पूरी फिल्म में चमकते हैं। चंदन के रूप में वे पहले ही सीन से प्रभावशाली लगते हैं।
ईशान खट्टर शोएब के रोल में सहज हैं, हालांकि कुछ हिस्सों में उनका प्रदर्शन फीका लगता है। क्लाइमैक्स में वे कमाल कर देते हैं।
जान्हवी कपूर छोटे लेकिन असरदार रोल में हैं।
हर्षिका परमार (चंदन की बहन) का किरदार सीमित स्क्रीन टाइम के बावजूद सबसे मजबूत लगता है।
निर्देशन और लेखन
नीरज घायवान का अंदाज़ वही है—कड़वी सामाजिक और राजनीतिक सच्चाइयों को बेहद सादगी से पर्दे पर उतारना। वरुण ग्रोवर और श्रीधर दुबे के लिखे संवाद हालात के मुताबिक़ कभी भावुक, तो कभी हल्की हंसी छोड़ जाते हैं।
हालांकि, जान्हवी के किरदार को और गहराई दी जा सकती थी। इसके बावजूद फिल्म की कहानी और क्लाइमैक्स दर्शकों पर गहरी छाप छोड़ते हैं।
देखना चाहिए या नहीं?
होमबाउंड सिर्फ एक फिल्म नहीं, यह ज़िंदगी की उन हकीकतों की याद दिलाती है जिन्हें हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं। क्लाइमैक्स भावुक कर देने वाला है और थिएटर में कुछ दर्शकों की आँखें नम होना तय है। यह फिल्म न सिर्फ़ देखने लायक है, बल्कि सोचने पर मजबूर करती है।