
22 मई 2025। चिकित्सा विज्ञान लगातार नए आयाम छू रहा है। अब मानव मल से तैयार की जा रही दवाएं गंभीर आंत संबंधी बीमारियों के इलाज में कारगर साबित हो रही हैं। सुनने में अजीब लगने वाला यह प्रयोग दरअसल "फीकल माइक्रोबायोटा ट्रांसप्लांटेशन (FMT)" पर आधारित है, जिसमें स्वस्थ व्यक्ति के मल से उपयोगी बैक्टीरिया निकालकर उन्हें कैप्सूल के रूप में मरीज को दिया जाता है।
💊 क्या है स्टूल कैप्सूल?
'स्टूल कैप्सूल' यानी मल से तैयार की गई दवा, किसी आम दवा की तरह दिखती है लेकिन इसमें होता है गट माइक्रोबायोटा — यानी आंतों में पाए जाने वाले लाभकारी जीवाणु। इन कैप्सूल को ऐसे लोगों को दिया जाता है जिनकी आंतों का बैक्टीरियल संतुलन बिगड़ गया हो।
💊 कैप्सूल कैसे बनता है?
एक स्वस्थ व्यक्ति से लिया गया मल एक विशेष प्रक्रिया से शोधित किया जाता है, जिसमें सभी हानिकारक तत्वों और विषाणुओं को हटाया जाता है। इसके बाद बचे हुए लाभकारी बैक्टीरिया को सुखाकर कैप्सूल के रूप में बदला जाता है।
💊 किन बीमारियों में होता है फायदा?
सबसे पहले इस थेरेपी का इस्तेमाल Clostridioides difficile infection (C. diff) के इलाज में हुआ — यह एक गंभीर आंत का संक्रमण है, जो अक्सर एंटीबायोटिक्स के अत्यधिक उपयोग के कारण होता है।
FMT थेरेपी की सफलता दर 90% से अधिक बताई गई है। इसके अलावा, यह थेरेपी अब अन्य बीमारियों में भी संभावनाएं दिखा रही है:
Inflammatory Bowel Disease (IBD): क्रोन्स डिज़ीज़ और अल्सरेटिव कोलाइटिस जैसी बीमारियों में राहत।
Irritable Bowel Syndrome (IBS): पाचन समस्याओं में सुधार।
ऑटिज़्म, मोटापा, डायबिटीज, पार्किंसन और लिवर की समस्याएं: इन पर भी शोध जारी हैं।
💊 भारत में कहां हो रहा है प्रयोग?
भारत में एम्स (AIIMS), पीजीआई चंडीगढ़ और सीएमसी वेल्लोर जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में इस तकनीक पर गंभीर शोध और सीमित क्लिनिकल ट्रायल हो रहे हैं। हालांकि यह इलाज अभी आमतौर पर उपलब्ध नहीं है और केवल विशेष मामलों में प्रयोग के लिए स्वीकृत है।
💊 क्या है सावधानी?
डोनर का पूरा मेडिकल परीक्षण जरूरी होता है।
प्रोसेसिंग के दौरान संक्रमण से बचाव के लिए सख्त मानक अपनाए जाते हैं।
यह उपचार अभी भी FDA (अमेरिका) और DCGI (भारत) जैसे नियामक निकायों की सीमित स्वीकृति के तहत आता है।
मानव मल, जो अब तक एक अपशिष्ट के रूप में देखा जाता था, आज चिकित्सा विज्ञान की नई खोज का स्रोत बन चुका है। 'स्टूल कैप्सूल' थैरेपी न सिर्फ गंभीर बीमारियों में नई उम्मीद जगा रही है, बल्कि यह भी दर्शा रही है कि विज्ञान में कुछ भी असंभव नहीं।