
18 अगस्त 2025। हृदय रोग से जूझ रहे मरीजों के लिए चिकित्सा विज्ञान में एक नई उम्मीद जगी है। जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक उन्नत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) मॉडल तैयार किया है, जो अचानक होने वाले कार्डियक अरेस्ट की पहचान पारंपरिक तरीकों की तुलना में कहीं अधिक सटीकता से कर सकता है।
इस मॉडल का नाम MAARS (Multimodal AI for Arrhythmic Risk Stratification) रखा गया है। इसकी खासियत यह है कि यह MRI इमेजिंग में छिपे हृदय के सूक्ष्म निशानों और स्कार्स का पता लगाने के साथ-साथ मरीज की विस्तृत मेडिकल हिस्ट्री का भी विश्लेषण करता है। पारंपरिक जांच तकनीकों से जो अहम जानकारियां छूट जाती थीं, यह AI उन्हें उजागर कर देता है।
अध्ययन और परिणाम
इस शोध का नेतृत्व डॉ. नतालिया त्रायानोवा ने किया है। उनका कहना है कि आज भी कई ऐसे मरीज हैं जिन्हें समय रहते सही इलाज नहीं मिल पाता, जबकि कई मरीजों को अनावश्यक रूप से डिफिब्रिलेटर लगा दिए जाते हैं। MAARS इस समस्या को हल करने में बड़ी भूमिका निभा सकता है।
मौजूदा मेडिकल गाइडलाइंस जहाँ केवल 50% मामलों में ही सही साबित होती हैं, वहीं यह AI मॉडल 89% सटीकता से जोखिम का अनुमान लगाता है।
40 से 60 वर्ष की आयु वर्ग के सबसे ज्यादा खतरे वाले मरीजों में इसकी सटीकता 93% तक पहुँच जाती है।
यह मॉडल न सिर्फ जोखिम का आकलन करता है, बल्कि यह भी बताता है कि मरीज हाई रिस्क में क्यों हैं, जिससे डॉक्टरों को व्यक्तिगत उपचार योजना (personalized treatment plan) बनाने में मदद मिलती है।
चिकित्सा में संभावित बदलाव
MAARS विशेष रूप से हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी जैसी आनुवंशिक हृदय बीमारियों में जीवनरक्षक साबित हो सकता है, जहाँ अचानक मौत का खतरा बना रहता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह तकनीक भविष्य में कार्डियक देखभाल को पूरी तरह बदल सकती है और हजारों जिंदगियाँ बचा सकती है।
आगे की योजना
इससे पहले 2022 में भी टीम ने कार्डियक अरेस्ट से मृत्यु की संभावना का अनुमान लगाने वाला एक AI मॉडल बनाया था। अब शोधकर्ता इस नए MAARS मॉडल को और बड़े पैमाने पर परीक्षण करने और इसे कार्डियक सरकोइडोसिस व एरिद्मोजेनिक राइट वेंट्रिकुलर कार्डियोमायोपैथी जैसी अन्य हृदय बीमारियों में लागू करने की तैयारी कर रहे हैं।
इस शोध में जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस और एट्रियम हेल्थ के विशेषज्ञों ने मिलकर योगदान दिया है। अध्ययन को प्रतिष्ठित पत्रिका ‘नेचर कार्डियोवैस्कुलर रिसर्च’ में प्रकाशित किया गया है।