
26 अप्रैल 2025। सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) को बढ़ावा देने और उनके लिए आवश्यक चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास पर केंद्र सरकार से विस्तृत स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। यह निर्देश एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान दिया गया, जिसमें सरकार पर पर्यावरण संरक्षण को लेकर लापरवाही के आरोप लगाए गए थे।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि केंद्र को अपनी नीतियों का ब्योरा रिकॉर्ड पर रखना होगा। भारत के अटॉर्नी जनरल ने इसके लिए चार सप्ताह का समय मांगा, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। अगली सुनवाई 14 मई को होगी।
याचिका अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दायर की थी, जिसमें उन्होंने कहा कि सरकार ने 2012 में वर्ष 2020 तक 70 लाख इलेक्ट्रिक वाहन सड़कों पर लाने का लक्ष्य रखा था, लेकिन 2025 तक भी यह संख्या सिर्फ 35 लाख तक पहुँच पाई है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि चार्जिंग स्टेशन की योजना भी बुरी तरह विफल रही है — 2.27 लाख के लक्ष्य के मुकाबले केवल 27,000 चार्जिंग स्टेशन ही बन पाए हैं।
भूषण ने कहा कि देश में 26 करोड़ से अधिक पेट्रोल-डीज़ल चालित वाहन हैं, जो पर्यावरण को भारी नुकसान पहुँचा रहे हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि हर पार्किंग स्थल पर ईवी चार्जिंग स्टेशन क्यों नहीं हो सकते?
इस पर पीठ ने कहा कि सरकार की नीतियों के अलावा, ईवी की सफलता बाजार की मांग, उपभोक्ताओं के विश्वास और क्रय शक्ति पर भी निर्भर करती है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने यह भी कहा कि ऑटोमोबाइल उद्योग देश का एक बड़ा रोजगार प्रदाता और राजस्व स्रोत है।
याचिका में आरोप है कि सरकार इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को बढ़ावा देने वाली अपनी ही नीतियों जैसे राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन योजना (NEMMP 2020) और नीति आयोग की शून्य उत्सर्जन वाहन नीति को लागू करने में विफल रही है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि इससे संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत नागरिकों के जीवन और स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार का उल्लंघन हुआ है।
याचिका में यह भी मांग की गई है कि सरकार अंतरराष्ट्रीय प्रथाओं जैसे प्रायोरिटी पार्किंग, टोल में छूट, निजी चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को सब्सिडी, और अपार्टमेंट में चार्जिंग सुविधा अनिवार्य करने जैसे उपाय अपनाए।
2019 में सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन, कॉमन कॉज और सीताराम जिंदल फाउंडेशन द्वारा दाखिल इस याचिका में कहा गया है कि सरकार की निष्क्रियता के चलते भारतीय शहर 'गैस चैंबर' बनते जा रहे हैं और बच्चों सहित आम नागरिकों के स्वास्थ्य पर इसका गंभीर असर पड़ रहा है।