
1 अगस्त 2025। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सुरक्षित, सुव्यवस्थित और वाहन योग्य सड़कों का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मौलिक अधिकार का अभिन्न हिस्सा है। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सड़कों के निर्माण और रखरखाव की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है और इसे निजी कंपनियों को सौंपने से बचना चाहिए।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की खंडपीठ ने यह टिप्पणी उस समय की जब वे एक मामले पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें एक निजी संस्था ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा MPRDC (मध्य प्रदेश रोड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन) की रिट याचिका स्वीकार करने के फैसले को चुनौती दी थी।
क्या निजी संस्था के खिलाफ रिट याचिका स्वीकार्य है?
अपीलकर्ता ने यह दलील दी थी कि एक निजी संस्था के खिलाफ रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि कोई निजी संस्था सार्वजनिक कार्य—जैसे सड़क निर्माण—में संलग्न है, तो उस पर रिट याचिका दायर की जा सकती है।
न्यायालय ने कहा कि मध्य प्रदेश राजमार्ग अधिनियम, 2004, यह स्पष्ट करता है कि राज्य की जिम्मेदारी है कि वह सड़कों के निर्माण, विकास और रखरखाव की निगरानी करे।
राज्य की जिम्मेदारी पर जोर
फैसले में कहा गया:
"चूंकि देश में किसी भी स्थान तक पहुंचने का अधिकार, कुछ अपवादों के साथ, संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) के अंतर्गत मौलिक अधिकार है, और सुरक्षित सड़कों का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का भाग है, इसलिए राज्य का यह कर्तव्य है कि वह अपने नियंत्रण में आने वाली सड़कों का समुचित विकास और रखरखाव सुनिश्चित करे।"
कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी कि ऐसे सार्वजनिक कार्यों को अनियंत्रित रूप से निजी कंपनियों को सौंपना उचित नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला स्पष्ट करता है कि सड़क जैसी सार्वजनिक अवसंरचनाओं के मामलों में निजी संस्थाओं की भूमिका सीमित होनी चाहिए और अंतिम जिम्मेदारी राज्य की ही होती है। साथ ही यह निर्णय सड़क विकास को लेकर पारदर्शिता और संवैधानिक जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।
Cause Title: UMRI POOPH PRATAPPUR (UPP) TOLLWAYS PVT. LTD. VERSUS M.P. ROAD DEVELOPMENT CORPORATION AND ANOTHER