
7 जुलाई 2025। भारत अब अमेरिका के साथ संभावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर "अपनी ताकत और राष्ट्रीय हितों" के आधार पर बातचीत कर रहा है। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने शनिवार को स्पष्ट कहा कि भारत अब किसी भी समयसीमा या दबाव में नहीं, बल्कि आत्मविश्वास के साथ सौदे की शर्तें तय कर रहा है।
गोयल ने हिंदू बिजनेसलाइन को दिए बयान में कहा, “आज भारत अपनी ताकत के बल पर बात कर रहा है। हम आत्मनिर्भर हैं और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में किसी से भी पीछे नहीं।” उन्होंने कहा कि अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर बातचीत जारी है, लेकिन भारत किसी भी दबाव की समयसीमा में नहीं बंधेगा। “हम अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए हर वैश्विक जुड़ाव पर निर्णय लेते हैं,” उन्होंने जोड़ा।
यह बयान ऐसे समय पर आया है जब अमेरिका और भारत 9 जुलाई की एक अनौपचारिक डेडलाइन के भीतर समझौते को अंतिम रूप देने की कोशिश कर रहे हैं। यह समयसीमा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस टैरिफ अभियान के संदर्भ में है, जो उन्होंने ‘मुक्ति दिवस’ घोषित करते हुए 10% से लेकर 70% तक के शुल्क लागू किए थे – उन देशों पर, जो अमेरिका के साथ "अनुचित व्यवहार" कर रहे थे।
भारत का उद्देश्य है कि इस समझौते के जरिए उसे श्रम-प्रधान वस्तुओं (जैसे वस्त्र, चमड़ा, जूते आदि) के निर्यात के लिए अमेरिकी बाजार तक अधिक पहुंच मिले। हिंदू बिजनेसलाइन ने एक सूत्र के हवाले से लिखा, “भारत चाहता है कि उसे इन क्षेत्रों में अन्य देशों के मुकाबले वरीयता मिले।”
कुछ रिपोर्टों के अनुसार, अमेरिका के साथ व्यापार समझौता अंतिम चरण में है, जबकि कुछ का मानना है कि यह चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, भारत ने कई अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ घटाने की पेशकश की है, लेकिन कृषि और डेयरी जैसे "संवेदनशील क्षेत्रों" में स्पष्ट लाल रेखाएं खींच दी हैं।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में कहा था, “भारत ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगा, जिससे हमारे किसानों या कृषि व्यवस्था को नुकसान पहुंचे।”
भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2024-25 में $131.8 बिलियन तक पहुंच गया, जिसमें भारत को $41.18 बिलियन का व्यापार अधिशेष रहा – यानी भारत अमेरिका को जितना निर्यात करता है, उससे कहीं कम आयात करता है।
उधर अमेरिका ने ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में यूके और वियतनाम के साथ नए व्यापार समझौते किए हैं। साथ ही चीन के साथ भी टैरिफ सीमित करने के लिए एक अस्थायी समझौता किया गया है।
भारत अब वैश्विक मंच पर सिर्फ "मांगने वाला" नहीं, बल्कि एक सशक्त और रणनीतिक रूप से सोचने वाला खिलाड़ी बन चुका है – और अमेरिका के साथ यह नया व्यापार समझौता इसी नई सोच की एक मिसाल हो सकता है।