
Prativad.com | 6 मई 2025।
पाहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत में गुस्सा है और पाकिस्तान में खौफ। भारत बार-बार कह चुका है कि अब जवाबी कार्रवाई सिर्फ बयान तक सीमित नहीं रहेगी—सीधा एक्शन लिया जाएगा। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में जिस तरह से लॉन्चिंग पैड्स खाली किए जा रहे हैं, मदरसे बंद हो रहे हैं, और गांवों को खाली कराया जा रहा है, उससे साफ है कि पाकिस्तान भारतीय जवाबी हमले की आशंका से बुरी तरह घबराया हुआ है।
इस पृष्ठभूमि में एक बड़ा सवाल उभरता है:
क्या भारत के जवाबी सैन्य दबाव से पाकिस्तान पीओके छोड़ सकता है? क्या वह सीधी लड़ाई से बचने के लिए पीछे हटेगा?
⚡ पाकिस्तान पर चौतरफा दबाव: अंदर और बाहर दोनों मोर्चों पर संकट
आर्थिक दिवालियापन: IMF से बार-बार कर्ज लेने के बावजूद पाकिस्तान आर्थिक अस्थिरता से जूझ रहा है।
राजनीतिक अस्थिरता: आंतरिक सत्ता संघर्ष ने प्रशासनिक नियंत्रण को कमजोर कर दिया है।
आतंरिक सुरक्षा संकट: बलूचिस्तान, KPK और TTP जैसे घरेलू विद्रोह पाकिस्तान की सैन्य क्षमता को पहले से ही बांट चुके हैं।
इन सबके बीच भारत से संभावित टकराव पाकिस्तान के लिए आत्मघाती हो सकता है, और यही कारण है कि पाकिस्तान PoK से कदम पीछे खींचने की मानसिक तैयारी में दिख रहा है।
⚡ अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर भी झटका: UNSC में पाकिस्तानी प्रोपेगैंडा फेल
पाकिस्तान ने एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) का दरवाज़ा खटखटाया, उम्मीद थी कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय भारत पर दबाव बनाएगा। लेकिन हुआ इसका उल्टा।
बैठक बेनतीजा रही: UNSC में 15 देशों के साथ बंद कमरे में चर्चा हुई, लेकिन कोई बयान, रिलीज या आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई।
भारत के खिलाफ कोई समर्थन नहीं: पाकिस्तान का दुष्प्रचार काम नहीं आया।
सूत्रों के मुताबिक: परिषद के कई सदस्यों ने पाकिस्तान से तीखे सवाल पूछे, विशेष रूप से आतंकी नेटवर्क और समर्थन पर।
इससे साफ हो गया है कि अब वैश्विक मंचों पर भी पाकिस्तान की "कश्मीर कार्ड" वाली रणनीति बेअसर होती जा रही है। दुनिया अब आतंकवाद को लेकर भारत के रुख को गंभीरता से ले रही है।
⚡ क्या पाकिस्तान POK छोड़ सकता है? सीधा नहीं, पर रणनीतिक 'वापसी' मुमकिन
पाकिस्तान के लिए पीओके छोड़ना राजनीतिक रूप से बहुत बड़ा झटका होगा। लेकिन भारत के दबाव, वैश्विक आलोचना और आंतरिक संकट के कारण वह "वापसी की रणनीति" अपना सकता है, जैसे:
आतंकी लॉन्चिंग पैड खुद हटाना
कुछ हिस्सों को No Conflict Zone घोषित करना
अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों की मांग करना
खुद ही नियंत्रण सीमित करना ताकि भारत की कार्रवाई टले
यानी सीधे पीओके छोड़ना भले न हो, लेकिन वहां से "सामरिक पीछे हटने" की शुरुआत हो चुकी है।
⚡ भारत की स्थिति स्पष्ट: संसद से संकल्प, सेना से तैयारी
भारत की संसद 1994 में यह सर्वसम्मति से पारित कर चुकी है कि PoK भारत का अभिन्न हिस्सा है। अब यह केवल कूटनीतिक दावा नहीं रहा, बल्कि सैन्य और रणनीतिक रूप से भी इसे लागू करने का समय आ गया है।
लॉन्चिंग पैड्स पर एक्शन: भारत अब सीधा स्रोत पर हमला कर रहा है।
सेना की तैयारी पूरी: सीमाओं पर हाई अलर्ट, जवाबी फायरिंग में तीव्रता
राजनीतिक इच्छाशक्ति मजबूत: देश में एक आम सहमति है कि अब "स्ट्रेटेजिक चुप्पी" की नहीं, "निर्णायक जवाब" की ज़रूरत है।
⚡ क्या भारत का दबाव रंग लाएगा?
संभावना बहुत मजबूत है कि अगर भारत एक सीमित, लक्ष्यित और बारंबार दबाव बनाता है—सैन्य, कूटनीतिक और सूचना युद्ध तीनों मोर्चों पर—तो पाकिस्तान को पीओके से पीछे हटने या अपनी मौजूदगी सीमित करने पर मजबूर होना पड़ेगा।
भारत का लक्ष्य केवल सीमा की रक्षा नहीं, आतंक की जड़ तक पहुंचना है। और PoK आज वह जड़ है।
पीओके का भविष्य अब पाकिस्तान के हाथ में नहीं
अब PoK केवल भारत-पाक का भू-राजनीतिक विवाद नहीं रहा।
यह:भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, पाकिस्तान की असफल रणनीति, और वैश्विक मंच पर नई शक्ति संतुलन का विषय बन गया है।
यदि पाकिस्तान समझदारी दिखाए, तो लड़ाई टल सकती है। लेकिन अगर वह पीओके को आतंक की प्रयोगशाला बनाए रखेगा, तो भारत का जवाब अब सख्त और निर्णायक होगा—चाहे अंतरराष्ट्रीय मंच खामोश ही क्यों न रहे।
✍🏻️ लेखक: दीपक शर्मा